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विवेक सिंह जी के लिखल दू गो भोजपुरी रचना

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विवेक सिंह जी

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बात” बात के बा की बात होइ बरात के,
बात उहे रात के बा कि बरात पहुचल देर रात के।।
बात कुछो ना रहे, श्रद्धा ना पुरल बरात के,
केतना नेवतरहि चल गइले बिना देखले बरात के।।

लाखन कहले “बेटियां हई त का हमके दबा देंम,
उ बरात वाली बतिया कइसे हम बिसरा देम।।
तेजू कहले “त का मुह में करिखा लगा ली,
बरात तनी लेटिया गईल त हम फसरी पड़ा ली।।

तीसर केहू बोलल ” छोड़ी सब आपन ज़िद,
बिदा करि लईकी के की बरात लौटे दिने दिन।।
जवन बीतल तवन का कहल जाव,
बरतिया लोग के कटत बा कइसे का बोलल जाव।।

सब गांव के पुरहिया रहले,
अपना आप मे बिरहिया रहले।।
मनानगी अभिये त ठंढाईल बा,
रात भर बरतिया लोग के पेट सोनाहील बा।।

बचल कुचल जवन रहे,
उ दूल्हा के जीजा, फूफा आ मामा के खूब भेटाइल बा।।
हमरा पूरा जवार में हाला रहे ई बरात के,
तेजू, के बरात ह मिलल बा दाम हपचा के।।

बाजा, गाजा, गाड़ी भइल,
सबे केहू बड़ा सवख से तईयारी भइल।।
सबे एक साथ सवारी भइल,
सभे के मन मे स्वाद भरल व्यंजन इक्षा धारी भइल।।

सब इहे बोले बराबरी में बिआह ना करे के,
नवकर्मिया किहा कर्मो फूटे त बेटा ना बरे के।।
रात बीतल तवन बीत गईल,
इहे बराती सब पे एगो ग्रह रहे जवन कट गईल।।

गाले गुलाल रगड़ दs ना कान्हा

विवेक सिंह जी
विवेक सिंह जी

मार गुलेल मटकी फोड़ दs ना कान्हा,
हमके पोरे पोरे रंग दs ना कान्हा।।
बंसी के धुन बिखेर दs ना कान्हा,
गाले गुलाल रगड़ दs ना कान्हा।।

बृंदा के शाख पे झूलुआ लगाई,
तोहरे साथे हम गुलाल उड़ाई।।
मस्ती में उड़े धुर फगुआ के,
गोकुळ इयाद करे तोहे फगुआ के।।

मोर मुकुट सजल रास फगुआ में,
बिरह गीत कइसे गाई फगुआ में।।
सिहर उठल नन्द गांव फगुआ में,
बेरी बेरी आँखिन लोर भरे फगुआ में।।

प्रीत जगाई युग युग काहे तड़पावे,
हर होरी मन तोरे प्रीत में बउरावे।।
देख रूप तोहर हम मद मद मुस्काई,
तोरा प्रीत में बिना रंगे हम रंग जाई।।

ज़िद छोड़अ अब दर्शन दs ना कान्हा,
फिचकारी भर रंग उडिल दs ना कान्हा।।
बंसी के धुन बिखेर दs ना कान्हा,
गाले गुलाल रगड़ दs ना कान्हा।।

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