भोजपुरी लोक कथा कउवा हँकनी

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भोजपुरी लोक कथा कउवाहँकनी
भोजपुरी लोक कथा कउवाहँकनी

एगो राजा रहलें। उनका तीन रानी रहलीं। पहिलकी दूनूं का कवनो बाल बच्चा ना रहे। तीसरकी जइसे आइल ओकर पांव भारी हो गइल । इ देखिके पहिलकी दून भीतरे-भीतरे जरे-बुताये लगलीं सन । जब रानी के गरभ के नउवाँ महीना लागल त राजा कहलें – “देख रानी! हम जातानी सिकार केतुहके एगो घंटी दे जातानी। जब तहरा तकलीफ बुझाई त तूं घंटी बजइह । घंटी के आवाज सुनिके हम तहरा लगे आ जाइब एतना कहि के राजा चलि गइलें।

राजा का गइला का बाद रानी सोचली – का जानि राजा आवाज सुनिके अइहें कि नां। परीक्षा लेबे खातिर रानी घंटी बजा दिहली। आवाज सुनिके राजा भागल-पराइल अइलें। आके देखता कि रानी मजे में बाड़ीदेखिके राजा का बड़ा रीस लागल। रिसअइले राजा फेर से सिकार पर निकल गइलें आ कहत गइलें कि रानी, अब तूं केतनो घंटी बजइबू हम ना आइब

राजा का गइला से रानी बहुत दुखी भइली। बाकिर करे का। एक दिन उनुका कमर में बड़ी बेदना उठल । दुनूं बड़की रानी लोग कहल कि लइका भइला के आगम जनाता। सुनिके रानी घंटी बजावे लगली बाकिर राजा ना अइले त ना अइलें। दूनूं बड़की रानी से तीसरकी रानी पूछली कि अब उनका का करेके चाहीं। रानी लोग कहल”चूल्ही में मुँह डारी के पटा रहे कि चाहींरानी इहे कइलीघड़ी भर बाद रानी का जुड़वाँ लइका भइल – एगो बेटा, एगो बेटी। दूनूं बड़की रानी लोग ताक में लगले रहे। जल्दी से लइकन हटा के उहाँ एगो ईंट आ एगो पाथर रख दीहल लोग आ दूनूँ लइकन के उठाके कोंहारे का मटिसार में रख आइल लोग। तीसरकी रानी से दूनें रानी मिलिके कहल लोग “देखु तोरा इहे जनमल है – एगो ईंट, एगो पाथर”। रानी चुपा गइली। रोवली-धोवली बाकी का करसं।

राजा अइलें त दूनूं बड़की रानी लोग सारा बिरतान्त कहि सुनावल । राजा आग बबूला हो गइलें। तीसरकी रानी के महल से निकाल दिहलें आ कउवाहँकनी बना दिहलें।

एने कोहइनियाँ जब मटिसार में माटी काढ़े गइल त देखत का बिया कि फूल अइसन एगो लइका, एगो लइकी माटी में पड़ल बा। झारि-भूरि के कोरा उठवलसि। घरे ले आके पलली-पोसलीधीरे-धीरे दूनूँ सेयान भइलें।

एक दिन दूनूँ भाई-बहिन कोहइनियाँ के बनावल माटी के घोड़ा अउर लगाम से खेलत रहलें। बहिनियाँ कहे “माटी के घोड़ा, माटी के लगाम” त भइयवा कहे “सारी पानी पीउ” ओही राहें राजा घोड़ा पर बइठल घोड़ासवारी करत जात रहलें। राजा का कान में इहे बचन पड़ल “माटी के घोड़ा, माटी के लगाम, सारी पानी पीउ” सुनिके राजा घोड़ा से उतरि पड़लें आ लइकन से कहलें – हुई, माटी के घोड़ा कब्बो पानी पी ? सुनते बहिनया कइलीस – हुहं औरत जात कब्बो ईट-पाथर बिआई ?” सुनते राजा का छाइं दे लागल। दूनूँ लइकन के घर-दुआर पता करवलें, कोहइनियों के बोलवलें।

कोहइनियाँ हाथ जोड़ि खड़ा हो गइल “सरकार माफी चाहीं। हम लइकन के कुछु ना सिखवनी, लइके हमार जनमल नाही हवें। हम त इनके मटिसार से उठा के ले आइल रहनीं।”

राजा कहलें “पता लगाइ लइकन के महतारी के, बाप के ? कोहइनियाँ रोवे गिड़गिड़ाये लागलओके रोवत देखि दुनूँ लइके कहलें “सात तावा बन्हले पर जवना औरत का छाती से दूध हमनके देखिके निकले लागी, उहें हमनीके महतारी।”

बहुते औरत बोलावल गइलीं बाकी केकरो छाती से सात तावा छेदि के दूध ना निकलल। अंत में कउवाहँकनी के बोलावल गइल। ओकरा छाती पर सात तावा बन्हाइल । लइके के सामने ले आवल गइलें। लइकन के देखते कउवाहकनी का छाती से सातो तावा छेदि के दूध के धार बहे लागल दुनूँ भाई-बहीन धधाके माई के ध लिहलें। लइके कहलें “ई कुल्ही करतूत दूनूं बड़की रानी के ह । उहे हमन के कोंहारे का मटिसार में फेंक के माई का आगे ईट पाथर धइल लोग । राजा रउरे हमन के बाप इह ।

सुनिके राजा का आँखि से लोर बहे लागल । सबके ले-देके राजा महले अइलें। दुनूं बड़की रानी के भार झोंकवा दिहलें। कउवाहँकनी रानी बनली।

जइसे ओकर दिन बहुरल ओइसे सबके दिन बहुरे।

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