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भोजपुरी के गीतकार मोती बी.ए. के जनमसदी प हिंदी भवन में व्याख्यान

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भोजपुरी के गीतकार मोती बी.ए. के जनमसदी प हिंदी भवन में व्याख्यान

आखर आ मैथिली-भोजपुरी अकादमी के संजुक्त तत्वावधान में भोजपुरी के गीतकार मोती बी.ए. के जनमसदी प ‘हिंदी सिनेमा के बिकास में लोकसंगीत आ लोकभाषा के परभाव (बिशेष संदर्भ : भोजपुरी) विषय प दिनांक 02.08.2019 के दिल्ली के हिंदी भवन में एगो व्याख्यान के आयोजन भइल।

कार्यक्रम में मुख्य वक्ता परसिद्ध लेखक, शास्त्रीय, सुगम आ लोक संगीत के जानकार डॉ. प्रवीण झा अउर महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के शोधार्थी श्री देवेंद्र नाथ तिवारी मोती बी.ए. के कृतित्व आ व्यक्तित्व प प्रकाश डललन।

भोजपुरी के गीतकार मोती बी.ए. के जनमसदी प हिंदी भवन में व्याख्यान
भोजपुरी के गीतकार मोती बी.ए. के जनमसदी प हिंदी भवन में व्याख्यान

श्री तिवारी अपना बीज वक्तव्य में बतवलन कि मोती बी.ए. के मूल नाँव मोतीलाल उपाध्याय रहे, लोग उनुका के पेयार से नन्हकूओ कहिके बोलावत रहे। ऊहाँ के जनम बरेजी, बरहज तहसील, देवरिया (उत्तर प्रदेश) में भइल रहे। ऊहाँ के गोरखपुर के संत एंड्रयूज से आपन बुनियादी शिक्षा प्राप्त कइनी आ महादेवी वर्मा से ढेर प्रेरित रहीं। मोती बी.ए. जी के बाबूजी एगो अमीन रहीं, एहिसे ऊहाँ प उर्दू के असर रहे। हिंदी, संस्कृत, भोजपुरी, उर्दू आ अंग्रेजी पाँचो भाषा प मोती जी के बेजोड़ पकड़ रहे। ‘अरी सखी! घूँघट का पट खोल…’ ऊहाँ के पहिला कविता रहे। मोती जी ‘सनन-सनन सन बहे…’ जइसन गीत लिखनी त जानल-मानल संगीतकार रवींद्र जैन ऊहाँ के लिखल गीत ‘अइसन दुनिया बनवले ए रामजी…’ के आपन आवाज दिहलन। ऊहाँ के कम से कम 80 फिल्मन में सई गो से जादा गीत लिखनी।

व्याख्यान करत देवेन्द्र नाथ तिवारी जी

पंडित सीताराम चतुर्वेदी ऊहाँ के गुरु रहीं। सन 1936 में ऊहाँ के बनारस गइनी। श्री केदारनाथ सिंह, श्री बेढब बनारसी, श्री हरिवंश राय बच्चन के साथे ऊहाँ के एगो मंच प कविता करे के मोका मिलल। 1942 में ऊहाँ के जब लाहौर गइनी त ओ घड़ी हिंदी सिनेमा में खाली तीसरा रचनाकार रहीं। हालांकि तब ऊहाँ के आर्थिक इस्थिति बढियाँ ना रहे। ऊहाँ के जोहरा बेगमो खाती गीत लिखनी। मोती जी के सृजन काल लगभग साढ़े छव दशक (65 बरिस) ले रहल। अपना जिनिगी के आखिरी 15 बरिस में ऊहाँ के ढेर रचना कइनी। हजारी प्रसाद द्विवेदी जी के उनुका बारे में कहनाम रहे कि ऊहाँ के उचित सम्मान ना मिलल। आपन बात राखत श्री तिवारी कहलन कि कुछ लो के व्यक्तिगत प्रयास से उनुका नाँव प बनावल एगो सड़क के सिवा, आजु देवरिया में मोती जी के नाँव प कुछुओ नइखे।

हिंदी सिनेमा के विकास में लोकसंगीत आ लोकभाषा के परभाव प बोलत डॉ. प्रवीण झा कहलन कि लोकगीतन के डिब्बा में बन क के नइखे राखल जा सकत काहेंकि बहुआयामी होला। भोजपुरी गीतन में रोमांस के जवन निराला अंदाज बा दोसर भाषा में शाएदे कहीं देखे-सुने के मिलेला। 1931 में जब पहली हिंदी फिलिम आइल त ओह घड़ी के फिलिम में दृश्य कम आ 50-60 गो गीत रहत रहे। 1931 में एगो गीत ‘साँची कहो बतिया, कहाँ रहे सारी रतिया…?’ आइल रहे। साँच पूछीं त ई गीत बिहार-उत्तर प्रदेश के भाषा के गीत हऽ। पंजाब के टप्पा प बात करत कहलन कि ई टप्पा फिलिम में ना आवेला। लोकगीतन में स्वरमान अधिक होला जवन कि फिलिम के माहौल के अनुसार सुगम ना होला। एहीसे फिलिम में लोकगीत ना देखे-सुने के मिलेला।

