भोजपुरी के बढ़िया वीडियो देखे खातिर आ हमनी के चैनल सब्सक्राइब करे खातिर क्लिक करीं।
Home आलेख भोजपुरी भाषा के उत्पत्ति, नामकरण, क्षेत्र आ लिपि

भोजपुरी भाषा के उत्पत्ति, नामकरण, क्षेत्र आ लिपि

0
भोजपुरी भाषा के उत्पत्ति, नामकरण, क्षेत्र आ लिपि
भोजपुरी भाषा के उत्पत्ति, नामकरण, क्षेत्र आ लिपि

भोजपुरी भाषा के उत्पत्ति

भोजपुरी भाषा के उत्पत्ति मागधी, प्राकृत आ अपभ्रंश से भइल। ई पूर्वी परिवार के भाषा हिय। भाषावैज्ञानिक दृष्टि से पूरा भोजपुरी भाषी इलाका हिंदी क्षेत्र से बाहर पड़ेला। एह मत के समर्थन जार्ज अब्राह्म ग्रियर्सन, सुनीति कुमार चटर्जी, उदयनारायण तिवारी आदि भाषावैज्ञानिक लोग कइले बा। भाषाविज्ञान के मोताबिक भोजपुरी हिंदी के अपेक्षा बंगला, उड़िया, असामिया से बेसी निचका बिया।

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भोजपुरी भाषी इलाका में हिंदी के प्रचार भइल आ एजवाँ हिंदी के शिक्षा, राजकाज आदि के भाषा के रूप में स्वीकार कइल गइल। लिपि (देवनागरी लिपि) के एकरूपता के वजह से भी भोजपुरी हिंदी के निचका आइल।

भोजपुरी भाषा के नामकरण

भाषा के अर्थ में भोजपुरी’ शब्द के पहिला प्रयोग रेमंड द्वारा ‘शेरमुताखरीन’ नाँव के किताब के अनुवाद (दोसरा संस्करण) के भूमिका में मिलेला। एकर प्रकाशन वर्ष 1789 है।

एकरा नामकरण के बारे में कई तरह के मत प्रचलित बावे। एहमें तीन गो मत विशेष रूप से उल्लेखनीय बा।

भोजपुरी भाषा के उत्पत्ति, नामकरण, क्षेत्र आ लिपि

पहिला मत के अनुसार राजा भोजदेव (सन् 1005-55 ई.) के नाँव पर भोजपुरी नाँव पड़ल। एह मत के समर्थक जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन, उदयनारायण तिवारी जइसन विद्वान लोग कइले बा। एकरा बारे में उदयनारायण तिवारी के कहनाम बा कि “भोजपुरी बोली का नामकरण शाहाबाद जिले के भोजपुर परगने के नाम पर हुआ है। शाहाबाद जिले में भ्रमण करते हुए डॉ. बुकनन सन् 1812 ई. में भोजपुर आए थे। उन्होंने मालवा के भोजवंशी ‘उज्जैन’ राजपूतों के चेरों जाति को पराजित करने के संबंध में उल्लेख किया है।”

कुछ आधुनिक इतिहासकार लोग मालवा के राजा भोजदेव भा उनका वंशजन के द्वारा भोजपुर विजय पर संदेह व्यक्त कइले बा। एह पर विचार करत दुर्गाशंकर सिंह नाथ लिखले बानी कि (मालवा के भोज) “भोजपुर भोजदेव पूर्वी प्रांत में कभी नहीं आए।”

दूसरा मत के अनुसार एकर नामकरण वेद से जोड़ल गइल बा। वेद में भोज शब्द के प्रयोग मिलेला। एह मत के समर्थन में डॉ. ए० बनर्जी शास्त्री, रघुवंश नारायण सिंह, जितराम पाठक के नाँव प्रमुख बा।

