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लोकगाथा से उपजल एगो कला शैली : मंजूषा चित्रकारी

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लोकगाथा से उपजल एगो कला शैली : मंजूषा चित्रकारी

मध्य वैदिक काल के सोलह गो जनपद में से एगो चंपानगर वर्तमान भागलपुर,बिहार के एगो कस्बा। मानल जाला कि अपना उत्कर्ष काल में ई एगो व्यापार के बहुत बड़हन केन्द्र रहे।इहा के व्यापारी अपना व्यापार खातिर गंगा के जलमार्ग के इस्तेमाल करत रहे लोग। मान्यता बा कि एक बेर भगवान शिव जब नदी में स्नान करत रहन तब उनकर जटा में से पांच गो केश टूट के नदी में जा गिरल। एह पांच गो टूटल केश से मैना,विषहरी,अदिति,जया आ पद्मा नामक पांच गो सर्प कन्या लोग उत्पन्न भइल। एह तरह से उत्पन्न भगवान शिव के पांच मानस पुत्रियन के समूह के मनसा नाम से जानल गइल। बाकिर शिव के एह मानस पुत्रि लोगन के ई मलाल रहे कि अन्य देवी-देवता के तरह इनकर पूजा अर्चना संसार में ना होत रहे।

लोकगाथा से उपजल एगो कला शैली : मंजूषा चित्रकारी
लोकगाथा से उपजल एगो कला शैली : मंजूषा चित्रकारी

आपन ई व्यथा उ लोग भगवान शिव से बतावल,भगवान कहली कि पृथ्वी पर चंपानगर में चन्द्रधर नामक हमार परम भक्त निवास करेला। तू लोग ओकरा से कह कि उ तू लोगन के पूजा करे,अगर उ ई बात स्वीकार कर लेत बा त पृथ्वी पर तू लोग के भी पूजा होखे लागी। शिव के बात मानके उ पांचो द्वारा आपन संदेशा चन्द्रधर तक पहुंचावल बाकिर उ ई कह के इंकार कर दिहल कि जवना हाथ से हम भगवान शिव के आराधना करत बानी ओही हाथ से तू सर्पिणि लोगन के पूजा हमरा खातिर संभव नइखे। एह उत्तर से क्रोधित होके देवी मनसा द्वारा ओकर छव गो पुत्र लोगन के डस के मार डालल गइल।बाकिर ओकरा बाद भी चन्द्रधर पूजा ना देवे के अपना जिद पर अड़ल रहल।अब बारी रहे ओकर सातवां पुत्र लखिन्दर के प्राण रक्षा के जेकर शादी बिहुला नामक युवती से होखे के तय भइल रहे।एने मनसा के धमकी रहे कि हर हाल में सुहागरात के दिना ही उ एह सातवां पुत्र के भी अपना सर्पदंश से मउअत के घाट उतार देब। चन्द्रधर द्वारा पुत्र के प्राण रक्षा खातिर लोहा के एगो अइसन भवन बनावे के तैयारी शुरू करवा दिहल गइल जेकरा दीवार में कहीं कवनो छेद के गुंजाइश ना होखे, ताकि कवनों हाल में सर्प के प्रवेश ओह कमरा में ना हो सके जवना में ओह नवदंपति लोगन के सुहागकक्ष के तौर पर तैयार कइल गइल रहे।

बाकिर मनसा एह कार्य से जुड़े कारीगर के डरा के एगो छोट छेद ओह कक्ष के दीवार में बनवा लिहल गइल। ओने बिहुला के अपना पति पर आवे वाला एह आसन्न संकट से अवगत करा दिहल गइल रहे। पति के प्राण रक्षा खातिर बिहुला लगातार जाग के निगरानी करे लगली,बाकिर दैवयोग से पौ फटे से कुछ देर पहिले बिहुला के एगो झपकी आ गईल, एही बीच देवी मनसा द्वारा भेजल गइल सर्प द्वारा लखिन्दर के आपन विषदंश के शिकार बना लिहल गइल। चंपानगर के सुप्रसिद्ध वैद्य धनोतर गुरू आ मांत्रिक केशो झारखंडी जइसन लोगन के उपचार भी कवनो काम ना आइल आ बिहुला अपना सुहागरात के ही विधवा हो गइली।

अपना मृत पति के साथ सती होखे के प्रथा के विपरीत बिहुला कुछ अलग करे के निर्णय लेली। फैसला कइली कि आपन मृत पति के देह के लेके स्वर्ग जइहे आ अपना तपस्या से पति के पुर्नजीवन प्रदान करइहे। एकरा खातिर ई अपना ससुर से अनुरोध कइली कि एक बेड़ा पर हमरा के अपना पति के मृत देह के साथे बैठाके गंगा में विसर्जित कर दिहल जाये ताकि एह मार्ग से उ स्वर्ग तक पहूंच जाये। बिहुला के अनुरोध पर मंजूषानुमा बहुमंजिला बेड़ा तैयार कइल गइल। जेकर दिवारन पर लहसन माली नामक चित्रकार के द्वारा बिहुला के साथ घटल घटना के,चन्द्रधर, सूर्य, चन्द्रमा,हाथी,घोड़ा,चम्पक पुष्प आ मनियार नाग के चित्रण करावल गइल। ओकरा बाद उ गंगा नदी के रास्ते तमाम मुसीबतन आ आपदा से लड़त अंतत: स्वर्गलोक पहुंचली। जहां के धोबीघाट पर उनकर मुलाकात नेतुला नामक देवता के धोबी से भइल

