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भोजपुरी गीतों के प्रकार

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भोजपुरी गीतों के प्रकार

परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प, रउवा सब के सोझा बा  भोजपुरी गीतों के प्रकार, इ आलेख में रउवा सब जानब कि भोजपुरी गीतन के केतना प्रकार बा आ कब कब इ के गावल जाला। हमरा आसा बा की रउवा इ आलेख पसन पड़ी।

भोजपुरी गीतों में अनेक प्रभेद हैं। हमारा जीवन नाना प्रकार के संस्कारों के द्वारा संस्कृत बनाया जाता है। हिन्दुओं के प्रधान १६ संस्कार हैं, परन्तु इनमें यज्ञोपवीत ( जने ) और विवाह की मुख्यता है ।

इन अवसरों पर ब्राह्मण पुरोहित वैदिक मन्त्रों का उच्चारण कर विधि-व्यवहार को सुसम्पन्न बनाता है, परन्तु स्त्रियाँ अवसर के अनुरूप नाना प्रकार की भावभङ्गियों से संवलित मनोहर गीत गाकर उसे मधुर तथा संगीतमय बनाती हैं। ऋतु परिवर्तन के कारण भी गीतों में अनेक भेद दीख पड़ते हैं। इन सब बातों को दृष्टि में रखकर भोजपुरी लोकगीत या भोजपुरी गीतों का वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है

सोहर

 

भोजपुरी गीतों के प्रकार
भोजपुरी गीतों के प्रकार

पुत्र-जन्म के अवसर पर गाये जाने वाले गीत सोहर के नाम से प्रसिद्ध हैं। ‘सोहिलो’ तथा ‘मंगल’ के अभिधान से इन्हींका संकेत किया जाता है। पुत्र-जन्म का अवसर सौभाग्यशाली पुरुष के ही जीवन में, कभी-कभी आया करता है। स्त्रियाँ पुत्र होने के लिए लाख मनौती मानती रहती हैं।

इस शुभ अवसर र पास-पड़ोस की स्त्रियाँ, विशेषतः ग्रामगीतों की पण्डिता वृद्धाएँ, एकत्र होकर जच्चा के सूतिकागृह के दरवाजे पर बैठ जाती हैं और रमणीय गीतों को सुनाकर घर भर की स्त्रियों का, विशेषतः ‘जच्चा का मनोरञ्जन किया करती हैं। ‘सोहर वस्तुतः हिन्दी कविता में गृहीत एक छन्द विशेष है, जिसे तुलसीदास ने अपने रामलला-नहछू’ में  वहृत किया है; परन्तु भोजपुरी सोहर किसी पिंगल के नियम से विरचित नहीं है, तथापि इनमें एक विचित्र प्रकार की लय रहती है जो सुनने वालों के हृदयों को बरबस खींच लेती है।

खेलवना

यह भी सोहर के समान पुत्र-जन्म के सुखद अवसर पर गाया जाता है, परन्तु सोहर से इसमें कुछ भिन्नता रहती हैं। सोहर में विशेष कर पुत्रजन्म की पूर्वपीठिका का वर्णन रहता है, ‘खेलवना’ में उत्तर पीठिका का। लड़के के लिए ललचनेवाली वनिता, गर्भ की वेदना से व्याकुल तरुणी, बहू के मंगल साधन में लगी सासु, धाय को दौड़कर बुलानेवाले पति, बालक के उत्पन्न होने पर राजपाट माँगनेवाली धाय-ये सोहर के प्रतिपाद्य विषय हैं; परन्तु सद्योजात शिशु का रोदन, माता का की प्रसन्नता, अपने कलांकुर के पैदा होने से सर्वस्व लुटाने वाले पिता का आनन्द, सास हर्ष खेलवना’ के मुख्य विषय हैं। ‘

जनेऊ के गीत

मुण्डन तथा यज्ञोपवीत के अवसर पर गाने योग्य गीत, जिनमें ब्रह्मचारी के साधनों तथा नियमों का विशेष उल्लेख रहता है।

विवाह के गीत

भोजपुरी गाँवों में विवाह एक लम्बा व्यापार है। वर के प्रथम पूजन को ‘वररक्षा’ कहते हैं, जिसके बाद कन्यापक्ष वाले अनेक पात्र, पत्र-पुष्प तथा द्रव्य लेकर वर की विशेष पूजा करते हैं । इसे तिलक’ कहते हैं। वर को विवाह के लिये जाते समय जो मांगलिक पूजन होता है उसे ‘परीछन’ के नाम से पुकारते हैं। कन्यापूजन का नाम ‘गुरथी’ है। इनमें से हर एक अवसर के लिए भिन्न-भिन्न गीत तथा उनके विषय भी भिन्न-भिन्न हैं । विवाह के पहले शिव-पार्वती के विवाह विषयक गीत भी मंगलाचार के तौर पर गाये जाते हैं।

