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भोजपुरी कहानी महरिन | नर्बदेश्वर सिंह ( मास्टर साहब )

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भोजपुरी कहानी महरिन | नर्बदेश्वर सिंह (मास्टर साहब ) | Jogira

परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प, रउवा सब के सोझा बा भोजपुरी कहानी महरिन , पढ़ीं आ आपन राय दीं कि रउवा नर्बदेश्वर सिंह ( मास्टर साहब ) जी के लिखल भोजपुरी कहानी कइसन लागल आ रउवा सब से निहोरा बा कि शेयर जरूर करी।

अजोरिया के माईक नाव इयादि पड़ते मन सिहरि उठल । मन भारी होइ गइल । साथे-साथे तमाम घटना के इयादि सिनेमा के रीली के तरह दिमाग मे घूमे लागल । अजोरिया के माई के हमरे घर के सब लोग बड़े लिहाज से महरिन कहि के बोलावे । महरिन के जब हम कक्षा आठ में पढ़त रहलीं अउर अपने ननिअउरे से अपने घरे – गाँवें हमेसा के लिए रहे खातिर आ गइली तबसे देखत रहली । वो समय भी महरिन के अपने सेवा के बले एक परिवारीजन का रुतबा हासिल रहे।

महरिन क एकठा देहि, सुतुआ नाकि, कजरार आंखि, मझोला कद, रंग साँवर रहले पर भी एक सुघर सरीर का मालकिन रहली । चउका में बर्तन रहे चाहे न रहे बाकिर तसला रहे तऽ चौका के ढेर काम आसान हो जाला । वोहि तरह से परिवार में महरिन का उपयोगिता रहे। कउनो काम परले पर सब केहू महरिन के इयाद करे । खालियो समय में देखीं कि दादी जेके सब मावा कहि के बुलावे महरिन उनके खटिया के बगले मे बइठल चाउर, दाल बीनत फटकत रहें अउर गलचउर करत रहें । मावा कबो-कबो हँसी-मजाक मे कहें- ‘करे महरिनिया का देखि के ते महरवा के साथे भागि अइले । महरिन कहे- ‘अरे ! दुलहिन जे भाग मे लिखल-बदल रहेला न, ओकरा साथे जाए के परेला । बुद्धि अन्हरा जाले । अउर का हम बताईं, इन्हई के संगे जिनगी बितावे के रहल, इहे करम मे लिखल रहलें, साथे चलि अइली ।

समय बीतत गइल – बदलत गइल । महरा के पहिलकी मेहरारू से दूठो लड़की रहली सन । हैजा परल | मेहरारू मरि गइल । महरा क कउनो दूर कS रिस्तेदारी महरनि के नइहरे वालन के इहाँ रहल अउर महरा का आइल गइल उहाँ होत रहल। ओही में न जाने का भइल कि महरिन एक राती का महरा के साथे चलि दिहली । महरा भागि के भिनुसहरा का वावा के गोरवारी खड़ा रहलन। बाबा के कुछ आहट मिलल । उठि के देखताना तर महरा महरिन के लिहले खाड़ बान- ‘महरवा ई का ह रे ! एह राम-राम बेरा के समय इहवाँ कइसे ?

महरा आपन सव करनी बतउलन, बाबा सुनि के सन्न रहि गइल। फिर बहुत कुछ सोचि-समझ के मावा के भीतर से बुलवन अउर महरा महरिन क सज्जी किस्सा सुनवलन । मावा हँसे लगलिन । महरिन के अलगे ले जाके कुछ पूछलीं- जचलीं अउर बाबा से कहलिन- ‘ई त कुल जवन कइल तवन कइल, एक काम करीं कि बड़की घरिया में एगो कोठरी एके दें देईं। कुछ दिन बदे । आगे हम देखब बाकिर केहू के एकरे बारे मे जानकारी न होखे पावे । महरिन मावा के देख-रेख में कुछ दिन ओही घारी मे रहली। कुछ दिन मे आपा-धापी, हाफा-डाफा बितले के बाद मावा महरा – महरिन के बियाह करा दिहली अउर एक ठो काठे के वकसा मे कुछ कपडा – लत्ता दे के महरा के घरे बिदा का दिहलीं ।

महरिन महरा के घरे रहे लगलिन । तीन ठो लइका, दूठो लइकी महरिन के भइली । महरा के पहिलकी वियाहे से भी दू ठो बेटी रहलिन स। महरिन सबके लेके आपन घर-गृहस्थी जमा लिहलिन बाकिर मावा अउर बाबा के बखरी से महरिन क नाता अटूट हो गइल जेके महरिन अवो रखावत रहली । बारह साल के उमर जब हम इहा रहे खातरि अइली तई सब कुछ हो गइल रहे ।

