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गमछा बा त का गम बा! | जइसे आमवाँ के मोजरा से रस चूवेला | भगवती प्रसाद व्दिवेदी

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गमछा बा त का गम बा!

परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प, रउवा सब के सोझा बा भोजपुरी लेख गमछा बा त का गम बा! , पढ़ीं आ आपन राय दीं कि रउवा भगवती प्रसाद व्दिवेदी जी के लिखल भोजपुरी लेख कइसन लागल आ रउवा सब से निहोरा बा कि शेयर जरूर करी।

बरिस 2019 के आखिर में जब मुंहामुंही कोरोना महामारी के चरचा होखे लागल रहे, त नाक-मुंह तोपे खातिर बतौर मास्क गमछा के महातम अउरी बढ़ि गइल रहे आ प्रधानो मंत्री एकरा इस्तेमाल के सभसे मुफीद बतवले रहनीं। फेरु त गमछा भा गमछी, अंगवछा भा अंगवछी का गाँव, का शहर, का घर आंगन, का बहरा- सभत्तर अपना जरूरत के धाक जमवले रहे।

का सूती, का खद्दर के, का साटन के आ का रेशमी हरेक रूप में सभ केहू के मन मोहत आइल बा गमछा । ओहू में एकरा सूती सरूप के का कहे के ! केहू के रंग- बिरंगी गमछा पसन परेला, त केहू के उज्जर बकुला के पांख नियर । केहू के छींटदार, त केहू के चुनरी वाला। देवी माई के चढ़ावल जाएवाला चुनरी के नांव पवले गमछा के माथ प भा कान्ह प धsके ‘जय माता दी’ के जयकारा करे में खूब मजा आवेला| भगत लोग के रूचेला लाल भगवा रंग, त एगो सियासियो दल के पसंदीदा भगवा गमछा खूब भावेला । एगो दोसर दल अपना हरियर रंग के गमछा खातिर जानल जाला। उज्जर धप्- धप रंग के चारू ओरि से रंग-बिरंगी पाढ़ वाला गमछा एगो अउरी पार्टी के पहिचान ह। बंगाल, उड़ीसा, गुजरात वगैरह सूबन के ई सांस्कृतिक विरासत ह। उहवां खास मेहमान के स्वागत फूल-माला का जगहा कान्ह प गमछा धsके कइल जाला।

किसिम-किसिम के कसीदाकारी वाला गमछा उहां के खासियत होला । कलकतिहा गमछा के त कहहीं के का! खूब बड़हन अरज के चेक के बहुरंगी सूती गमछा भोजपुरिया समाज के नवहिन के मनपसंद पहिरावा होला-धोती, गंजी आ कलकतिहा गमछा।

बहुद्देशीय गमछा के उपयोगिता जिनिगी के हरेक डेग पर लउकेला। बेशकीमती तउली में बात कहां! एगो त महंग दाम, ओहू प धोवे – सुखावे आ लपेटे में दिक्कत। एगो त करइला, दोसरे नीम पर चढ़ल ! दोसरा ओरि गमछा के देखीं। जतने सस्ता, ओतने सुबिस्ता। सूतिके उठत कहीं कि एकर इस्तेमाल शुरू। हर्रे लागी ना फिटिकिरी आ रंग चोख होत जाई। फजीरे हाथ मुंह धोके गमछा से मुंह- हाथ पोंछी। नहा-धोके मोलाएम गमछा से सउंसे देह पोंछे आ देह-धाजा के साफ-सुथरा बनावे में गमछा के अगहर योगदान होला। चाहीं त गमछिए पहिरिके नहा लीं भा कपड़ा बदलिके गमछा पहिरि लीं। गमछा के ना भिंजते देरी लागी, ना सूखते। सजि-धजिके कान्ह प गमछा धsके कहीं आइल गइल भद्र मानुस के निशानी होला।

बाकिर गमछा खाली ‘धरां सा के डाल’ ना होला। राह में कड़ेर घाम भा बरखा होखे त गमछा के कपार पर ओदि लीं।

ई एगो छाता के काम करी आ मन हरियर बनवले राखी। जाड़ के मौसम में गमछा से कपार,कान,नाक, मुंह बान्हि लीं। ओह घरी गुलबंद भा मफलर के भूमिका निबाही|

