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जयकान्त सिंह जी के लिखल कोइल अइसन मीठ बोली

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जयकान्त सिंह जी
जयकान्त सिंह जी

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परिछावन के बाद जब बरियात निकले के भइल त दुल्हा बतकुचन के माँझिल भउजाई उनका के तिरियामंत्र देत कहली- ” बबुआ जी, एजवे लेखा माड़ो पर बक बक मत करेम। उहाँ नया नोचर से लेके बुढ़िया तक खानी- बिखानी के मजाक करिहें स।

जयकान्त सिंह जी

माई- बहिन के लगा के बिछिनर- बिछिनर के गीत – गारी गइहन स। घुमा- फिरा घर भर के हुलिया लीहें स। रउरा सम्हर के बोलेब।इहँवे जइसन लुब लुब जन करे लागेब। खूब गम्भीर रहेब। दस बात बोले लोग भा दस बेर कुछ पूछे लोग त एक बेर गम्भीर होके कोइल अइसन मीठ बोली बोले के प्रयास करेब।

दुल्हा बतकुचन भइजाई के मनतर गिठिर पारके माड़ो में पहुँचले। भउजाई जवन- जवन बात कहले रही सब घटे लागल। उनकर तरवा चटकल- ” दादा! भउजइया त हमार अगमजानी बिआ। इहाँ लबर- लबर आ फटरा लेखा बोलला पर त आदमी साँचो फँस जाई।

“एतना बिचार के दुल्हा बतकुचन मुँह लेवार लेवे आ दस बात सुनला के बाद एक बेर कोइल अइसन मीठ बोले के मनेमन तय कर लिहलन। माड़ो पर उमड़ल नवही से लेके बूढ तक दुल्हा के नांव, घर, गाँव, बाबूजी के नांव वगैरह के लेके दसो सवाल कइल।बाकिर दुल्हा बतकुचन काहे के बोले जास। अंत में एगो बूढ़ अवरत लइकी का बाप के नांव लेके जइसे कहली कि फलनवा गूंगा दमाद खोज के ले आइल बा का रे।

एतना सुनते आ दसगो बात गिनते दुल्हा बतकुचन गम्भीराहे ँच आवाज में कोइल अइसन मीठ बोली कढ़वलें- “कूSSSS—- “।

माड़ो पर दुल्हा के कुकल सुन के सब मेहरारू चिहा – डेरा गइली स। मुँहा मुँही काना- फुसकी होखे लागल जे दुल्हा पागल बा आ ना त कवनो आभागी माड़ो पर आवते कवनो करसमा त ना कर देलस। अंदाजे खातिर मेहरारू स फेर कुछ कुछ पूछल शुरु कइली स।फेर दुल्हा चुप। फेर कुछ देर बाद कोइल जइसन मीठ आवाज में कूSSS—–।

बात अँगना से बहरियाइल दुआर पर गइल।दुआर से जनवासा तक पहुँचल। दुल्हा के बाप आ बड़ भाई दउड़ल- दउड़ल माड़ो पर पहुँचल लोग जे आखिर अइसन का हो गइल भाई। परिछावन के बखत भा इहाँ दुल्हा उतारे के बेरा कवनो टुगंनिया त ना देलस। बाप- भाई बार- बार खोद – खोद के पूछल शुरु कइल -” का भइल ह बाबू ? तोहरा का भइल बा ? कुछ बोलत काहे नइखS।” मड़वा पर भीड़ लाग गइल रहे। दुल्हा के केहू बेना हाँकत रहे त केहू पानी पियावे ला बेचैन रहे त केहू भीड़ पर बरसत चिल्लात रहे तोहनी का खेला भइल बा।लइकवा के जान मरबू लोग का ? हवा नइखे छोड़ेके ।

दुल्हा ई सब देख के फरके हरान रहस कि हमरा का भइल बा कि ई लोग एतना हलकान बा। उनकर बाप रोआइन मुँह कके फेर पूछलें- बबुआ तोहरा का भइल बा ? अइसन काहे कर ताड़S ?” अब दुल्हा बतकुचन का धैर्य के सीमा टूट गइल। डफरत गरजलें- ” हमरा का भइल बा ? हमरा कवनो डाइन – भूतिन लागल बा कि हम कवनो पागल बानी ? आरे त परिछावन
के बखत भउजी कहले रहे जे मड़वा पर मेहरारू दस गो बात पूछिहन स त एक बेर कोइल अइसन मीठ बोली बोलिहS। आ दूइये बेर बोलनी त जनवासा तक बात चल गइल। इहाँ के लोग साँचो गजब चपाट बा रे भाई।”

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