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भोजपुरी कविता: पटरी ना खाई

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भोजपुरी कविता: पटरी ना खाई
भोजपुरी कविता: पटरी ना खाई
भोजपुरी कविता: पटरी ना खाई

डॉ जीतराम पाठक जी के एगो कविता
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पटरी ना खाई
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अरुआइल बा बात तहार, हटाव फरका,
ले अइब एने अब त पटरी ना खाई
चूरी- टिकुली के हम सुनलीं गीत अनेक
पाकि गइल बा कान ,
कपार बथत बा फरके,
लागल हरके
तू बाद अइसन उजिआवन
दुपहरिया में गीत भोर के गावत बाड़
लागल बाटे आगि, बइठी पगुरावत बाड़
मारि फसकडा बइठल बाड़ मह्कल अइसन,
पगुरइब एने अब, त पटरी ना खाई
देखल चोली
तहरा तब लेसि देलसि बाई,
मुस्की-मटकी पर भइल तू खूब पतवरा
आँचर तर घुसिअइल
चूमा-चाटी में कब से अझुराइल बाड़,
नाग- फांस में कब से तुहीं धराइल बाड़ नवकी
नवकी बात बोलावति बाटे कब से देख,
ढेर चोन्हाइब अबकी, त पटरी ना खाई

( डॉ जीतराम पाठक के जनम चन्द्रपुरा-हवेजपुर- भोजपुर में 1928 में भईल रहे. इहाँ के भोजपुरी के व्यकरण आ भाषा-विज्ञान पर काम कइले रही. आरा से निकले वाला मासिक पत्रिका- भोजपुरी साहित्य के संपादक पाठकजी रहलीं.)

आभार: अखिल भारतीय भोजपुरी लेखक संघ, दिल्ली के फेसबुक पेज से

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