बिहार के पछिमी भाग में राजधानी से करीब डेढ़ सइ किलोमीटर दूर बसल सीवान जिला। जिला के रघुनाथपुर प्रखंड। प्रखंड के पंजवार गाँव। आ एही गाँव में स्थित प्रभा प्रकाश डिग्री कालेज। कालेज के प्रांगण में आखर द्वारा आयोजित दसवाँ भोजपुरी महोत्सव। ‘आखर’ पिछिला दस बरिस से भारत के पहिला राष्ट्रपति भारत रत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी के जयंती (03 दिसंबर 1884 – 28 फरवरी 1963) के भोजपुरी उत्सव के रूप में मनावत आ रहल बा। आखर अपना स्थापना के असो दसवाँ साल पूरा कइलस। लोग एह डेगा-डेगी बढ़त डेग के ‘दस साल, बेमिसाल’ के नाँव दिहल। एह साल के आयोजन पिछिला सालन के एकदिनी आयोजन के जगह प चार दिन (दिनांक 30 नवंबर से 03 दिसंबर, 2019 तक) के रहल।
भोजपुरी चित्रकला कार्यशाला
दिनांक 30 नवंबर आ 01 दिसंबर के भोजपुरी चित्रकला कार्यशाला के आयोजन भइल। चित्रकला कार्यशाला के बिधिवत शुरुआत दीप जरा के आ ज्ञान के देवी सुरसती (सरस्वती) जी के सुमिरत ऊहाँ के बंदना से भइल। आयोजित चित्रकला कार्यशाला में जिला-जवार के अलग-अलग इस्कूलन के चुनाइल 75 गो छात्रा लो भाग लिहली। कार्यशाला में सर्जना ट्रस्ट के परमुख ट्रस्टी आ आखर के वरिष्ठ सदस्य जानल-मानल चित्रकार श्री संजीव सिन्हा जी, श्री रवि प्रकाश सूरज जी आ श्री सुनील पाण्डेय जी बचियन के भोजपुरी चित्रकला के बारीकी सिखवनीं। मालूम होखे कि भोजपुरी चित्रकला में मुख्य रूप से प्राकृतिक रंगन के परयोग होला; रंग के रूप में सेम आ पोईं के पतई, चाउर के दाना, गेरु आ लाल माटी के प्रयोग कइल जाला। भोजपुरी चित्रकला के समरिद्ध आ विशाल परंपरा के मेहरारू लोग सदियन से सहेज-सँगेर के निभावत आइल बा लोग। प्रशिक्षण कार्यशाला में शामिल लइकिन के भोजपुरी भित्तिकला, बिआह के अवसर प बनावल जाये वाला कोहबर कला, गोधन के समय गोबर से बनावल जाये वाला चित्रकारी, नाग-पंचमी के अवसर प बनावल जाये वाला नाग-नागिन के चित्र, अउर दोसरो परब-तेवहारन के लोक चित्रकारी सहित भोजपुरिया इलाका में मसहूर पीड़िया कला बनावे सीखावल खास रहे। प्रशिक्षण के बाद बेहतर चित्रकारी बनावे वाली छात्रा लोगन के आखर के संरक्षक गुरुजी घनश्याम शुक्ल प्रशस्ति पत्र देके आ भोजपुरिया गमछी ओढ़ा के सम्मानित कइनीं।
कला दीर्घा
महोत्सव स्थल प एगो कला दीर्घा रहे, जहाँ चित्रकला कार्यशाला में छात्रा लोगन के बनावल चित्रकारी के परदर्शनी लागल रहे। परदर्शित चित्रन के बीचे एगो कोना में ‘सेल्फी कोना’ बनल रहे। सेल्फी कोना के कुछ खासियतन में एगो ई रहे कि सेल्फी कोना ‘कैथी आ देवनागरी’ दूनो लिपि में लिखल रहे। कोना के अगरी-कगरी भोजपुरी भित्तिकला आ चित्रकला शैली उकेरल रहे।