असल में ई मत पुरस्वत्थानवादी मानसिकता के देन हवे, जवना में हवाई जहाज बनावे से लेके परमाणु बम सबकर उत्स वेद में साबित कइल जाला। कुछ लोग के इहो बुझाला कि कवनो चीज के प्राचीन सिद्ध क देला से ओकर महत्त्व बढ़ जाला, स्वतः प्रामाणिक हो जाला। एही मानसिकता के लोग भोजपुरी के उत्स वेद में सिद्ध करेला।

एकरा बारे में एगो तीसरो मत बा जवना के मुताबिक भोजपुरी भाषा के नामकरण कन्नौज के राजा मिहिरभोज के नाम से जुड़ता। एह मत के अनुसार राजा मिहिर भोज के नाँव पर भोजपुर बसल रहे। एह मत के पक्षधर पृथ्वी सिंह मेहता, परमानंद पांडेय आदि बा लोग। परमानंद पांडेय के अनुसार “गुर्जर प्रतिहारवंशी राजा मिहिरभोज का बसाया हुआ भोजपुर आज भी पुराना भोजपुर नाम से विद्यमान है।” मिहिर भोज के शासनकाल सन् 836 ई० के आसपास मानल जाला

राहुल सांकृत्यायन भोजपुरी के ‘मल्ली’ आ ‘काशिका’ दूगो नाँव देले रहीं। असल में उहाँ के प्राचीन गणराज्यन (सोरह महाजनपद) के व्यवस्था से सम्मोहित रहीं। एही से उहाँ के महाजनपद के नाँव पर ओजवाँ के भाषा के नाँव रखे के चाहत रहीं। बिहार के दूगो भाषा अंगिका आ बज्जिका के नामकरण उहें के कइल ह। अंग नाँव के महाजनपद के नाँव पर ओजवाँ के भाषा के नाँव उहाँ के अंगिका रखनी। एकरा पहिले जार्ज अब्राह्म ग्रिर्यसन अंगिका के मैथिली के अंतर्गत रखले रहींबाकिर एकर स्वतंत्र भाषिक विशेषतो कावर उहाँ के ध्यान गइल रहे। एही से उहाँ के अंगिका के मैथिली के ‘छींका-छाकी’ रूप कहले बानी।

राहुल जी द्वारा भोजपुरी के कइल गइल नामकरण मान्य ना हो सकल। असल में ओह बेरा ले भोजपुरी नाँव प्रचलित हो गइल रहे। दूसरे उहाँ के मत भोजपुरी के मल्ली आ काशिका नाँव से दू भाग में बाँटत रहे।

भोजपुरी भाषा के क्षेत्र

भोजपुरी एगो बड़हन भूभाग के भाषा हिय। एक फइलाव भारत के बहरियो बावे। ई पूर्वी बिहार आ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के संगे-संगे झारखंड के कुछ भाग के लोगन के मातृभाषा हिय। एकरा अलावे ई बिहार आ उत्तर-प्रदेश के भोजपुरी भाषी जिलन से सटल नेपाल के कुछ हिस्सन में बोलल जाले।

ई बिहार के पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, सारण, सीवान, गोपालगंज, भोजपुर, बक्सर, रोहतास आ भभुआ जिला में आउर उत्तर प्रदेश के बलिया, गाजीपुर, गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर, महाराजगंज, वाराणसी, आजमगढ़, संतकबीर नगर, सिद्धार्थनगर, मऊ आ जौनपुर में बोलल जाले। झारखंड में ई पलामू, गढ़वा आ लातेहार जिलन के कुछ भाग के लोगन के मातृभाषा हिय।

नेपाल के रोतहट, बारा, पर्सा, बिरगञ्ज, चितवन, नवलपरासी, रूपनदेही आ कपिलवस्तु में भोजपुरी बोलल जाले। एजवाँ के थारू लोग भोजपुरी बोलेला। नेपाल में भोजपुरी भाषी लोगन के आबादी ढाई लाख से बेसी बा जवन ओजवाँ के जनसंख्या के लगभग नौ प्रतिशत बा।

भारत आ नेपाल के अलावे ई मॉरिशस, फिजी, सूरीनाम, ट्रीनीडाड, नीदरलैंड जइसन कई गो देशन के बड़हन आबादी के भाषा भोजपुरी बा।