हिंदी सिनेमा के विकास में लोकसंगीत आ लोकभाषा के परभाव प बोलत डॉ. प्रवीण झा

आजु लोग भोजपुरी भाषा से एहूँसे परिचित बा काहेंकि भोजपुरी गीत फिलिम में देखे-सुने के मिलत बा। आजुकाल्हु त फिल्मी धुनन प भजनो गावात बा। पंजाबी भाषा के उदाहरण देत कहलन कि पंजाबी अपना लोकगीतन के बेवस्थित कइके (सुर बदली क के) हिंदी सिनेमा में जोगदान दे रहल बा। ‘एही ठईंया मोतिया हेरइले हो रामा…’ ‘मोहे पनघट पर नंदलाल छेड़…’ जइसन ठुमरी (पतुरियन/तवायफ लोग के गीत) के लोकगीतन के श्रेणी में राखे के चाहीं। साँच कहीं त फिलिम में सभसे अधिका लोकगीत बिहार आ उत्तर प्रदेश के क्षेत्रन से लिहल गइल बा। ‘पान खाए सइयाँ हमार…’ आ ‘पीपरा के पतवा…’ जइसन गीत सुगम संगीत के अंतर्गत त आवत बा बाकी एकनी के लोकगीतन के श्रेणी में राखे के चाहीं। अउर अधिक भोजपुरी लोकगीतन के सिनेमा में ले आवे खाती एकर सुर थोड़ा-बहुत बदले (मोडयूलशन) के जरूरत पड़ी। असल में लोकगीतन के जवन खुलापन बा जदि ओकरे के फिलिम में देखावल जाव त ई भौंडापन नियन लागी। एपे धेयान देला के जरूरत बा। संगीतकार चित्रगुप्त त ‘जा-जा रे सुगना…’ जइसन गीत लता मंगेशकर से गववलन। अब के इस्थिति के अनुसार लोकगीतन को ढाले के प्रयास करे के चाहीं।

आखर के बरिष्ठ सदस्य श्री अनूप श्रीवास्तव मोती बी ए जी के साथे बितावाल आपन समे के इयाद करत कहलन कि ‘गुरुजी (मोती बी ए) अपना संघर्ष के हलुक बना देत रहीं। ऊहाँ के एगो बेजोड़ अदिमी रहीं। ऊहाँ पर आ ऊहाँ से प्रेरित आपन लिखल कुछ रचना सुनवलन।

आखर के बरिष्ठ सदस्य श्री निराला बिदेसिया अपना समापन वक्तव्य में कहलन कि पद्मभूषण शारदा सिन्हा, पद्मश्री विंध्यवासिनी देवी आ स्नेहलता जी के बाद बिहार के सांस्कृतिक अंतर के डॉ. प्रवीण झा जी पाट रहल बाड़न। ऊहाँ के एह बात प जोर देत कहनी कि रसूल मियाँ, मोती बी ए, भोलानाथ गहमरी आ इहाँ अइसन भोजपुरी के अउर नायक लोगन प बतकही आ व्याख्यान होखे के चाहीं आ आजु के एह कार्यक्रम के मूल उद्देश्यो ईहे बा। असल में भोजपुरी के अतीत के बाते नइखे कइल गइल। अभी ले हमनी के अपना कतने नायकन के बारे में ठीक से नइखीं जा जानत। अइसन कार्यक्रम से दुनिया वह भोजपुरिय्या नायकन के जानि-सुनि-देखि रहल बिया। घरे-घरे गावल जाए वाला गीत ‘अँगनइया बीचे तुलसी लगाइब ए हरी…’ भोजपुरी के गीतकार मोती बी ए जी के लिखल गीत हऽ, ऊहाँ के 1948 से पहिले से संस्कृत, हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी के साथे-साथ भोजपुरियो में लिखत रहीं। मशहूर गीतकार शैलेंद्र कब्बो भोजपुरी इलाका में ना रहलन, बाकी भोजपुरी में कमाल के गीत लिखलन। अबले भोजपुरी के दुविधा ईहे रहल बा कि ई ‘भ्रम की शिकार’ रहल बिया। जेकरे के देखीं ऊहे तीन्ना होके कहे लागऽता कि भोजपुरी के शुरुआत ओकरे से भइल बा। ईहो एगो कारण बा कि मोती बी. ए. जी जइसन भोजपुरिया नायकन के बारे में जानल-समझल जरूरी बा। कैलाश गौतम, विश्वनाथ शाहाबादी, मनोरंजन प्रसाद सिन्हा, बाबू रघुवीर नारायण, भोलानाथ गहमरी जइसन नायकन के बारे में बात करे के पड़ी।

भोजपुरी के गीतकार मोती बी.ए. के जनमसदी प हिंदी भवन में व्याख्यान उपस्थित अतिथि गण के एगो ग्रुप फोटो

कार्यक्रम जे संचालन मैथिली-भोजपुरी अकादमी, दिल्ली सरकार के सदस्य डॉ. एम. के. पाण्डेय जी कइलन। डॉ. पाण्डेय मोती जी के बारे में बतावत कहलन कि ऊहाँ के जनम 01.08.1919 के भइल रहे। हालाँकि मोती जी अपना जनम के बारे में लिखत बानी कि हमरा जनम के सही तिथि के बारे में नइखे मालूम, बुला चार साल के रहीं त हमार कुंडली चोर चोरा के ले गइल। एही से हमरा के ‘अतिथि’ मानल जाव। अकादमी के ओर से श्रीमती सुनीता नारंग, लेखाधिकारी अतिथि, वक्ता आ उपस्थित श्रोता लोग के धन्यवाद ज्ञापन कइली।

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