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झूरी काका…

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झूरी काका

झूरी काका
झूरी काका
गांव में खबर फइलल ‘झूरी काका मू गइलन’ जे सुने एक बेर ठक हो जाव. जइसे बिच्छी के जहर चढ़ेला ओही तरे ई खबर गांव में फइलत जाव. खबर सुनते झूरी काका के चेहरा नजर का सोझा खाड़ हो जाव. अध पाकल बार संवारल, रंग-कद-काठी नीमन, अधबंहिया बगल में जेब वाली सीयल गंजी, फेटामार के धोती पहिरले, कान्ह प मारकीन के गमछा जवन ओढ़े आ पहिरे दूनो के काम आवे, नंगा पांव एहर-ओहर आइल गइल. कुत्र्ता रहबो करे त चलत का बेरा कान्हि प राखि लेस ताकि हितई-नतई के लोग ई ना कहे कि इनकरा कुत्र्ता नइखे बाकिर ओके साइते कबों पहिरस. हाथ में छोटहन एगो लाठी जवना के सोटा कहस. ‘सोटा’ के बिना लिहले कहीं ना जास. अबे काल्हुए त लउकल रहले. साइत सुतला में कवनो बेमारी में मू गइले. दवा-दारू भरसक खइबे ना करस. मांस-मछरी से परहेज रहे. काका के कहनाम रहे कि जे कवनो गुनाह नइखे कइले ओकर जान हतल काहे जाय. कवनो जानवर बिना खतरा पहुंचवले भा बिना खतरा के अंदेसा के हमला करे बाकिर ई आदमी एतना खतरनाक ह कि बेगुनाहनो के जीये के हक छीन लेला. ई कवन गुनाह कइले रहेली स जे रोज लोग एहनी केमार डालेला. काका के बात के कवनो उत्तर ना रहे. काका आज सबका के छोड़ के आंख मूंद लेलन.

झूरी काका के मुअला के खबर फइलते सबका लागे कि घर के कवनो बेकति मू गइल बा. लइका जवान-बूढ़ सभे झूरी काका के घरे आ गइलन. गांव के मेहरारू लइकी उनका घरे ठकचि गइली स. काका के लासि भुइंया सुतावल रहे. कुल देहिं तोपल रहे चेहरा लोगन के देखे खातिर खोल दीहल रहे. काका के चेहरा प ना कवनो खुशी रहे ना कवनो गम. उनका मुंह प एगो अइसन भाव रहे जवन बतावे कि बड़ा शांत मन से चिर निद्रा में सूत गइल बाडऩ. घर के अकसरूआ रहलन. मेहरारू पहिलहीं साथ छोड़ देले रही. कवनो बाल-बच्चा ना रहे. कई बेर लोग जोर डललन कि काका दूसर बियाह कई लेस बाकिर काका तइयार ना भइलन. कहस हमरा करम में एतने दिन मेहरारू के सुख लिखल रहल ह. अगर अधिका रहित त राधिका काहे मुअल रहती. भगवान के इहे इच्छा रहल ह अब ओकरा उल्टा हम काहें जाई. रहल बात बाल बच्चा के त गांव के लइका-लइकी बाडऩ स बाकिर अंत समय में केहू एक चम्मच पानी देवे ना आइल. काका जलेसर बाबू के उदाहरन देस जिनकरा मुअला प लइका-पतोह ई कहि के ना अइलन स कि दफ्तर से छुट्टïी नइखे मिलत. काम का दिने दूनो पहुंचलन स. दान दच्छिना कुछ दिहलनस आ एक हफ्ता बादे जमीन घर बेच के रूपिया जेबिया के शहर के राह धइलन स. गांव-जवार का कहत बा उनकरा प कवनो असर ना होखे. काका कहस अइसना बंश से त हमरा नीयर निरबंश नीक. जवन बरध हरे ना चलस उफ्फर परस. जवन बेटा अंतिम समय पानी देवे ना पहुंचल ओह लइका से बेलइका भइल नीक बा.