(दिनांक 02 दिसंबर, 2019)
निरंतरता आ अनुशासन के बोध करावत दिया में जरत बाती
महोत्सव के बिधिवत उद्घाटन जय प्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा के कुलपति प्रो. हरिकेश सिंह जी दिया जराके कइनीं। दिया में जरत बाती एह बात के बोध करावत रहे कि अनुशासन आ निरंतरता लक्ष्य के साधे खातिर केतना जरूरी बा। उद्घाटन के बाद साहित्यिक सत्र के शुरुआत भइल। साहित्यिक सत्र मूल रूप से दू भाग में बँटाइल रहे। पहिलका भाग में भोजपुरी भाषा के जानल-मानल आ बिदवान (विद्वान) लोग अलग-अलग बिसय प आपन-आपन बात राखल। दोसरका भाग कवि सम्मेलन के रहे।
चरचा आ व्याख्यान
गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय, गांधीनगर में हिंदी के सहायक पोरफेसर श्री प्रमोद कुमार तिवारी जी “वैश्विक साहित्य आ भोजपुरी” बिसय प बात राखत भोजपुरी के देस-बिदेस में बरगद के फेंड़ लेखा छितरइला के बात कइनीं।
डॉ. जौहर शफियाबादी जी ‘भोजपुरी आंदोलन के दशा-दिशा’ प बिस्तार से आपन बात रखनीं। ऊहाँ के एह बात प जोर दिहनीं कि भोजपुरी हरमेस से समृद्ध आ गौरव से भरल-पूरल भाषा रहल बिया।
प्रो. नीरज सिंह जी ‘भोजपुरी साहित्य आ संस्कृति प बीर कुँअर सिंह के परभाव’ प आपन बात राखे से पहिले डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी के चित्र प सरधा के फूल चढ़ावत कहनीं कि “भोजपुरी में पहिला फिलिम बनावे के प्रेरणा राजेंदरे बाबू के दिहल हऽ।” बीर कुँअर सिंह के व्यक्तित्व आ कृतित्व प बात राखत कहनीं कि “सन 1857 के अपराजेय योद्धा बाबू कुँअर सिंह के ऊ मान-सम्मान ना भेंटल जवन उनके मिले के चाहीं, एक तरह से उनुकर उपेक्षा कइल गइल।” संगे-संगे ईहो जोड़नीं कि भोजपुरी के जवन सांस्कृतिक आ अनुशासित रूप के आखर जी रहल बा ओसे ढेर लो के प्रेरणा मिल रहल बा।
प्रो. राम नारायण तिवारी जी ‘भोजपुरी में नारी आ हाशिया समाज के स्वर’ बिसय प आपन बात राखत कहनीं कि “भोजपुरिया नारी अपना कर्तव्य से बन्हाइल (ड्यूटी ओरिएंटेड) आ सामाजिकता के प्रतिनिधित्व करत लउकेली त ओहिजे पछिम के देसन के नारी अधिकार केंद्रित आ व्यक्तिवादिता के समरथक बाड़ी।”