भोजपुरी के मानकीकरण

कुछ लोग के आग्रह रहेला कि भोजपुरी भाषा जइसे बोलल जाले, एकदम वइसही लिखन जाव। एजवा एह बात के हरदम ध्यान रखे के चाही कि बोली आ भाषा में हमेशा अंतर रहेला। दुनिया के कवनो भाषा जवना तरे बोलल जाले एकदम ओही तरे लिखल ना जाले।

अब भोजपुरी बोली भर नइखे रह गइल। ई अब खाली गीत गवनई के भाषा नइखे रह गइल। अब ई विचार आ शास्त्र के भाषा बन चुकल बिया। जल्दिए शासन-प्रशासन, ज्ञान-विज्ञान आदि के भी भाषा बनी। अइसन स्थिति में एकरा खातिर देवनागरी लिपि के कवनो अक्षर, संयुक्ताक्षर भा मात्रा के छोड़ल ठीक ना होई। एह से अभिव्यक्ति में कठिनाई होई।

जवना चीज खातिर भोजपुरी में शब्द बा निःसंदेह ओकरा के अपनावे के चाही बाकिर हिंदी, अंग्रेजी आ आउरो कवनो भाषा के शब्दन के भोजपुरियावे के फेर में ओकर वर्तनी बिगाडल ठीक नइखे। जरूरत पडला पर दोसरा भाषा के शब्दन के बेहिचक अपनावे के चाही। एह से भोजपुरी समृद्ध होई। बंगला, मैथिली इहे कइले बा। एह से भोजपुरी के विकास होई। अंग्रेजी के समृद्धि के एगो बड़हन वजह इहो बा कि अपना जरूरत के मुताबिक कवनो भाषा के शब्दन के अपना लेले। ‘लाठी’, ‘धोती’, समोसा, गरदा उड़ गइल जइसन बहुते शब्द एकर उदाहरण बाटे। शुद्धतावादी दृष्टिकोण से हिंदी के बहुते नुकसान भईल बा। हमनी के खाँटी भोजपुरी के आग्रह से बचे के चाही।

जब भोजपुरी के हर तरह के अभिव्यक्ति के भाषा बनावे के बा त मुख सुख, स्थानीय प्रयोग आदि के आग्रह से ऊपर उठे के होई। अंग्रेजी, हिंदी सहित सब भषन के स्थानीय रूप बावे बाकिर ओह हिसाब से लिखल ना जाला।

भूमंडलीकरण के दौर में इंटरनेट आ आउर नया-नया आविष्कार के प्रयोग, सूचना क्रांति, जीवन के हरेक क्षेत्र में बढ़त प्रतिस्पर्धा से जीवन के गति तेज होई, जीवन के भौतिक समृद्धि बढ़ी। एह से भोजपुरिया समाज के आचार-विचार, व्यवहार जीवन मूल्यन में बदलाव आई। चूँकि भाषा सामाजिक संपत्ति हवे। ई समाजे में जन्म लेले आ समाजे में विकसित होले।

एह से समाज में आइल बदलाव के हिसाब से भोजपुरी के अपना के ढाले के पड़ी। एह घड़ी कई एकगो कारण से एक जगे से दोसरा जगे के आवागछ, संपर्क बढ़ल बा। एकर प्रभाव भाषा पर भी पड़ल बा। नाहियो चहला पर एक भाषा दोसरा भाषा से प्रभावित होला।

भाषा में बदलाव होत रहेला। दुनिया के सब भषन में अइसन होला। एकर बहुत सा वजह बा। एकरा के रोकल नइखे जा सकत। भोजपुरी में जवन बदलाव आ रहल बा ओकर स्वागत करे के चाही।

हरेक भाषा के एगो ग्राम रूप  आ एगो शिष्ट रूप होला। अब भोजपुरी खाली गंवार लोग के भाषा नइखे रह गइल। एह से मूर्खतापूर्ण, संस्कारहीन आदि बात के असली भोजपुरी ना मानल जाए के चाही। एकरा के बोले वाला हर तरह के लोग बा।

