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उ धइले जोगी के भेष त

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उ धइले जोगी के भेष त पलंगीया पे ललकी चदरीया का होई,
जब नयनवा बरसे बारहो पहरीया त सावन के बदिरया का होई,
सुख मे सोचले बाती,जोिगया भइले जन्म के संघाती,,
जब रजउ धुमे बन जाके,त ई पीया के नगरीया का होई…

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शुबहे नीकली शाम ढले घर आई
घरे के बाँधल मोटरी दुपहरीया खाई
ना माने मन भइसन के चाहे
भुसा चोकर चाहे जेतना खीलाई,
चर लेहला पर इनके देखी
नदी पोखरा मे बोहीयाईल,,
दुध मठ्ठा संघे रोटी दबाई
बात चरवाही के कइसे भुलाई…

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दिन दुपहरीया रात बीराते
धेरले बा मुसीबत आज हमरा साथे
लइका बेमार उनके ना सहुर बा
दारु चढीके सइया सुतल बेसहुर बा,
कउन जतन करी केहके गाहराई
इ वीपतीया के दुख केहके बताई,
दुखवा काटेला देहीया बे कसुर बा
दारु चढा के सईया सुतल बे सहुर बा
ननदी ना जागे रहे गलीया फुलइले
सासु जी खाली मोरा साथ नीभइल
भाई के लछन परल बा जे भसुर बा
दारु पी के सइया सुतल बेसहुर बा

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