इतिहास के भुलाइल पन्ना फतेहबहादुर शाही : तैयब हुसैन पीड़ित

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राजा फतेहबहादुर शाही: भोजपुरी क्षेत्र के इतिहास में 1857 के क्रांति एगो अइसन प्रस्थान – बिन्दु बा जहाँ से जे पीछे झाँकब त शस्त्र का साथे जूझत हुस्सेपुर (गोपालगंज, बिहार) के पहिलका देशभक्त आ अंग्रेज-विद्रोही राजा फतेहबहादुर शाही मिलिहन जे 1765 ई. में ही ईस्ट इंडिया कंपनी के टैक्स देवे से इंकार कके लगभग 23 बरिसन ले कबो छुप के त कबो डिगर, कबो मुगल बादशाह शाहआलम द्वितीय राजा बलवन्त सिंह, चेत सिंह का साथे त कबो अकेले अंग्रेजन से लड़त रहलन आ एकर आज तक कवनो प्रमाण नइखे कि पकड़ल गइलन भा मार दिहल गइलन । आईं. पहिले एह बहादुर शस्त्रधारी भोजपुरिया से हमनी परिचित हो जाईं जा जेके इतिहास अपना कन अबहीं ले उचित जगह ना दे पवलख ।

राजा फतेहबहादुर शाही | Raja Fateh Bahadur Sahi

फतेहबहादुर शाही 1750 ई. में ही हुस्सेपुर (बिहार में गोपालगंज जिला के भोरे अंचल के एगो गाँव) के राजगद्दी पर बइठ चुकल रहस । तब हुस्सेपुर राज्य में सारण जिला के लगभग सब क्षेत्र, उत्तरप्रदेश के देवरिया, सलेमपुर, पडरौना आदि पड़त रहे । एही से हुस्सेपुर राज्य के दू जगहा आपन राजस्व जमा करे के पड़त रहे। बिहार के राजस्व, कोलकत्ता के नवाब के पटना के खजाना में आ उत्तरप्रदेश के राजस्व अवध के नवाब के गोरखपुर खजाना में ।

पलासी के लड़ाई के बाद मुगल बादशाह शाहआलम द्वितीय आ अवध के नवाब शुजाउद्दौला के बीच बक्सर के लड़ाई 1764 ई. में भइल । अंग्रेजन से मुक्ति के कोशिश मीरकासिम के त सफल ना हो सकल । एह लड़ाई में फतेहबहादुर शाही, शाह आलम द्वितीय के साथ देले रहस आ उनकर प्रिय पात्र बन गइल रहस ।

1765 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी बंगाल, बिहार आ उड़ीसा के दीवानी, छब्बीस लाख रुपया सालाना पेन्शन के बदला में शाहआलम से खरीद लेलक । हुस्सेपुर से टैक्स वसूले के ठेका गोविन्द राम नाम के एगो आदमी के देलक । बाकिर फतेहबहादुर शाही कंपनी के टैक्स देवे से इंकार क देलन आ पहिलही लेखा आपन टैक्स नवाबन के खजाना में जमा करत रहलन ।

राजा फतेहबहादुर शाही
राजा फतेहबहादुर शाही

फतेहबहादुर शाही के एह निर्णय का साथे तब के बनारस के राजा बलवन सिंह भी रहलन आ फतेहबहादुर शाही के साथ दिहलन । शाही के एह विद्रोह के बाद हुस्सेपुर से 8 किलोमीटर पूरब बड़का गाँव (लाइन बाजार) में अंग्रेजी सैनिक भेजल गइल । उहाँ बैरक बनल आ लड़ाई छिड़ गइल । फतेहबहादुर शाही पहिले त खुल्लम-खुल्ला अंग्रेजी फौज के मोकाबला कइलन, फेर बागजोगनी के जंगल में छिप के गुरिल्ला लड़ाई लड़त रहलन । बागजोगनी के जंगल, अवध के नवाब के अधीन पड़त रहे, जहाँ बिना अनुमति कंपनी के सैनिक ना जा सकत रहस । एह लड़ाई में फतेहबहादुर शाही के प्रजा उनका साथे रहल । 1772 ई. में गोविन्द राम उनका हाथे मारल गइलन । शाही के बहादुरी आ आतंक से तंग आ के सारण के कलक्टर, अंग्रेजी कंपनी के बोर्ड आ गवर्नर जनरल के चिट्ठी लिखलन कि जेतना परेशानी हमनी के पेशवा से ना भइल, ओह से जादे परेशानी हमनी के फतेहबहादुर शाही से हो रहल बा ।

कंपनी, हुस्सेपुर के महाराज फतेहबहादुर शाही के पटना बोलवलक । संधि कइलक बाकी एह में दूनों पार्टी के आपन आपन चालाकी रहे । शाही के दूगो बेटी के शादी करे के रहे जवन बलवंत सिंह के मरला का बाद बनारस के राजा भइल चेत सिंह के बेटा आ भतीजा से तय कइलन । चेत सिंह के बाइस लाख अड़सठ हजार एक सौ अस्सी रुपइया के सालाना मालगुजारी पर बनारस के गद्दी पर 1776 ई. में कंपनी बइठवले रहे । चेतसिंह के कुछ आउर सुविधा मिलल रहे, जइसे सुरक्षा, न्याय-व्यवस्था आ सिक्का ढाले के अधिकार ।

