आई पढ़ल जाव विद्या शंकर विद्यार्थी जी के लिखल चार गो भोजपुरी गजल, पढ़ीं आ आपन राय बताइ कि रउवा इ भोजपुरी गजल कइसन लागल आ रचनाकार के मनोबल बढ़ाई।
अँखियन में बा बेचैनी
दरद दिहल जे बुझ के ऊ छोह कहाँ से दिही
अँखियन में बा बेचैनी ऊ जोह कहाँ से लिही
कोशिश कबो ना कइलस जाने के नेह का ह
तड़पन का दिल में बाटे ऊ टोह कहाँ से लिही
का लेके बात उघरल करेला हर दिन छन में
कसक का बनल लेके ऊ सोच कहाँ से लिही
बहरी बहरी रहल बा जे भीतरी के दुनिया से
जान सकल ना मन के ऊ मोह कहाँ से लिही
काँटो के बीच में विद्या बिहँसे बात त होइत
जनलस ना मुँह धूमिल ऊ सोच कहाँ से लिही।
आसमान से पहचान
जुबान से पहचान करावता आदमी
चुनापान से पहचान धरावता आदमी
चू जाता पीक धो लेत बा हिसाब से
मुस्कान से पहचान करावता आदमी
दुआर से भिखार डांटे पर फिर जाता
मकान से पहचान करावता आदमी
अंगुरी से गिनावता दू तल्ला तीन तल्ला
आसमान से पहचान करावता आदमी
रजत के कुर्सी ना सभका बा लिखल
दरवान से पहचान करावता आदमी ।
दीया से अँजोर लेके
दीया से अंजोर लेके चलल करींला
पत्थरीला राह से निकलल करींला
चर्बी चढ़ल जौन आदमी के आँख प
काठ दिल के आगे सहमल करींला
धरे के गोड़ जब परेला अंगार पर
हिम्मत से आग के मसलल करींला
मगर से बएर ना दुश्मनी सांप से
दूनों के घात से सम्हलल करींला
रार नाहीं दिहींला रार नाहीं लिहीं
केहूके ना जिनगी में खलल करींला ।
बकुला के जामात में
बदल गइलीं मालिक बकुला के जामात में
बदल गइलीं मालिक रसगुल्ला के बारात में
बरगद के छांह में दुख के दिन बिसर गइल
बदल गइलीं मालिक दाल चला के भात में
नीयत के साफ कवनो गलती भइल बा का
बदल गइलीं मालिक गंगा नेहा के धार में
आदमी बा, अदिमिये के डँसता फन पटक
बदल गइलीं मालिक मुकाबला के रात में
रउरा मुखिया के कान काटींला चलावा बा
बदल गइलीं मालिक दीया जरा के बात में।
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