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भोजपुरी में आलोचना – समालोचन: समीक्षा

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भोजपुरी में आलोचना - समालोचन: समीक्षा
भोजपुरी में आलोचना - समालोचन: समीक्षा

भोजपुरी विद्वान सिपाही सिंह श्रीमंत जी आपन आलेख जवन अहेरी पत्रिका, 1977 में आलोचना-समालोचना -समीक्षा नाम से लिखनी ओह में उहाँ के लिखत, बानी कि – ” ई बात सही बा की ठेठ शब्दार्थ का ख्याल से आलोचना- समालोचना भा समीक्षा एह तीनू शब्दन में तनी-मनी अंतर के बारीकी भले लउक जाय, बाकिर व्यवहार में तीनू शब्दन के प्रयोग लगभग एके आर्थ में चालू बा. जब कवनो साहित्यिक कृति के विशेष रूप से अध्ययन भा अनुशीलन करके ओकरा सौन्दर्य के, ओकरा गुण-दोष के, ओकरा बारीकी के चाहे ओकरा ओकरा विविध साहित्यिक तत्वन के फरिया -फ़रिया के, चारु तरफ से जांच पर्काख के, लोग का सामने रख दिआय त कहल गईल बा. पुनरुक्ति दोष के खतरा उठा करके भी हम अपना कथ्य के भा कहनाम के कई तरह से कह के साफ़ करे के कोशिश कइनी ह” (पृष्ठ- 28)( निबंध कलश, सिपाही सिंह श्रीमंत, भोजपुरी साहित्य संस्थान, पटना, 2011।

उहाँ के दुसर आलेख जवन अहेरी के दूसरा अंक अप्रेल, 1977 में आईल ओह में एगी आलेख ” आलोचना-समालोचना” में लिखत बानी (पृष्ठ 4) कि भोजपुरी में आलोचना -समालोचना के अबहीं बहुत अभाव बा. छिट-पुट ढंग से यत्र तत्र कभी कभार पत्र-पत्रिकन में अइसन चीज देखे में आ जाला बाकिर अबहीं तक ले विद्वान लोग बढ़ावा देवे खातिर रिवाज बना ले ले बा की कइसनों रचना के ” वाह रे-वाह खूब लिखले बानी” कहे लागता।

भोजपुरी आलोचना साहित्य के विकास के आवश्यकता (पृष्ठ – 125) आलेख जवन जोड़ल- बटोरल (भोजपुरी निबन्ध, समीक्षा आ अन्य विधा के संकलित रचना, लोग प्रकाशन, 2011 ई ) में भोजपुरी के विद्वान नागेन्द्र प्रसाद सिंह लिखत बानी – देश आ विदेश के विभिन्न विश्वविध्यालय से भोजपुरी भाषा, साहित्य आ संस्कृति विषयक शोध-कार्य सम्पन्न भइल, जवना के संख्या लगभग 100 होई आ ओह पर पी-एच डी आ डी लिट् के उपाधियों शोधकर्ता लोग का मिलल.

चिंताजनक बात ई बा की भोजपुरी विषयक आधिकांश शोध-प्रकाशित नइखे . विपुल सर्जनात्मक साहित्य आ बहुत विद्वान- समीक्षक से भरल पुरल भइला के बादो जतना विकास सर्ज्नाताम्क साहित्य (काव्य, उपन्यास, कहानी आदि) के भइल, ओतना आलोचना साहित्य के ना हो सकल बा. भोजपुरी के विभिन्न पत्र-पत्रिकन में समय-समय पर कुछ सामग्री प्रकाश में आवत रहल बा आ ‘कसौटी’ अउर ‘पाती’ जइसन कुछ पत्रिकन के कबो-कबो प्रकाशन हो रहल बा. कुछ विद्वानन के साहित्य के विविध पक्षन, साहित्यकारन के कृतित्व आ पुस्तकन पर फुटकर आलोचनात्मक आलेख देखे के मिळत बा. एही क्रम में साहित्य के इतिहास आ साहित्यशास्त्र पर भी कुछ पुस्तकं के प्रकाशन भईल बा, जवान वर्तमान आवश्यकताका तुलना में ंट का मुंह में जीरा अइसन बा।

भोजपुरी में साहित्यालोचन के सीरी गणेश उहे साहित्यकार- आलोचक लोग कइल जे पाहिले से संस्कृत, हिंदी आ अंग्रेजी माध्यम से भोजपुरी भाषा से जुडल रहे. भोजपुरी में पंडित रामनरेश त्रिपाठी, संकटा प्रसाद, दुर्गाशंकर प्रसाद सिंह ‘नाथ’ पंडित गणेश चौबे, डॉ कृष्णदेव उपाध्याय , डॉ उदय नारायण तिवारी, डॉ विश्वनाथ प्रसाद , कमला प्रसाद मिश्र, विप्र, कृष्णानन्द कृष, महेश्वराचार्य, नागेद्र प्रसाद सिंह, डॉ विवेकी राय, भुनेश्वर सिंह शिक्षक, डॉ ब्रज भूषण मिश्र, डॉ राजेश्वरी शांडिल्य के अलावा, आज काल डॉ विष्णुदेव तिवारी, डॉ रामदेव शुक्ल, जिंतेंद्र कुमार, रामाज्ञ प्रसाद सिंह विकल, राम निहाल गुंजन, डॉ तैयब हुसैन पीडित, जगन्नाथ, भगवती प्रसाद द्विवेदी, डॉ किशोरी शरण शर्मा, डॉ रमाशंकर श्रीवास्तव, डॉ संध्या सिन्हा, बलभद्र, दिलीप कुमार आदि।

भोजपुरी साहित्य के विद्वान डॉ जय कान्त सिंह जय जी आपन किताब भोजपुरी गद्य साहित्य, स्वरुप-सामग्री, समालोचना में भोजपुरी-आलोचना साहित्य का अध्ययन के मुख्य रूप से तीन गो बतवले बानी (पृष्ठ -130 – 1 हिंदी-भोजपुरी के साहित्यिक पत्र-पत्रिका, 2 आलोचनात्मक निबंध के संकलित-सम्पादित पुस्तक आ 3 आलोचक लोगन के साहित्यालोचना ( राजर्षि प्रकाशन, मुजफ्फरपुर, बिहार, वर्ष -2013।

बात चंपारण के एह विधा में देन के आई त सबसे पाहिले पंडित गणेश चौबे के नाम सबसे ऊपर आई. पतिलार, बगहा निवासी अवधेश नारायण शाही आ शम्भूशरण राय के संपादन में अहेरी के दू गो अंक 1977 में प्रकाशित भईल , पहिला अंक में ” आलोचना- समालोचन समीक्षा” नामक आलेख आइल जवन सिपाही सिंह श्रीमंत जी लिखले रही आ दूसरो आले ख “आलोचना- समालोचना” अप्रेल, 1977 में आईल आहेरी के दूसरा अंक में छपल जेकर चर्चा ‘निबंध कलश’ में आईल बा।

आभार: अखिल भारतीय भोजपुरी लेखक संघ, दिल्ली के फेसबुक पेज से

रउवा खातिर:
मुहावरा आउर कहाउत
देहाती गारी आ ओरहन
शब्द के उल्टा अर्थ वाला शब्द

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