भोजपुरी कहानी महरिन | नर्बदेश्वर सिंह (मास्टर साहब ) | Jogira
भोजपुरी कहानी महरिन | नर्बदेश्वर सिंह (मास्टर साहब ) | Jogira

समय कवो एक तार तS रहेला नाहीं । बाबा जे मावा का पति रहलन जेके गाँव भर बावा कहे, मावा, मावा का लइका, पतोहि सब का सव कुछ समय के हेरे फेरकाल के गाल मे समाय गइल । बचि गइली हम अउर हमार खानदानी सहयोगी महरिन । दूनो लोगन के जिनगी कS जद्दोजहद सुरू ‘गइल। हमरो के अन्न आछत रोटी मुहाल हो गइल। हमरे बनावे नाहीं आवे अउर महरिन का छुअल-पकवल खाइल ना जा सकत रहल। काहे से कि कमजोर पटिदारे के जाति बाहर कइले कऽ कउनो बहाना चाहीं । ईहो देखे के रहल । हमहूँ सजग रहीं काहें से कि सगरो पटिदार सब तरह से मजबूत रहलें अउर घरियारे के नाई निगल जाए के खातिर हरदम ताक में रहें बाकिर करे पर भगवान कऽ किरिपा रही ओकर केहू का बिगार पाई । हमहूँ समय का थपेड़ा सहत-सहत मजबूत हो गइली । सादी – बिआह भइल । बाल-बच्चे भइलें | धन-दौलत भी ऊपर वाले के किरपा काम भर के हो गइल । महरिन के तीनों लइके भी बाल-बच्चन वाला हो गइलन सऽ । कमाई – धमाई भी अच्छा हो गइल बाकिर महरिन अउर बखरी के सम्बन्ध मे कउनो उतार-चढ़ाव नाहीं आइल । महरा अउर महरी के उमर में लगभग पन्दरह साल के अंतर रहल। समय पर महरा भगवान घर देखि लिहन । महरिन कुछ दिन उदास रहली बाकिर समय अइसन मरहम हऽ कि सज्जी घाव भरि जाला । महरिन भी सब कुछ भुलाइ के हमरे बाल-बच्चन अउर अपने नाती पोतन मे मन बहलउले रहें ।

एक बार का धंधा के चक्कर मे हम पाँच-सात दिन बाद घरे वापस अइलीं त देखलीं कि महरिन भी घरवे बाटी । सोचनी कि हम रहनी नाहीं हंऽ तऽ हो सकेला कि मलकिन दूकेले खातिर बुलवा लीहले होखें। हमहूँ जइसन कि आदत हऽ, यात्रा से अइले के बाद नहा-धो के नास्ता – पानी कइली । जब आराम करे बदे चरपाई पर लोटनी त मलकिन कहली कि महरिन तीन दिन से एहीं बाटी । हमहूँ कुछ पुछली – अछली नाहीं हईं, इहो कुछ बतावत नाहीं बाटी । इनके घरवो वाले कउनो पूछे नाहीं अइलन सन । एक दिन त हम देखनी हमसे छिप के बहुत रोअत रहली । खनवो नाहीं खात रहली, समझउले- बुझउले खा तऽ लिहली बाकिर रोअले का कारन नाहिए बतवली । हमहूँ चिन्ता मे परि गइली कि का हो गइल । मलकिन से कहली- ‘अच्छा तूं मति कुछ कहिह, हम अपने हिसाब से पूछब ।

महरिन जब सामने परली तऽ हम पुछली- ‘का महरिन, का हाल चाल बा।’ जइसन की हमेसा पूछीं । महरिन बहुत उदास मन से कहली- ‘बाबू ठीक बा।’ ‘अउर लइके – बच्चे… ?’ तब महरि कहली- ‘बाबू सब सयान हो गइल), बाल-बच्चन वाला हो गइलऽ । अब सबके पाँखि जामि गइलऽ। एतना कहत-कहत महरिन का आँखि डबडबा गइल । हमहूँ त जनते रहली कि कुछ बात बा जरूर बाकिर कुछ बोलनी नाहीं । बहरा निकलनी अउर सीधे महरिन के घरे पहुँचली । महरिन क मझिला लइका जे महरिन मझिला – मझिला कहि के बोलावें, वोहि से पूछलीं- ‘का
रे मझिला. . . .
का हाल चाल बा !’
‘ठीक बा बाबू !’
‘महरिन कहाँ बाटी !’
‘रउरहि किहाँ त गइल बा ।’
‘कब से ?”
‘दू-तीन दिन से लउकति नाहीं बा त सब जनिबे करेला कि जब रउरे घरे नाहीं रहेलीं त रतियो का दुलहिन के लगवे रहि जाले ।’

