कहनी गढ़त मनई
छरका से सार ले दुआर
घूरे तक बहारत,
झंखत
जिनगी में लागल उढुक से
उठ के संभरे में ढमिलात
हिरिस से मातल मनई |
गुरखुल के दरद
बंहटियावत
नादी में झूठ –कांठ ढार के
फजीरे – फजीरे
देवतन के सुमिरेला
सानी करत मनई |
कबों बाढ़ त कबों सुखाड़ से
खाँखर बखरी
निहारत
खर मेटाव के कुफुत में
सांतर बेंवत बनावत
अलोत होत मनई |
साँझ – सकारे
ओद गोंइठा के अहरा पर
बटुई भर चाउर रीन्हत
ओही में डालल आलू से
चोखा – भात खाति
छछनत मनई |
आपन माटी के नेह छोह में
पुरुखन के आशीष
हेरत – हेरत
फुटही किस्मत के संगे
कुरुई में जोरत
खेत – खरिहान
घर – दुआर
लइका – परानी के संगे
कहनी गढ़त मनई |
कहनी गढ़त मनई के लेखक का परिचय:
जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
इंजीनियरिंग स्नातक ;
व्यवसाय: कम्पुटर सर्विस सेवा
सी -39 , सेक्टर – 3;
चिरंजीव विहार, गाजियाबाद (उ. प्र.)