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कहनी गढ़त मनई

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जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

कहनी गढ़त मनई
छरका से सार ले दुआर
घूरे तक बहारत,
झंखत
जिनगी में लागल उढुक से
उठ के संभरे में ढमिलात
हिरिस से मातल मनई |

गुरखुल के दरद
बंहटियावत
नादी में झूठ –कांठ ढार के
फजीरे – फजीर
देवतन के सुमिरेला
सानी करत मनई |

कबों बाढ़ त कबों सुखाड़ से
खाँखर बखरी
निहारत
खर मेटाव के कुफुत में
सांतर बेंवत बनावत
अलोत होत मनई |

साँझ – सकारे
ओद गोंइठा के अहरा पर
बटुई भर चाउर रीन्हत
ओही में डालल आलू से
चोखा – भात खाति
छछनत मनई |

आपन माटी के नेह छोह में
पुरुखन के आशीष
हेरत – हेरत
फुटही किस्मत के संगे
कुरुई में जोरत
खेत – खरिहान
घर – दुआर
लइका – परानी के संगे
कहनी गढ़त मनई |

कहनी गढ़त मनई के लेखक का परिचय:
जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
इंजीनियरिंग स्नातक ;
व्यवसाय: कम्पुटर सर्विस सेवा
सी -39 , सेक्टर – 3;
चिरंजीव विहार, गाजियाबाद (उ. प्र.)

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