बरिष्ठ साहित्यकार श्री भगवती प्रसाद द्विवेदी जी ‘भोजपुरी साहित्य में सौंदर्य आ परेम’ प आपन बात राखत कहनीं कि “वर्तमान समे में परेम (प्रेम) के नाँव प अश्लीलता फइलल बा।” ऊहाँ के कहनीं कि भोजपुरी में परेम के जवन विवेचना भोजपुरी के आदि कवि कबीरदास जी अपना दोहा “ढाई आखर प्रेम का…” में कइले बानी, ऊ आजुओ रेघरियावे जोग बा। श्री द्विवेदी ‘अढ़ाई आखर’ के माने समुझावत कहनीं कि परेम के पहिला आखर (अक्षर) – जे परेम करऽता, दोसरका – जेकरा से परेम कइल जाता आ तीसरका – अपूर्णता के द्योतक बा। कबीरेदास जी के एगो अउरी दोहा “प्रेम ना बाड़ी उपजे, प्रेम ना हाट बिकाई। राजा-परजा जेहि रुचे, सीस देहि ले जाई।।” के उदाहरण देत एह बात प बल देनीं कि कबीर जी के एह दोहा में “सीस देहि” के माने दंभ आ अभिमान के तेयागल बा। आपन बात आगे बढ़ावत ऊहाँ के कहनीं कि “भोजपुरी साहित्य में शाश्वत प्रेम के भरमार बा जेकरा के पढ़े-सुने आ हबेखे के जरुरत बा।”
कथाकार श्री प्रकाश उदय जी ‘भोजपुरी में बाल कथा साहित्य’ जइसन बिसयन प आपन-आपन बात रखनीं। ऊहाँ के कहनीं कि “एकहरा (एकल) परिवार के चलते बिछोह के कहर लइकन के जीवन के समहूत आ बुजुर्गन के जीवन के पूर्वाहुत तक टूटल बा। बाल साहित्य के रचनिहार खातिर दू गो चीझन प जादा धेयान देला के जरूरत बा, पहिला – लइका के मन (बाल मन) के बूझे के, काहें कि दुनिया के सभसे जटिल भाषा लइकन के भाषा होखेला। आ दूसरा माई (महतारी), बालकन के ओह जटिल भाषा के ना खाली समुझे-बूझे बलुक ओकरा खातिर हर पसेवा आ जतन करे के, मन होखे के चाहीं। भोजपुरी में जवन वाचिक परंपरा रहल बा ऊ ढेर महत्वपूर्ण बा आ ऊ कब्बो पुरान ना होई, एह से दरकच के लिखला के जरूरत नइखे, बलुक लोक में जन मानस में जवन रचल-बसल बा ओकरा के पुनर्जीवित कइला के काम बा।”
कुछ रचीं, कुछ गुनीं; कुछ कहीं, कुछ सुनीं : कवित
साहित्यिक सत्र के दोसरका भाग में कुछ युवा आ कुछ नवहा कवि/कवयित्री लो अलग-अलग बिसयन प आपन-आपन कवितन के पाठ कइलन। कुछ कवितन के बिसय समसामयिक रहे त कुछ पियरका सरिसो अस फुलाइल आ सेम के बतिया अस लदराइल भोजपुरिया माटी में उपजल। कुछ कवि/कवयित्री लोग अपना कवितन के संगीतमयो पाठ कइल। सुश्री आकृति विज्ञ ‘अर्पण’, श्री आशीष मिश्र, श्री शिवदत्त द्विवेदी ‘द्विज’, श्री राजीव कुमार भारती, श्री अभिषेक चौहान, श्री राजु उपाध्याय, श्री सुशांत शर्मा, श्री आर. जी. श्याम, श्री सुजीत सिंह ‘सौरभ’, श्री यशवंत कुमार ‘यश’, श्रीमती आरती आलोक वर्मा, डॉ. लाल बाबू राय आ श्री कृष्ण मुरारी राय जी आपन-आपन कवितन के पाठ कइनीं। साहित्यिक सत्र के पहिला भाग के संचालन श्री आशुतोष कुमार पाण्डेय कइलन त दोसरका भाग के समे मंच संचालन के जिमेवारी आकाशवाणी गोरखपुर में उद्घोषिका सुश्री अंकिता पंडित बखूबी निभवली।
(03 दिसंबर 2019)
भोजपुरिया गौरव यात्रा
