जिउतिया व्रत कथा

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एगो रहली चील्हो, एगो रहली सिआरो। दूनूँ जनी सथवे जंगल में रहत रहे लोग। जवना पेड़ का डाल पर चील्हो रहें ओही पेड़ का नीचे मानि में सिआरो रहें।

एक बेर दूनूँ जनी जिउतिया भूखल रहे लोग। चील्हो अपना मुँह से खर-पात कुछु ना तुरली, मुँह बान्हि के चुपचाप पड़ल रहली।

जिउतिया व्रत कथा
जिउतिया व्रत कथा

सिआरो अपना मानि में मसान जाके सूखल हाड़-मांस जुटा के घइले रहलीं। आधा राति के जब सिआरो का भूख लागल त लगली हाड़-मांस खाये। खात के हड़वा कटर-कटर बोले। सुनिके पेड़ का ऊपर से चील्हो पूछली “ये बहिना, का बोलता ?”

सिआरो जवाब दिहली “भूखली पंजरिया के हाड़ बोलता।”

सुनिके चील्हो चुपा गइली।

अगिला जनम में सिआरो रानी भइली, चील्हो गरीब-गुरबा। रानी का जवन गरभ रहे नुकसान हो जायेगरीबकी का जवन गरभ रहे, पुरहर होखे।

अइसन संजोग कि जवने दिन रानी के गरभ गिरे ओही दिने गरीबकी के बेटा होखे। रानी शोक मनावें गरीबकी उत्सव।

इ सबसे रानी बड़ा दुखी होखस । एक बेर उनका मनें दुःख का साथे क्रोध भी आइल। रानी राजा से कहली “जइती ओके देस से निकाल दीतीं।”

राजा गरीबकी  के का पास गइलें, कहलें “तू देस छोड़िके चलि जा। ”

गरीबकी कहलीस “राजा सुनीं, हमके देस निकसले का होई ? इ सब त रानी के पिछलका जनम के फल ह।”

गरीबकी का पिछला जनम के किस्सा कहि सुनवलस। राजा सुनिके घरे अइलें। आके रानी के सुनवलें। सुनिके रानी जिउतबन्हन बाबा का व्रत दिन अगोरे लगली।

जवना दिन जिउतिया व्रत आइल, ओ दिन रानी मन से व्रत रहली, खर जिउतिया कइले त उनकर बंस बाढ़ल।

जइसे राम जी उनकर दिन लवटवलें ओइसे सबके लवटावें।

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