महरिन के घरवे के बगलिए में एगो आमे क पेड़ बा । मझिला से कह के एगो खटिया मँगा के हम ओहीं बइठि गइली अउर मझिला से कहनी- ‘तनि छोटकुआ – बड़कुआ के भी बोला लेब ।’
मझिलका कहलसि – ‘ का कउनो बाति बा का ?”
‘हँ बाति बा तबे न ।’

सब आ गइल । एगो लइका भेजि के अपने घरे से महरिनो के बुलवा लिहनी । बात सुरु हो गइल । सबके सामने पूछली – ‘महरिन का बात रहल, उहाँ आड़े तूं रोअत रहलू अउर मलकिन के पूछले पर कुछ बतइबो ना कइलू | साफ-साफ बताव ।’

महरिन फिर मुँह तोपि के फफक-फफकि के रोए लगली । ई देखि के तीनो पतोहि भी आ गइली सन । कउनो तरह से समझा-बुझा महरिन के चुप करा के महरिन से कारन पूछे लगलीं । महरिन कुछ बोली नाहीं पावें । पानी मँगा के पिअलीं । धीरे-धीरे महरिन जब तनि थाँव धीर भइली तबो सिसकि के कहल सुरु कइली- ‘बाबू सालन हो गइल बाकि हम केहू से कुछु कहनी नाहीं । बाकी आज कहे के परत वा । ए तीनहुन कऽ मेहरी हमार खाइल – पियल, सुतल – बइठल कुलि दुसवार क दिहले बाड़ी सन | बड़की अउर मझिली झगरा करिहन सन अपने में बाकिर गरियइहें सन हमके । छोटकी तऽ बोलेले कम बाकिर बोली तऽ जइसे बिच्छी इसे वइसे डसेले । छोटका तऽ बहराँ बा बाकिर ई दूनो अपने मेहरिन के कपारे पर चढ़ा हमार दुर्गति करावत बाड़न सन ।
हम पूछलीं- ‘आखिर काहे अइसन होत बा ।’

‘बाबू ई तीनो अलगे रहल चाहति बाड़ी सन | हम चुपचाप ए अभगवन का इज्जत रखे खातिर अउर महरा का आखिरी बात रखे खातिर कि जबले जीहे तबले एकरिन्ह के एकसाथे बान्हि के रखिहे, ई सब सहS तानी । मुँह से निकरी, जग में पसरी, हम पटाइल रहेलीं । बाकी अब सहि नाहीं जात बा । तीन दिन से रउरे घरे रहनी हऽ, कउनो पूछे नाहीं अइन सन कि जियत बाड़ी कि मरि गइली ।’

ई कहि के महरिन फेरु रोये लगली ।

हमरो मन भारी हो गइल । कउनो तरह से सम्हरि के महरिन के परिवार के ओर देखि के कहनी – ‘करे महरिन तोहन खातिर एतना भारी हो गइल बाड़ी । का- का तोहन खातिर ई नाहीं कइली ।’

जब कउनो बोलन नाहीं त हम महरिन से कहलीं, महरिन जब ए कुलिन्ह के अपने इज्जत का खियाल नाहीं बा त कबले ए कुलिन्ह खातिर गाली-गुपता अउर साँसति सहबू । ए कुलिन्ह के अलगा के हूँ हमरे इहाँ चलि आव । जउले हम बानी तउले तोहरा के कउनो बाति नाहीं रही । इहे कहि के हम चलि अइली ।

बाद मे ई पता चलल कि महरिन उठली अउर घर में जेतना अनाज अउर सामान रहल सब बहरा निकलली अउर तीन कूरा लइकन का अउर एक कूरा आपन, चार कुरा लगा दिहली । बड़की अउर मझिली आपन आपन कूरा उठा के अपने-अपने रहे वाले कमरा मे रखि लिहली सन। कुछ देर बाद छोटकी न जाने का सोचि के बाकी दूनो हिस्सा उठा के अउर महरिन का हाथ पकरि के अपने ओर का लिहलसि । ओकरे पीछे राज ई रहल कि ओकर लड़के छोटे-छोटे रहन सन, देख-भाल करे वदे एगो रखवार मिल गइल । साथ ही महरिन अपने सेवा के बदले बाबू भइया लोगन के इहाँ से हरदम कुछ न कुछ लेइ आइल करें, ओहू पर ओकर एकाधिकार हो जाई । महरिन एकरे वादो हमरे इहाँ आइल गइल नाहीं छोड़ली। हमरे इहाँ एकठो बड़ नीक अउर दुधारू गाइ रहे, जेके खियावे – पियावे अउर मलकिन का टकसार बजा के खाए-पिए भरि के ले जाइल करें ।