भोजपुरिया नायकन के नायकत्व के बोध करावत तख्ती आ ओह प लिखल नारा से गौरव यात्रा/परभात फेरी के शुरुआत भइल। परभात फेरी में गाँव-जवार के सैकड़न बचवा-बचियन के संगे-संगे देस-बिदेस से चहुँपल भोजपुरी प्रेमी लोग शामिल भइल। इस्कूलिया लइका-लइकी ना खाली महोत्सव में जुटलन बलुक सक्रिय भागीदारो भइलन। बचवन के अपना मातृभाषा भोजपुरी में बोले-बतियावे, पढ़े-लिखे आ भोजपुरिया संस्कार के भरदम जीये अउर परंपरा के निबाहे खातिर प्रेरित कइल गइल।
एक-एक क के जुड़त बा लोग, डेगा-डेगी चलत बा लोग
पछिम (पश्चिम) बंगाल के पुलिस महानिदेशक (होमगार्ड) श्री मृत्युंजय कुमार सिंह जी भोजपुरिया कैलेंडर के संगे-संगे भोजपुरी के पाँच गो किताबन, क से कैथी, गाँधी गाथा, थाती, बटोहिया अउर भोजपुरी चित्रकला आ लोक परंपरा के विमोचन कइनीं। श्री सिंह अपना संबोधन में भोजपुरी साहित्य, संगीत आ परंपरा प खाली बाते ना कइनीं बलुक भोजपुरी आ भोजपुरी गीतन के जड़-सोर नेपाल, त्रिनिडाड गयाना आ अउरी देशन में कइसे चहुँपल-फइलल बा ओके गाके सुनइबो कइनीं। चंपारण सत्याग्रह के मूल जड़ नील आ निलहन के शोषण प आधारित ऊहाँ के लिखल आ गावल एगो गीत ‘हरियर धानवा के नील भइल खेतिया…’ सुनि के केहुओ ई आसानी से जान सकेला कि अपना माटी आ भाषा से ऊहाँ के केतना गहिराह जुड़ाव बा। अतने ना, ऊहाँ के मंच से दरसकन के बीचे बइठल फिलिमकार आ पटकथा लेखक श्री अमित झा के जवना आदर के साथे नाँव लिहनीं ऊ बहुत कुछ सीखे के प्रेरित कइल।
स्वाभिमान, कैथी, गाँधी-गाथा, थाती, बटोहिया आ भित्तिकला
‘भोजपुरिया स्वाभिमान‘ खाली एगो कलेंडर ना हऽ, ई एह कलेंडर में भोजपुरी के 12 गो बिभूति लोग के बारे में पुरहर जानकारी मिलत बा। ‘क से कैथी’ कैथी सीखे के आरंभिक पोथी हऽ, ‘गाँधी गाथा’ महात्मा गाँधी जी के 150 वीं जयंती प ऊहाँ के इयाद करत पुस्तक के नाया भूमिका आ कलेवर में संयोजित, संपादित आ पुनरप्रस्तुत कइल गइल बा प्रकाशित कइल गइल बा। ‘थाती’ भोजपुरी साहित्य के 37 गो किताबन के बारे में जानकारी देवे वाला किताब हऽ। ‘बटोहिया’ बाबू रघुबीर नारायण जी (30.10.1884 – 01.01.1955) के ऊहे देस गान हऽ जेकरा के महात्मा गाँधी ‘भोजपुरी के वंदे मातरम’ के संज्ञा देले रहनीं। ‘भोजपुरी चित्रकला आ लोकपरंपरा – भोजपुरी भित्ति चित्रकला’ सर्जना ट्रस्ट आ आखर के साझा प्रयास से निकलल किताब हऽ, एह किताब में भोजपुरिया इलाका के बिलमत कला से लोग के परिचय होई।
गाथा आ तीस्ता शैली
