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धनंजय तिवारी जी के लिखल नईहर के रास्ता

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धनंजय तिवारी जी
धनंजय तिवारी जी

“अब हमसे तहरा माई के सेवा ना होई” बाल्टी पटकत चनर बो कहली ” कह कि मथुरा काशी चल जास। इन कर भार उठावे के कर्जा हमही खईले बानी का। इनका साथ के सब बुढ त भगवान किहाँ चल गईल लोग। ना जाने कवन पाप कईले बाड़ी कि मउवत भी नईखे आवत”

चनर कुछु ना बोलले। मने मौन सहमती उनहू के रहे अपना मेहरारू के बात में। अपना माई खातिर ओइसन बात सुनके उनके चुपे रह गईल ऐ बात के सबूत रहे।
चनर के माई के औरी पाप के बारे में त केहू ना जानत रहे, ना कहित पर एगो पाप उ जरूर कईले रहली औरी उ रहे चनर जईसन बेटा के जन्म दिहल। पूत के कुपूत उ त ना कहस काहे कि माता कुमाता त ना हो सकत रहे लेकिन इ बात सगरो गाँव कहे। नात ओयिसन गाई स्वभाव वाला के साथे भी ओ तरह के बर्ताव करे ला केहू।

चनर उनकर इकलौता बेटा रहले। उनका जनम खातिर कवन कवन भाखौती उ ना मनले रहले। कवनो अईसन देवी देवता ना रहले जेकरा चौखट पर उ अउरी उनकर आदमी अपना माथा ना पटकले रहे लोग। औरी फिर 17 साल के तपस्या के बाद चनर के जन्म भईल। खूब धाम धाम से उनकर छठिहर मानल रहे। चनर के बाबूजी किसान ही रहले पर तबो उनका छठिहार के शोर पूरा जवार में भईल रहे। फेरु चनर के पालन पोषण औरी शिक्षा दीक्षा में कवनो कसर ना राखल लोग। चनर पढ़े में बहुत नाम त ना कईले पर तबो माई बाप के पुन्य प्रताप से गाँव के पास ही सरकारी मास्टर बन गईले।

फेरु खूब धूम धाम से बियाह भईल औरी फेरु ओही दिन से चनर के माई बाबूजी के करम फूट गईल। चनर के मेहरारू महा रफ़ औरी झगडालू निकलली। ना बड के लिहाज ना कवनो बात के तरीका। नतीजा उहे सासु बन गईली औरी चनर के माई पतोह। घर के बात कही बाहर ना जा ऐ लिहाजे चनर के माई सब सही लेस अउरी एही के फायदा उठा के चनर बो हर हद के पार क देले रहली। एही कुहुक में एक दिन चनर के बाबूजी सुतले त फेरु दुबारा ना उठले। उ त गयिबे कईले पर अपना साथे ले गईले चनर के माई के जिनगी के बचल खुचल सुख भी। इहाँ तक कि उनका गईला के बाद त चनर के लईका कुल भी ईया के गरिया द सन। चनर बो आपन संस्कार अपना औलाद कुल में खूब निमन से भरले रहली।

चनर बो के बात चनर के माई के कान में भी पडल। उनका चिंटू के माई के बात इयाद पड़ गईल। दू दिन पहिले ही त कहत रहली। अतना दुःख सहला ले निमन त चाची जी रौवा नईहर ही चल जयिती। कम से कम दू बेरा खाए के औरी इज्जत के रोटी त मिलित। नईहर के एकही भतीजा रहे औरी उहो मास्टर रहे। पर ओकरा औरी चनर में जमीन आसमां के फर्क रहे औरी जब भी उ नईहर जास उ उनके आवे ना देस। लेकिन नईहर जीवन बितावे के जगह त नानू ह।
आजू फेनु मन में उनका भईल कि चिंटू के माई के सलाह मान लेस का। नईहर ही चल जास का।

भतीजा भतिज पतोह औरी उनकर लईका लईकी केतना माने ले सन उनके। गयीला पर आँख में रखिह सन। पर फिर उनके अपना इयाँ के बात इयाद आ गईल जवन उनके विदा होखे के समय उ कहले रहली – बेटी घूमे फिरे जब आवे के होई त नईहर जरूर अईह। लेकिन ससुरा से भाग के रहे खातिर नईहर के रास्ता जनि धरिह। ओकरा ले निमन इनार पोखरा ध लिह।”

उ अपना इयाँ के बात कईसे काट सकत रहली। पर अब उनकर अयिजा रहल भी त असंभव रहे। चनर बो त साफ़ क देले रहली कि अब उनके उ अपना घर में ना रहे दिहे। फेरु उनकर नजर अपना ससुर के बनवावल इनार पर चल गयील। ऐ ईनार से पानी त बहुत दिन ले पियले रहली। अब इहे उनका मुक्ति के भी मार्ग बचल रहे।

अगिला दिने होत बिहान पूरा गाँव में हल्ला रहे कि चनर के माई इनार में गिरला से मर गईली ह। हालाँकि सच सबके पता रहे औरी लोग के बीच इहे सवाल रहे कि उ काहे ना नईहर के रास्ता ध लेहली।

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