भोजपुरी भाषा के बढ़न्ती खातिर ठोस प्रयास के जरूरत बावे। खाली ई कहला से काम ना चली कि भोजपुरी में अइसन-अइसन शब्द बाड़े सन जवना के अनुवाद दोसरा भाषा में होइये नइखे सकत, भोजपुरी सबसे मीठ भाषा हिया अइसन सब बात आत्ममुग्धता के उपज हवे। दुनिया के सब भषन के बारे में अइसन बात कहल जाला आ ई सब समृद्धि के कवनो परिचायक भी ना हवे।

भोजपुरी भाषा के लिपि

भोजपुरी देवनागरी लिपि में लिखल जाले। इहे एकर लिपि है। कुछ लोग एकर मूल लिपि कैथी बतावेला। ई ठीक बा कि भोजपुरी के कुछ पुरान दस्तावेज, सनद, पत्र आदि एह लिपि में मिलेला बाकिर खाली एकरे आधार पर भोजपुरी के लिपि कैथी मान लिहल मुनासिब नइखे।

असल में ओह कालखंड में कैथी लिपि के प्रयोग खाली भोजपुरिए खातिर ना बल्कि मैथिली, मगही, अंगिका, वज्जिका, अवधी, गुजराती, छत्तीसगढ़ी, हिंदी, उर्दू आदि खातिर होत रहे।

एह लिपि के उद्भव आ विकास के कुछ ऐतिहासिक वजह रहे। अंग्रेजन के शासन के पूर्वाद्ध तकले कोर्ट-कचहरी के भाषा उर्दू रहे। उर्दू लिखे के अभ्यस्त मुलाजिम देवनागरी लिपि के शिरोरेखा, स्वे, दीर्घ, संयुक्ताक्षर के प्रयोग करे में कठिनाई महसूस करत रहले। देवनागरी लिपि के प्रयोग में सरलीकरण ओही ढंग से करे लगले जवना ढंग से उर्दू लिपि के सरलीकरण सिकस्ता उर्दू में कइल जाला। एही प्रक्रिया में कैथी लिपि विकसित भइल। एकरा विकास के श्रेय अल्पशिक्षित कातिब, ताईद, किरानी आदि रहे लोग। ई देवनागरी लिपि के सरलीकरण के क्रम में जनमल आ विकसित भइल रहे। एह में देवनागरी लिपि के शिरोरेख, स्व-दीर्घ के अंतर, संयुक्ताक्षर के प्रयोग ना होखे से ई आसान रहे।

एह लिपि के आपन सीमा बा। एही वजह से ई कबो गंभीर लेखन के माध्यम ना बन सकल। ई कबो देवनागरी लिपि के जगहा ना ले पाई। एह लिपि के नामकरण एगो जाति विशेष के नाम पर भइल बा जेकरा हाथ में मध्यकाल में लिखे-पढ़े के काम रहे।

भोजपुरी साहित्य के लेखन शुरूए से देवनागरी लिपि में हो रहल बा। कुछ लोग का बुझाला जे भोजपुरी के लिपि देवनागरी का जगहा कैथी क देला से एकरा जल्दी मान्यता मिली। एह विचार से अभिभूत होके कुछ लोग कैथी के भोजपुरी के लिपि सिद्ध करेला।

ध्यान दीं: भोजपुरी कथा कहानी, कविता आ साहित्य पढ़े खातिर जोगीरा के फेसबुक पेज के लाइक करीं

इहो पढ़ीं
भोजपुरी पर्यायवाची शब्द – भाग १
भोजपुरी पहेली | बुझउवल
भोजपुरी मुहावरा और अर्थ
अनेक शब्द खातिर एक शब्द : भाग १
लइकाई के खेल ओका – बोका
भोजपुरी व्याकरण : भाग १

NO COMMENTS

आपन राय जरूर दींCancel reply

Exit mobile version