वैवाहिक परिहास के गीत

जिनमें वर के साथ दुलहिन की सहेलियाँ नाना प्रकार की समयोचित हँसी की बातें रहती हैं। इनमें हास्य रस का अच्छा पुट रहता है।

गवना के गीत

बधू के पतिगृह में प्रथम आगमन को ‘गवना’ कहते हैं । इस अवसर पर गीतों का ममतामयी माता, परिचित स्निग्ध बन्धुओं और प्रेमी पिता से बिछुड़ना प्रधान विषय रहता है । इन गीतों में बिछोह तथा करुणरस का निरन्तर संचार रहता है ।

बारहमासा

पति के परदेश जाने पर साल के बारहों मासों में नई-नई चीजों का होना तथा बधू का क्लेशमय जीवन का विशद वर्णन इन गोतों में रहता है। इसी के भीतर सावन में झूला झूलने के समय के गीतों का समावेश समझना चाहिए।

जात के गीत

जिनका भोजपुरी नाम है जाँतसारी । विषय वही प्रियतम-वियोग । जाँत पीसने के समय, विशेषतः रात के तीसरे पहर, बिल्कुल सन्नाटा होने के कारण ये गीत दूर तक सुनाई देते हैं । गाने का ढंग विचित्र होता है।

सोहनी के गीत

बरसात के शुरू में खेत में उगे पौधों को नुकसान पहुँचानेवाले घासपात को निकाल बाहर करना सोहनी करना कहलाता है। इस काम के लिए नीच जाति की स्त्रियाँ रखी जाती हैं । आवश्यकतानुसार इन गीतों के पद छोटे-छोटे होते हैं।

छठी माता

सन्तान की कामना से कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्य की विशेष पूजा होती है। उस समय ये गीत गाये जाते हैं।

शीतला के गीत

चेचक हो जाने पर शीतला देवी की प्रसन्ता सम्पादन करने के लिए ये गीत गाये जाते हैं। इनमें शीतला की नाना प्रकार की क्रीड़ाओं तथा भक्तों के प्रति दया की कथाओं का विशेष वर्णन रहता है।

झूमर

ये गीत द्रुत लय से गाये जाते हैं। सब स्त्रियाँ खड़ी होकर एक साथ झूम-झूमकर स्वर में स्वर मिलाकर इन गीतों को गाती हैं। इसी कारण इन्हें ‘झूमर’ कहते हैं । विषयों में एकता नहीं है। जब सुन्दरियाँ मस्ती में झूम-झूमकर अपने कलकण्ठ से झूमर गाती हैं, तब श्रोताओं के हृदय में एक विचित्र हर्ष का प्रादुर्भाव होता है। द्रुत लय से होने के कारण इन गीतों में एक विशेष ढंग का प्रवाह है।

चैता

चैत के महीने में (वसन्त के आरंभ में) ये गीत मर्दो के द्वारा गाये जाते हैं। इन्हें ‘घाँटो’ भी कहते हैं। इनकी लय बड़ी ही मनमोहक होती है । लय विलम्बित होता है। गानेवाला अपनी मधुर श्लथ लय से चैत महीने की रुचिर वस्तुओं का सुन्दर वर्णन करता है और बिरहिनों के चित्त को आश्वासन देता है। घाँटों के प्रसिद्ध लेखक कोई बुलः कीदास’ हो गये हैंजिनका नाम अनेक गीतों के अन्त में आता है।

बिरहा

बड़े उमंग का मर्दाना गाना है। अहीर लोगों का तो यह जातीय गान है। किसी भी शुभ अवसर पर अहीर इन बिरहों को जरूर गावेगा। शादी के मौके पर तो बिरहा ही अहीरों के मनोरञ्जन का प्रधान साधन है। बिरहा का विशेषज्ञ पुरुष अहीर समाज में विशेष आदर तथा सत्कार पाता है । बिरहा एक प्रकार का छन्द है । बिषय—-कभी वीर, कभी शृंगार, कभी नीति और कभी अहीर-जीवन।

भजन

मेला तथा तीर्थयात्रा के समय अनेक भजनों के गाने की चाल है। स्त्रियों का झुंड एक साथ मिलकर भगवान की स्तुति, जीवन की क्षणभङ्गरता भजन पूजन की उपादेयता आदि विषयों पर रमणीय गीत गाता है। बड़ा रंस भरा है इन भजनों में, तथा रहस्यवाद की मधुर झाँकी मिलती है इन सामूहिक गीतों में।

इ आलेख डॉ० कृष्णदेव उपाध्याय जी के लिखल किताब भोजपुरी ग्राम गीत से लिहल बा

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