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सुशांत शर्मा जी के लिखल कहियो आवs ना हमरो मकान चिरई

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सुशांत शर्मा जी

परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प, आईं पढ़ल जाव भोजपुरी बारहमासा कहियो आवs ना हमरो मकान चिरई, बारहमासा के लेखक बानी सुशांत शर्मा जी। पढ़ीं आ आपन राय जरूर दीं कि रउवा सुशांत शर्मा जी लिखल बारहमासा कइसन लागल आ रउवा सब से निहोरा बा कि अगर रउवा सब के रचना अच्छा लागल त शेयर क के आगे बढ़ाईं।

कहियो आवs ना हमरो मकान चिरई | बारहमासा | सुशांत शर्मा

चिरई बन के सुनs कहs गाँव के हाल
कइसन बा पीपर कुआँ खेत बगइचा ताल |
पुछला पर माई कहस समाचार सब ठीक
लेकिन बतिया तू कहs छोडि के तनिका लीक |
एक साल से हाल का कइसन बाटे देस
देखला एगो जुग भयल हम बंधक परदेस |
हाल कहs हमसे सकल खेत खाल खरिहान
पेंड़ा जोहत होइ मोर देहरी अउर बथान ||

कहियो आवs ना हमरो मकान चिरई

सुशांत शर्मा जी
सुशांत शर्मा जी

तू त घूमेलु सगरो जहान चिरई |
आवे गउवां के जब रे धेआन चिरई
अंखिया हो जाला लोहुआ लोहान चिरई |

मेघ बरसल कि पानी पटावल गइल
दलही पूड़ी से अदरा मनावल गइल
हमरा गउवां के कई दs बखान चिरई
असो कईसन बा गोंयड़ा के धान चिरई |

दिदिया सावन में पाती पठवले रहल
डोरिया रेशम के सुंदर भेजवाले रहल
ओकरा लालग त होई बेजांय चिरई
भाई परदेश में बा गुलाम चिरई |

मास भादो के जब घेरि आइल होई
खर जिउतिया के पूजा ठनाइल होई

माई लइकन के ले ले के नाँव चिरई
कइले लोरवे से होई नहान चिरई |

घर में जब नौ गो कलसी धराइल होई
संख बाजल होई जौ बोआइल होई
होई माई के कुहकल परान चिरई
ओकरा बांचे ना आवे पुराण चिरई |

छठ के बेरिया सकल घाट जागल कि ना
डाढ़ पिपरा के फेर झुलुआ लागल कि ना
मीठ लागल नू नवका पिसान चिरई
जे से बन जाल ठेकुआ मिठान चिरई |

मीठ जोगिया के भेली के छोटकी कनी
ओकरा ऊपर से चिउरा होई अगहनी|
बोलs का बाटे ओकरा समान चिरई
लोगवा कइले त होई नवान चिरई |

पूस के रात के बेदरद जाड़ में
ठार लागत होई गाँव के हाड़ में
अगिया तापेला अभियों बथान चिरई
बोलs होला का तरुआ सेंकाचिरई |

माघ चढ़ते सगुन गीत छा जाला का
अभियो बेटिहा के चिंता समा जाला का
भइल कतिके में देवता उठान चिरई
बिटिया हो गइल बाड़ी सयान चिरई |

पछुआ टोले में एगो सुनरकी रहल
हाँ उहे जवन गोरकी पतरकी रहल
आवे फागुन में ओकर धेआन चिरई
पछुआ टोला में उतरेला चान चिरई |

सुनली हम कि नगीचे के सीसो कटल
सांठ दिदिया के गवना ला ओसे बनल
अब त होई उदासल दलान चिरई
सून लागत होई खरिहान चिरई |

का पुरनका बगइचा रखाइल रहे
आम केतना बम्बइया प आइल रहे
मेघ बरसल होई घमासान चिरई
ना नू आन्हीं में उँखड़ल मचान चिरई |

जेठ के मास जिनगी सकल हो गइल
आके परदेश सांसत का हल हो गइल ?
अपना माटी ला छछने परान चिरई
हमरा हियरा के सुनि ल बयान चिरई |
चिरई के बयान –
पीपर गछिया सूखल जाता |
अगिला आन्हीं अब ना सही अब ढहि जाई बुझाता |
खेत बटल बा गाछ कटल बा घर के नेंव दियाता |
कजरी जरिगा पचरा पचिगा नकटा भइल निपाता |
मोटर के इंजिन में दब के रोपनी क गीत भुलाता |
बात बात पर घात लगल बा टूटल नेह के नाता |
हीरामन के हाल ना पूछs ढेबुआ के मोल बिकाता |

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