बिहुला ओह धोबी के काम में हाथ बंटावे लगली, उनका द्वारा धोवल जायेवाला कपडा में एगो खास तरह के सुगंध आवे लागल। एह सुगंध के बारे में जब देवता लोग जानल चाहल त नेतुला बतवलस कि एह कपड़ा के हमार बेटी धोअले बाड़ी। ओकरा बाद बिहुला के देवता लोगन के सम्मुख ले जाइल गइल जहां बिहुला के वरदान मांगे के कहल गइल। बिहुला द्वारा देवता लोगन से अपना मृत पति के साथ-साथ अपना छव गो जेठों के पुर्नजीवन के वरदान मांगल गइल। एने देवी मनसा भी बिहुला के साधना आ पतिव्रत से प्रसन्न हो चुकल रही। अंतत: एह सब से इच्छित वरदान पाके बिहुला अपना पति आ जेठ लोगन के साथ लेके चंपानगर वापस आ गइली।आपन सब बेटन के वापस पाके प्रसन्न चन्द्रधर द्वारा बिहुला के कहला पर देवी मनसा के पूजन स्वीकार कर लिहले। कहल जाला कि तबे ले एह अंचल में उपरोक्त तिथि के देवी मनसा के पूजा के प्रचलन चलल आ रहल बा।

ई परंपरा केतना प्राचीन बा एकरा बारे में त प्रामाणिक तौर पर कुछ भी कहल मुश्किल बा।एह अंचल में पुरातत्व विभाग द्वारा 1970-71 में कर्णगढ़ के खुदाई में मिलल सिंधुकालीन कुछ अवशेष के आधार पर स्थानीय लोगन द्वारा एह परंपरा के सिंधुघाटी काल से जोड़ के देखल जाला। अइसे एह मंजूषा चित्रकारी के स्थानीय अंचल से बाहर के दुनिया के परिचित करावे के श्रेय 1941 में भागलपुर में पदस्थापित रहल आई. सी. एस. अधिकारी आ कला मर्मज्ञ डब्ल्यू. सी. आर्चर के जाला । इहे लोग द्वारा स्थानीय मालाकार आ कुंभकार द्वारा बरतल जायेवाला एह कला के कुछ कृतियन के लंदन स्थित इंडिया हाउस में प्रदर्शित कइल गइल। तब जाके दुनिया सदियन पुरान एह लोक परंपरा से जुड़ के मंजूषा चित्रकारी से परिचित हो पाइल। बाकिर कुछ कारण से कालांतर में ई चित्रकला सिमटत चल जात रहे। विशेष अवसर पर ही एकर चित्रण मालाकार आ कुंभकारन द्वारा कइल जात रहे।

बाकिर स्थानीय नागरिकन आ कुछ संस्था के पहल पर चक्रवर्ती देवी, मनोज पंडित आ उलूपी कुमारी जइसन कलाकारन के विशेष योगदान से आज एकरा एगो चित्रशैली के तौर पर पहचान मिलल।एह चित्रशैली के कुछ खास विशेषता में एक बा एकर अंकन खातिर खाली हरा,पीला आ लाल रंग के प्रयोग। आमतौर पर आकृति के रेखांकन में खाली हरा रंग के प्रयोग कइल जाला,ओहिजे पीला, हरा आ लाल रंग से बीच के जगहा के भरल जाला। मनसा देवी यानी पांचों बहीन के सर्परूप में एक साथ चित्रित कइल जाला। चम्पा फूल, मनियार सांप,नेतुला धोबी,चन्द्रधर, लखिन्दर जइसन एह कथा से जुड़ल सभे पात्रन के एगो खास पहचान के साथ चित्रित कइल जाला ताकि देखे वाला लोग एकरा के आसानी से समझ सके। पुरूष आकृतियन के चेहरा पर शिखा आ मूंछ के होखल अनिवार्य मानल जाला।

अब जब एह कला के सिर्फ मंजूषा के अलंकृत करे तक सीमित रखे के बजाय व्यावसायिक उत्पाद आ सजावटी समान पर भी चित्रित कइल जाये लागल बा तब से रंग संगती में कुछ नाया प्रयोग भी सामने आवे लागल बा । साथे साथ कवनो जवाना में जाति विशेष तक सीमित माने जायेवाली एह कला के समाज के विभिन्न लोगन द्वारा एगो कलारूप के तौर पर अपनावल जा रहल बा।

– राजेश भोजपुरिया
(राष्ट्रीय संयोजक)
भोजपुरी जन जागरण अभियान

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