गिरहत आ मजूर जब गमछा के पगरी बान्हि लेलन, त काम करेके अउरी जोश उमड़ि परेला। भोजपुरिया समाज के मेहनतकश जनता जहवां गमछा के पगरी बान्हेले, उहंवें ओकर अउर लमहर रूप साफा बनि जाला। सरदार लोग के खास पहिचान पग से होला आ उहो त ओकरे लमहर रूप होला। लरिकिन खातिर ऊहे गमछा दुपट्टा बनि जाला। ढेर लोग त घरे दुआरखाली गमछिए लपेटले रहेला । भोजपुरिया मनई रूमाल ना राखे। जब कान्ह प गमछा बा, त का गम बा ! मुंह पर जाब लगाई, माथ, मुंह, नाक प गमछा बान्हीं आ खुद के धूरि-धाकर, बेमारी- हेमारी आउर वायरस से बचाई।

गमछा हरदम जोड़े के दियानत राखेला । एही से वर – कनिया के गठजोड़ उवल होला। तबेनू दुलहा के कान्ह प एगो बियहुती गमछा सोभेला । बियाह में जब लावा- मेराई के रसम होला, त गमछे में लावा मेरावल जाला आ लावा मेरावेवाला कनिया के भाई के गमछा सौगात का रूप में दिआ जाला।

जब गमछा डांड़ में बन्हा जाला, त ई निशानी होला मैदाने जंग में कमर कसिके उतरे के। फेरु त जीत के सेहरा बन्हात देरी ना लागे। अगर गमछा के साथ बा,त झोरा- झक्कर के का जरूरत! गमछिए में बजार के चीजु-बतुस गठिया लीं आ कान्ह प लेके चल दीं। मछिए में सातू बान्हि लीं आ खेत में भा राह में जब मन करे, गमछा सानिके खा लीं। खइला का बाद ओकरा के पानी में खंघारि दीं। फेरु त कान्हे पर गमछा सूख जाई। खेत- बधार में नींन लागे, त गमछा बिछाके सूति जाई । जदी कपार का तरे खिति तकिया बनि जाई । अगर माथ प बरिआर बोझा राखे के होखे, त गमछा के लपेटिके बीड़ा बना लीं। ई बेगर अमनख मनले हरदम सेवा टहल खातिर तत्पर रही। ई अब रउआं पर निरभर बा कि ओह बहुद्देशीय गमछा के रउआं कवना रूप में इस्तेमाल करत बानीं।

हमरा कुण्डलिया लिखेवाला गिरिधर कवि से खास शिकायत बा कि लाठी में गुन बहुत है, दखिए संग!’ के मार्फत लाठी के त गुनगान कइलन, बाकिर गमछा के गुन के गिनावत कवनो कुण्डलिया ना लिखलन । बताई भला, इहो कवनो बात भइल! अगर गमछा ना रहित, त आजु माथ से लेके मुंह, नाक, कान आउर गरदन बान्हे के सेहतमंद सीख कहवां से मिलित! लरिकियो लोग के त मुंह बान्हिके राह चले के हुनर इहंवें से भेंटाइल होई। चोरो-बटमार त इहे तरीका अपनावत मुंह बान्हिके चोरी, बटमारी करेलन स आ धरइला पर हाजत, थाना भा कचहरी में गमछा से मुंह बन्हले मुंह चोरवावत फिरेलन स।

गमछा बा त का गम बा!
गमछा बा त का गम बा!

अगर सांच कहल जाउ, त भोजपुरियन के जान गमछिए में बसेला। एह से गिरिधर कवि से माफी मांगत हम एगो कुण्डलिया रचल आ गमछा के गुन गावल जरूरी बूझत बानीं-

गमछा में हरदम बसे, भोजपुरियन के जान,
पगरी बन्हले खेत में, मेहनत करसु किसान,
मेहनत करसु किसान, गमछिए सातू सानसु
बरखा, घाम, सीत में, छाता जइसन तानसु,
धोती आ गंजी के संग, ई लागे चमचा,
नवही कइसन अगर कान्ह ना सोभे गमछा !

Note: इ रचना भगवती प्रसाद व्दिवेदी जी के लिखल किताब जइसे आमवाँ के मोजरा से रस चूवेला से लिहल गइल बा।

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