कुछ दिन चैन से बीतल बाकिर समय त बइठल ना रही नऽ । छोटकी का लइके भी सयान हो गइलन । महरिन कऽ जाँगर पाँजर भी घटे लागल | परिवार के उनकर जरूरत भी कम हो गइल । उपेक्षा, अपमान होखे लागल । महरिन सहनसील रहली । केहू से बिना कुछ कहले आपन समय काटे लगली ।

कुछ दिन अउर बीतल । महरिन चारपाई पकरि लिहली । हमरो इहाँ सब सहर पकड़ लिहलसि । न गाई का सेवा करेवाला केहू घरे रहि गइल न दूध दही खाए वाला । महरिन के छोटका लइका के बोला के ई कहा के कि ई गाई ले जो तोरे लइकनो के दूध दही मिली अउर महरिनो के एक पसर मिलल करी । महरिन के मिली की नाही वाकी ओकर लइके फइके कई वियान दूध दही खइहन सन । महरिन आइल – गइल त वन्द हो गइल रहे बाकी मलकिन ओही टोला के एगो मेहरारू से महरिन कऽ हालचाल लिहल करें अउर कबो-कवो नीक नेउर बनावे तऽ ओही से महरिन खातिर भेजवावल करें। ओहू खातिर कुछ मेहनताना ओहू के देवे के परे । छोटकी घरवें रहे बाकिर महरिन का खयाल नाहीं करे । छोटकुआ भी धियान ना दे । महरिन के सरीर गलत चलि गइल । हमरोतरफ से दवाई – दरपन का वेवत भर बेबस्था भइल बाकिर कउनो लाभ नाहीं भइल

एक दिन ओही टोला से एगो लइका आइल अउर हमसे कहलिस- ‘बाबू महरिन आप के बोलावति बाड़ी ।’ सुनते गइली । महरिन अँखियो से कमजोर हो गइल रहली । महरिन कहते, पुकार सुनि के एक हाथ आगे बढ़ा के आवाजे की ओर ताके लगली। आगे बढ़ि के महरिन का हाथ पकरि के हम पूछली- ‘महरिन काहे बदे बोलवलू हउ ।’
महरिन कहली- ‘बाबू अब हम चलब ।’
हम कहनी- ‘अइसन काहे कहत बाडू ।’
‘अब अइसने बुझात बा आ बोलवनी एह बढ़े किए तीनों मलेछवन के कवो दुरेहबे मति, ए कुलिन्ह का खियाल करबे ।’

राति भर नींद ठीक से नाहीं लागल। बार-बार महरिन का बात इयाद पड़ जा । दूसरे दिन सबेरखें चारी बजे नींद खुलि गइल । नित किरिया से निबरित होके प्राणायाम, व्यायाम करि के अजोर भइले पर खरहरा से दुआर झारत रहली कि महरिन के टोला की ओर से अंगरेजी बाजा SS आवाज सुनाई परे लागल। समझ मे नाहीं आइल की का बात हऽ । लगन-वगन बा नाहीं बाजा काहे बाजत बा। एही उहापोह में रहली कि एगो लइका ओही ओर से आवत रहल। पूछली- ‘काहे बाजा बाजत बा रे।

‘बाबू नाहीं जानत तानी का, बडकू का माई मरि गइली न

हमहूँ खरहरा रखि दिहली अउर महरिन के घरे पहुँची । देखन कि विमान सजत रहल। फूल, फल, एक-एक रुपया के नोटी के माला विमाने पर लगावल जात रहल। अचरज बहुत होत रहल कि अबहिन ले कउनो महरिन के ठीक से बतिओ नाहीं पूछत रहन सन, आज ई सजावट कैसे ।

एगो अदमी के किनारे ले जाके पूछली तऽ बतउलस- ‘बाबू महरिन के विवाहे के समय का एकठो बकसा रहल हS, जउने में महरिन ES अंतरधन रहत रहे अउर ओकर कुँजी हरदम महरिन के गटइए में लटकल रहे। बूढ़ा के मुअला के बाद कुँजी निकालि के बकसा खोलाइल हऽ । ओमे से दूनो गोड़े का आठ गो छारा अउर दूठो पहुँची निकलल ह । सोनारे के इहाँ बिकाइ के रुपया आइल हS । ओही से ई सब कुछ होता ।

थोरकी बेर में महरिन क बिमान चारि जने के कान्हे पर चढ़ि के आगे बढ़ल | स्वास्थ के लिहाज से हमूहूँ महरिन के कुछ दूर पहुँचा के वापस घरे की ओर भगवान से मनावत ई अइलीं कि हे भगवान अइसन महतारी अगले जनम में हमहूँ के दिह ।

Note: इ भोजपुरी कहानी नर्बदेश्वर सिंह (मास्टर साहब ) जी के लिखल किताब बगइचा से लिहल गइल बा।

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