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भोजपुरिया स्वाभिमान सम्मेलन – 7, पंजवार

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भोजपुरिया स्वाभिमान सम्मेलन

भोजपुरिया स्वाभिमान सम्मेलन के बारे में

अपना मातृभाषा भोजपुरी खाति कुछ भोजपुरिया के एगो प्रयास ह ई भोजपुरिया स्वाभिमान सम्मेलन। जवना के शुरुवात जीरादेई नाव के पावन भुमि से भईल रहे आ बाद मे पंजवार के सांस्कृतिक पहचान के संगे अपना पहचान अपना वजूद अपना उद्देश्य के एगो नया रुप देहलस।

पंजवार के सांस्कृतिक सांस्कारिक माटी प एक हाली फेरु जमावडा होखे जा रहल बा ३ दिसम्बर के। रउवा से निहोरा बा कि रउवा अपना एह कार्यक्रम मे आई, भोजपुरी के साहित्यिक सांस्कृतिक मजबुती खाति आपन तन मन एह सम्मेलन मे दिँही संगे संगे भोजपुरी के आलोपित होत लोकगीतन से लोकनृत्यन से आपन परिचय करवाई।

भोजपुरिया स्वाभिमान सम्मेलन हर साल ३ दिसम्बर के “आखर – एगो डेग भोजपुरी साहित्य खाति” के टीम आयोजित करेला। आखर के उद्देश्य भोजपुरी के आगे बढ़ावल आ भोजपुरी के प्रचार प्रसार साहित्यिक विकास कइल बा।

आखर के ई पत्रिका भी आवेला, रउवा पत्रिका के आखर के फेसबुक पेज आ वेबसाइट से डाऊनलोड कर सकेनी, नीचे दिहल फेसबुक, ट्विटर आ वेबसाइट प जा सकेनी आ आखर से जुड़ सकेनी

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आखर भोजपुरी के आठवा अनूसुची मे शामिल करावे खाति संघर्षरत बा, समय समय प सोशल कैम्पैन, भारत सरकार, सांसद आ विधायक लोगन किहा चिठ्ठी भी लिखत रहेला लोग।

निहोरा / नेवता

भोजपुरिया भाई बहिन लोगीन,
3 दिसम्बर 2010, देशरत्न राजिन्नर बाबु के धरती जीरादेई से आखर परिवार भोजपुरी के एगो दीया जरवलख, “भोजपुरिया स्वाभिमान सम्मलेन” के नाव से। आज उहे दीया कर्मयोगी संत पंडित घनश्याम शुकुल गुरूजी के प्रोत्साहन, मार्गदर्शन आ आखर परिवार के समर्पण , परिश्रम के बल पर एगो मशाल बन के ग्राम पंजवार, प्रखंड रघुनाथपुर सिवान के धरती पर एगो नया मिसाल कायम कर रहल बा।

एहू साल 3 दिसम्बर 2016 के उहें पंजवार के धरती पर प्रभा प्रकाश डिग्री कॉलेज के मैदान में 7 वाँ भोजपुरिया स्वाभिमान सम्मेलन आयोजित होता। रउआ सभे से निहोरा बा कि ई भाषा संस्कृति यज्ञ में जादा से जादा संख्या में भाग लीं सभे।

अक्सर लोग पुछेला कि ओह दिन(3 दिसम्बर) के का होला भा का होइ? त हम बस एतने कहेम कि भोजपुरी भाषा, साहित्य आ संस्कृति के विरासत के जोगावल, संरक्षण आ एके विकसित क के आगे ले जाये से संबंधित जवन काम हो सकता उ सब इहाँ होला।

इयाद राखे के बा कि जब हमनिका सभ तरह से मजबुत रहेम तब लोग का ठोठमल के संविधानिक मान्यता देहीं के पड़ी। आ अगर हमनी अपना साहित्य संस्कृति से मजबुत नइखी जा, तब संविधानिक मान्यता मिलला के बादो कवनो विशेष फायदा ना होइ।

भोजपुरिया स्वाभिमान सम्मेलन 7, पंजवार
भोजपुरिया स्वाभिमान सम्मेलन 7, पंजवार

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