बीर कुँअर सिंह गाथा के ‘तीस्ता शैली’ के प्रस्तुति सुश्री सृष्टि सिंह कइली। एह शैली के नाँव बीर कुँअर सिंह गाथा के प्रस्तुत करे वाली उभरत कलाकार तीस्ता शांडिल्य, जे लंबा इलाज के बाद अगस्त, 2018 में अंतिम साँस लिहली, के इयाद में रखाइल बा। श्री उदय नारायण सिंह आ सुश्री सृष्टी जी के भाव, वाचन आ प्रस्तुति एह गाथा-शैली के अलग मोकाम आ ऊँचाई देत रहे।
गीत-संगीत
अमेरिका से चलि के आइल श्रीमती मनीषा पाठक जी के लोक गीत त डॉ. गजेंद्र पाण्डेय जी के कबीर गीत गायन भइल। श्रीमती नीतू कुमारी नवनीत जी आ श्रीमती प्रीति कुशवाहा जी के लोक गीत गायन भइल। लोक गायिका आ संगीत के शिक्षिका सुश्री निरुपमा सिंह जी के कंठ से जब ‘गाई के गोबरे महादेव, अँगना लिपाय…’ फूटल त जूमल-जुटल लोग बरबसे वाह-वाह क उठल। ‘सिसोदिया सिस्टर्स’ के नाँव से मसहूर श्रद्धा आ समृद्धि अपना लोकगीतन से लोगन के खूब झूमवली। भोजपुरी के उभरत गायक ऋषि शंकर ‘गोरिया चान के अँजोरिया…’ से शुरुआत क के होरी, चइता आ पचरा गीत गवलन। श्री आदित्य राजन, श्री जगदंबा जायसवाल आ श्री आदर्श आदी जइसन जुझारू आ उभरत कलाकारन के बैंड के प्रस्तुति भइल। लोक गायक शैलेन्द्र आ लोक गायिका श्रीमती रेखा तिवारी जी के उपस्थिति ढेर कुछ कहत रहे। संगीत नाटक अकादमी द्वारा बिस्मिल्लाह खाँ युवा पुरस्कार से सम्मानित लोक गायिका सुश्री चंदन तिवारी अपना गीतन से लोगन के मगन कइली। बिस्मिल्लाह खान संगीत महाविद्यालय, पंजवार में संगीत के गुरु श्री रमैया पाण्डेय जी तबला वादन के आ प्रोजेक्ट कस्तूरबा बालिका उच्च विद्यालय, पंजवार में संगीत के शिक्षक श्री संजय कुमार सिंह जी अपना गायन के प्रस्तुति दिहनीं।
रंग, मंच आ नाटक
महोत्सव के अंतिम दिन श्री भिखारी ठाकुर जी के लिखल आ श्री संजय सिंह के निरदेशित नाटक ‘भाई बिरोध’ के मंचन भइल। नाटक के क गो खासियतन में से एगो ई रहे कि एकर कुल्हि किरदार (पात्र) के भूमिका पंजवार गाँव के इस्कूलिया लइकी लोग निभावल। माटी के लोंदा (काँच आ आपन तागत के नीक से ना चीन्हे वाला) के एगो मूर्त रूप दिहल मूर्तिकारे जानेला। ई कहल बेजाईं ना होई कि मूर्ति के गढ़े खातिर जेतना जतन-उपाय श्री सिंह बखूबी कइले रहीं, नाटक के कलाकार लोग ओह मूर्ति में जान डाले आ जीवंतता के बनवले राखे में इचिको उनइस ना पड़ल।
लौंडा नाच
बिहार के एगो परमुख नृत्य शैली लौंडा नाच के प्रस्तुति राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से अभिनय के ककहरा सीखल श्री राकेश कुमार जी कइलन। मालूम होखे कि लौंडा नाच मुख्य रूप से बिहार के एगो नाच हऽ जेकरा में नाचे वाला मरदाना रहेलन। ऊ मेहरारू अस कपड़ा-लत्ता पहिर के अलग-अलग भाव-भंगिमा के परदर्शन करेलन। एहिजा एह बात के बखान कइल जरूरी बा कि भोजपुरी के परसिद्ध नाटककार आ सूत्रधार भिखारी ठाकुर एह नाच शैली के जगहि-जगहि घूम के परदर्शन कइनीं।