एह शादी के खबर जब वारेन हेस्टिग्स के मिलल त चेतसिंह पाँच लाख के आउर मालगुजारी बढ़वा ऐन शादी के दिन कन्यादान करत खा पर नाराज होके लार्ड गर्वनर से देलक आ फतेह बहादुर शाही के पकड़ लेवे के योजना बनवलक । खीस में शाही के जियत भा मरल पकड़े खातिर दस हजार रुपया के ईनाम के घोषणा कइलक ।

एने हुस्सेपुर से मालगुजारी तसीले ला मीर जमाल नाम के एगो खूँखार आदमी के अधीक्षक नियुक्त कइलक । दुर्भाग्यवश फतेहबहादुर शाही के एगो चचेरा भाई बसंत शाही गद्दारी कके मीर जमाल का साथे हो गइल रहस ।

फेर घटना कुछ एह तरेह से घटल कि फतेहबहादुर शाही भेष बदल के ब्राह्मण का रूप में अपना बेटिय के कन्यादान करे में सफल हो गइलन । अंग्रेजी फौज मुँह ताकत रह गइल आ एक रात अचानक चढ़ाई कके शाही का हाथे मीर जमाल आ बसंतशाही दूनों के सिर काट लेहल गइल । राजा चेतसिंह बढ़ल मालगुजारियो देवे से इंकार क गइलन ।

वारेन होस्टिंग्स के नेतृत्व में चेतसिंह से बनारस में लड़ाई छिड़ गइल । फतेहबहादुर शाही, चेतसिंह के साथ दिहलन । ई लड़ाई 1781 से 1788 ई. तक चलल । एह में चेतसिंह पकड़ल त गइलन बाकी सैनिकन के चकमा देके हथकड़ी सहित गंगा में कूद के अजि के महल्ला चेतगंज के चेतसिंह थार पर बच निकललन । फतेहबहादुर शाही के बड़ बेटा मारल गइलन बाकिर वारेन हेस्टिंग्स एह लड़ाई से एतना घबड़ाइल कि चुनार गढ़ के रास्ता लेलक । भागे के हड़बड़ी में घोड़ा पर हौदा कसे आ हाथी पर जीन, जबकि घोड़ा पर जीन कसाला, हाथी पर हौदा । एह घटना के वर्णन मिल्टन विलसन अपना किताब ‘हिस्ट्र ऑफ बिहार इंडियो फैक्टरीज’ में कइले बाड़न । उनका मोताबिक तबके नट-नटिन अपना लोकगीत में गावसs-
‘घोड़ा पर हौदा, हाथी पर जीन
भागल चुनारगढ़ वारेन हेस्टीन ।

आखिर में हुस्सेपुर के राजमहल ढाह दिआइल । बसंतशाही के औरत सती हो गइली । उनकर नाबालिग पोता छत्रधारी शाही, बालिग भइला पर 27 फरवरी 1837 के ‘हथुआ राजा के पहिल राजा बनावल गइलन । फतेह बहादुरशाही 1788 ई. में हुस्सेपुर छोड़ के तमकुही में आपन कोठी बनवा के परिवार साथे रहे लगलन । हुस्सेपुर राज, तमकुही आ हथुआ दू राज में बँटा गइल |

शाहियो अपना बेटा के गद्दी सँउप के 1790 से 1808 ई. तक ले संन्यासी- भेष में कबो-कतो देखाई पड़लन, फेर अलोपित हो गइलन । केहू कहेला-महाराज चेतसिंह का साथे महाराष्ट्र चल गइलन, केहू कहेला- हरमेसा खातिर संन्यास ले लेलन । खाली बिहार अभिलेखागार के सेवा-निवृत्त उपनिदेशक डॉ. काजमी के कहनाम बा जे उनका नजर से एगो अइसन दस्तावेज गुजरल बा, जवना का अनुसार एगो साजिश में अंग्रेजन का हाथे मारल गइलन ।

अबतक फतेहबहादुर शाही पर हिंदी में, ‘भारतीय स्वतंत्रता का प्रथमवीर नायक’ (निबंध-संग्रह, संपादक- अक्षयवर दीक्षित, प्रकाशक- अभिधा प्रकाशन, दिल्ली-मुजफ्फरपुर, 2007 ई.). ‘और कंपनी काँपती रही…..’ (उपन्यास, लेखक- अक्षयवर दीक्षित, प्रकाशक-अनय प्रकाशन, नई दिल्ली, 2009), एक गुमशुदा इतिहास’ (नाटक, लेखक- तैयब हुसैन, प्रकाशक- शब्द-संसार, पटना, 2009) आ भोजपुरी में ‘जमाल- बध’ (खंड काव्य, कवि-कुलदीप नारायण ‘झड़प, प्रकाशक-भोजपुरी साहित्य संस्थान, पटना-6 ) पहिला नायक (नाटक, लेखक सुरेश कांटक ) ।

Note: इ आलेख भोजपुरी साहित्य सम्मेलन पत्रिका से लिहल गइल बा ।

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