धन-कटनी और सिंगार | अमरेन्द्र जी

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विधा:-देव घनाक्षरी
विधान:-8-8-8-9
विषय:-धन-कटनी और सिंगार

खेतवा की आरी आरी,सुनरी सुग्घरी नारी,
पीयरि पहिरी सारी,छमके छमकि छमक।
हँसुआ से काटि धान,गावेली मधुर गान,
कर के कंगन दूनो,खनके खनकि खनक।।

लामे लामे पारि धरे लामे पलिहारि धरे,
गुर्ही करे बोझा बान्हे,धनिया चमकि चमक।
पुरुआ बयार बहे,रूपगर नार लागे,
गते से गुजर जाये,रहिया छनकि छनक।।

धन-कटनी और सिंगार
धन-कटनी और सिंगार

पिया खरिहानी करी,आँटी अरु बोझाधरी,
सभके ही सोझाधरी, भरि के अंकवारि धरि।
चानीझरी रानीझरी,नारी रतनारी झरी,
हीरा पन्ना मोतीझरी,सोनाचुर बखारि भरि।।

चूरा बने पोहा बने,खीर के कटोरा बने,
जन गन मन सभ, हरसतु हुलसि करि।
बहरी अंजोर करे, भीतरी बिभोर करे
सभ मिली हँसेलनि,उजसतु उजसि उर।।

सजनी बिचार करे,मन मनुहार करे,
पिया से गोहार करे,माँगतु नथ लटकन।
सजना बाजार करे,जातु है सोनार घरे,
निक से निरेखि करि,कीनतु धन सुबरन।।

 सिंगार 

पियवा जतन करे, मनवा मगन रहे,
पग के नुपूर तब, झनके झनकि झनन।
पिक करे कुकु कुकु,हिय करे हुकु हुकु,
साँस करे धुकु धुकु,खखने खखनि खखन ।।

आँखि में कजरा डारि,केस में गजरा झारि,
सोरहो सिंगार करी,चलसु धनि बनि ठनि।
लंगहा लहार मारे, चुनरी ओहार करे,
देखे लो ठहर जाये, बोलसु नहि तनि मनि।।

कारि केस घनाघोर,नाक सुगना के ठोर,
सुघराई पोरे पोरे,देखे लो बहकि बहक।
केरा थम्ह जस गोड़, लगे बहुते बेजोड़,
लोग करे खूबि होड़,कड़के कड़कि कड़क।।

ओठ भोरवा के कोर , तन शशि जस गोर,
देखि ललचे चकोर,गमके गमकि गमक।
अति मृदुल कपोल, हर अंग ह सुडोल,
मीठ बोल अनमोल, चलतु सहकि सहक।।

हिया हिलकोर मारे,मार बड़ी जोर मारे
पूरा पोरे पोर मारे, मन जीव हहरि मरि।
हरियर मन रहे,मन में लगन रहे,
सजना तपन मरे,बहुरिया अगन जरि।।

देवर दुआर पर,ननदी अटार पर,
ससुई इनार पर, सजनिया तरसि मरि।
प्यार आरपार रहे, मन उजियार रहे,
सजना बदरा बनि, सेजरिया बरसि झरि।।

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