परी के पारी आ विपुल नायक जी के नायकी
दुबई में रहे वाली लइकी परी (अक्षिता तिवारी) जब ‘हाथऽ जोड़ीं, पइयाँ पड़ीं भइया हो सोनरवा…’ आ ‘बबुनी मारे ली गुलेल…’ गीतन प भाव नृत्य प्रस्तुत कइली त महोत्सव थपरी के गड़गड़ाहट से गूँज गइल। नृत्य गुरु आ लोक नर्तक विपुल नायक जी आ उनुकर टीम अपना भाव नृत्य के बेजोड़ प्रस्तुति से सभकर मन मोहे में कवनो कोर-कसर ना छोड़ल। ऊहाँ सभ के प्रस्तुति के बाद लोग ठाड़ होके अभिवादन कके ई जनावे में इचिको मोका ना छोड़ल कि भोजपुरी लोक गीतन प लोक नृत्य के ईहो रूप हो सकेला। एह बात के बिसेस जिकिर कइला के जरूरत बा कि जब ई प्रस्तुति कुल्हि हॉट रहे ओह घरी मंच के आरी-कगरी आ सोझा बइठल दरसक में मरद-लइका से अधिका मेहरारू-लइकी रही लोग।
लोग के लोक से जोड़त संगीत
महोत्सव में अंतरराष्ट्रीय स्तर के संगीतकार आ फिलिमफेयर (फिल्मफेयर) पुरस्कार विजेता श्री प्रबुद्ध बनर्जी जी के उपस्थिति ढेर कुछ कहत रहे। ऊहाँ के जब युकुलेले (एगो गिटार लेखा बाद्ययंत्र जवना के तार नायलन के रस्सी के होला आ जेकरा के छूँछे अंगूठा भा अँगुरी के पोर से बजावल जाला) प तान छेड़नीं त जूमल लोग झूमे लागल। पछिम के बाद्ययंत्र संगे पुरुब के गीत मिलि के जम के आपन जलवा बिखेरलस।
राग निरगुनिया
पिछिला तीन दशक से अधिका समे से भोजपुरी सुननिहार लोग के अपना गीत-संगीत से झुमावे वाला लोक गायक श्री विष्णु ओझा जी माई सुरसती के संगे-संगे कंठ के सुमिरत ‘जाहि हम जनतीं शीतलि अइति अँगना…’ देवीगीत से अपना गायन के शुरुआत कइनीं। बिआह के पहिला राति एगो नया-नवेली दुलहिन के अपना पति से ‘दिहीं कुछओ चीन्हा मुँह देखाई ए बलम जी…’ के निहोरा करत गीत बरबसे भोजपुरिया संस्कार के प्रतिबिंबित क दिहलस। जूमल-जुटल दरसक आ सुननिहार लोग के माँग प ‘माया में ई काया अइसन लपेटाइल बा…’ आ ‘एक दिन नदी की तीरे, जात रहनीं धीरे-धीरे…’ जइसन निरगुन (निर्गुण) गाके श्री ओझा जी राति के तंद्रा के अचके में तूरि दिहनीं।
कालजयी नाटक बिदेसिया के 718वाँ प्रस्तुति
