दिलीप पैनाली जी के लिखल भोजपुरी कविता कई साल बीतला का बादो

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फरदूगी के फुर फुर उड़ल,
रूखी के बेढ़ी पर धउरल।
चढ़ पुतली पर तुड़ल अमरूद,
धनिया मकई सोहल पउरल।
स्मृति पटल पर अंकित बा आजो,
कई साल बीतला का बादो।।

बगिया बीच कोइलर रिगावल,
मूषक काँड़ पानी पटावल।
भड़कावल मध बर्रे के छाता,
ककड़ी फूट लालमी चोरावल।
नजर का सोझा नाचत आजो,
कई साल बीतला का बादो।।

डोमकच देखल लूका लूका-के,
पढ़ल पहाड़ा गीत गा गा-के।
भगावल गर्मी नहा नहा-के,
खाइल अलुआ पका पका-के।
मन पार मनवा झुमत बा आजो,
कई साल बीतला का बादो।।

सोमारल कोरल कोण लगावल,
बीया गेंड़ी के धरिआवल।
खाल खेतन में छीटल पयरा,
खुरपी फार के पनिआवल।
बिसरले ना बिसरत बा आजो,
कई साल बीतला का बादो।।

झोरा बोरा संग स्कूल गइल,
कान धई के नी डाउन भइल
हस्त करम ला बरलका रस्सी,
कियारी बना-के खेती कइल।
छवि सोझा से डगरत बा आजो,
कई साल बीतला का बादो।।

रहे बनत पाक शास्त्र में खाना,
तारा बजका व्यंजन नाना।
सभ लोग खाए दबा दबा के,
केहू ले जाय बान्ह के छान्ना।
सुखद दृश्य झलकत बा आजो
कई साल बीतला का बादो।।

मजा देवे बइसाख आ जेठ,
उतरस कनिया जोड़ा के गेंठ।
उपजत अन्न बने खेतिहर राजा
पैनाली सुतस फूला के पेट।
रोजिए मुआवत बा आजो,
कई साल बीतला का बादो।।

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