जानल-मानल नाट्य निदेशक आ रंग-गुरु श्री संजय उपाध्याय जी के निरदेसन में ऊहाँ के टीम द्वारा भिखारी ठाकुर जी के बिस्व परसिद्ध नाटक ‘बिदेसिया’ के प्रस्तुति भइल। दिल्ली विश्विद्यालय के एगो महाविद्यालय में सहायक पोरफेसर श्री मुन्ना कुमार पाण्डेय जी नाटक के भूमिका बतवनीं। मालूम होखे कि आखर के मंच प बिदेसिया के ई पहिला आ देस-बिदेस भर में मंचित भइल 718वां प्रस्तुति रहे। मुख्य रूप से रोजी-रोटी के जोगाड़ में पलायन के दरद आ देह के ताना-बाना प आधारित एह नाटक के चार गो मुख्य पात्र पेयारी सुंदरी, बिदेसी, बटोही आ रखेलिन बाड़ें। ओइसे नाटक के एक-एक पात्र बड़ा खूबी से अपना संबाद (डायलग) आ भाव-भंगिमा से दरसकन के ना खाली गुदगुदावत-रोआवत बा बलुक घटना के समे में ले जाए के भरसक कोशिशो करऽता।
राह अगोरत, बाट जोहत
महोत्सव के सुचारू आयोजन में डिग्री कालेज, पंजवार के अध्यक्ष श्री डॉ. बी एन यादव, कालेज के कुल्हि माहटर साहेब, गाँव के लोग, आस-पास के विद्यालयन के माहटर साहेब, बचवन के अभिभावक लोग के संगे-संगे अउरियो गाँव-जवार, देस-बिदेस के कतने जानल-बेजानल लोग के प्रत्यक्ष भा परोक्ष रूप से विशेष सनेह आ सहजोग मिलल।
देसी ठाठ, देसी अंदाज
आयोजन स्थल के पास मेला सजल लागत रहे। फुचुका, गुपचुप, छोला, सिंघाड़ा, कचौड़ी, चिनिया आ गुरही जिलेबी, फोंफी, घुघुनी, लकठो, लाई, लिट्टी-चोखा आ माटी के भरुका में बेचात चाह बरबसे मेला के माहौल बना देले रहे। अतिथि आ महोत्सव में आइल लोगन खातिर भोजन में बड़की पूड़ी, तरकारी आदि के बेवस्था रहे। ऊहे पूड़ी जवना के अलग-अलग क्षेत्र में हाथी कान पूड़ी, बड़का पूड़ी, कागज पूड़ी आ अउरी क गो नाँव से जानल जाला।
फेर आइब जी… एगो डेग भोजपुरी खातिर
आखर भोजपुरी महोत्सव – 2019 के समापन कुंदन सिंह आ केसरबाई अउर बनारसी प्रसाद ‘भोजपुरी’ जी जइसन लोगन के देश खातिर शाश्वत प्रेम के समरपन के भाव के जोगावत आ समेटले भोजपुरी भाषा खातिर समरपित रहे के संकल्प लेले भइल। साँच त ईहो बा कि रंग-कूची से शुरू होके बिखरल जलवा राग के तानत-छेड़त-छोड़त अभिनय प जाके समाप्त भइल। चार दिन के आयोजन रहे, संभव बा कुछ कमियो रहल होई, कुछ जाने-अनजाने में गलतियो भइल होई। जदि रउआ लागत बा त ओह कुल्हि से हमनीं के अवगत कराईं ताकि आगे के आयोजनन में ओह प धेयान देत सुधार कइल जाउ। भाषा भोजपुरी अपना माधुर्य आ लालित्य, भोजपुरिया संस्कार अपना अनुशासन आ परंपरागत गीत-संगीत मेथी आ घोंसारी के भुजुना अस दूर तक आपन सोन्ह गमक बिखेरत रहो। भोजपुरी भाषा के समृद्धि आ गौरव सुरुज के लाली लेखा आपन जस चहुँ दिशा में फइलो आ एकर गौरवशाली इतिहास, चहकत वर्तमान आ जोगावल भविष्य फरत-फुलात आ लहलहात रहो। ईहे कामना के संगे जय भोजपुरी।
आखर भोजपुरी महोत्सव के कुछ फोटो
रिपोर्ट के लेखक : श्री कृष्णा जी पाण्डेय जी आ इ रिपोर्ट आखर के फेसबुक पेज से लिहल बा
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