काका कहस आज काल्ह त सुनत बानी कि भाई-बाप के घरे राखल जीव के जंजाल हो गइल बा. देवनंदन भइया भउजी के लेके अपना लइका कीहें दिल्ली गइल बाडऩ. पता चलल ह कि लइकवा भाई-बाबू के बुढ़वन खातिर बनल आश्रम में रखवा देले बा काहें कि ओकरा मेहरारू के देवनंदन भाई के रात के खोंखल नीक ना लागत रहल ह. बुझात बा ना बूढ़ होखी. इहे ना बबुआ भाई के दूनो लइका त रेकार्ड तोड़ देलेे बाडऩ स. माई-बाप के बांट देले बाडऩ स. पचास बरिस ले दु:ख-सुख में साथ रहल भइया-भउजी एह बुढ़ौती में विछोह के जिनगी जीयत बाड़े. जबकि बुढ़ौती में मेहरारू अन्हरा के लाठी ह. मरद मेहरारू एक दूसरा के जरूरत बन जाले. आखिर अइसन दुनिया बसवला से का फायदा. अकेले ठीक बानी. फूंक दिहनी मड़ई सलाम भाई चूहा. मूअब त गांव के लोग किनारा लगा देई. के आके देखे आवत बा कि के का कइलस. आत्मा जब शरीर के साथ छोड़ देई त कवन मोह कि शरीर के का भइल. काका गंभीर हो गइलन. आज के समाज के ताजा हाल के बयान करत रहलन.

काका अपना माई-बाबू के अकेल लइका रहले. एही से हर घरी माई अपना साथे लेले रहे. बाहर बहुत कम जाये दे. एह से उनकरा प माई के एतना प्रभाव परल कि लइका उनकर मेहररूई हाव-भाव देख के ‘मउग’ कहके चिढ़ावस स. काका गरियो मेहररूई देस बात-बात प देगलवा, मुंह झंउसा कहे लागस बाकिर मन के निर्मल रहले. गांव में बियाह के बाद लइकी जब डोली में बइठस स आ रागि ध के रोवे लागस स त काका बोलावल जास डोली कीहे घंटा भर समझावस आ अंत मेंलइकी के रोवल भुला जाव. काका ओकरा ओठ प भरसक मुसकराहट लिया के विदा करस बाकिर नइहर छूटला के घाव प काका के समझावल कुछ देर मलहम के काम जरूर क दे बाकिर घाव त अइसन ह जवन बेटी जिनगी भर इयाद करेले.

गांव में कवनो बेमारी आवे त काली माई कीहें खप्पर चढ़ा के पूजा होखे. काका ओहिजा जा के खेलस आ अभुआस. लोग कहे कि उनकरा कपार प काली माई आवेली. सांचो खेलत-खेलत काका के आंखि लाल हो जा स. पूरा आवेश में आ जास. भूत प्रेत के कोप से लेके लोगन के भविष्य तक बतावस. उनकर बतावल केतना सांच होखे ई नइखे कहल जा सकत बाकिर विश्वास फलदायक होला एकरा अनुसार उनकरा कहला प सभे विश्वास करे आ ओह में कुछ सांचो हो जाय.

चाहे लइका के तिलक रहे चाहे लइकी के बियाह खास परोजन का दिने सबेरही काका हाजिर हो जास, का कइसे होता एकर पूरा जानकारी करस बीच-बीच में आपन सुझावो देस. भंडार प काका कब्जा जमा लेस. जलपान के समय का रही, के के कहां लागी खाये के बेरा परोसे में कइसे किफायती कइल जाव कि नुकसान ना होखे. काका के बेवस्था एतना ‘टंच’ रहे कि सब मान जाय. ई कुल काका बिना स्वारथ के करस. अब त अइसन लागे लागल कि उनकरा बिना परोजन अधूरा बा.

काका के काम के दायरा बहुत चाकर रहे. मरद-मेहरारू के झगरा से लेके लइकन के प्राइमरी स्कूल में दुपहरिया के भोजन तक उनकर काम के क्षेत्र हो गइल रहे. हीरा बो गोडिऩ लइकन के दुपहरिया में खिचड़ी तइयार करस. मोका देखते चाउर-दाल घरे भेजवा देस. काका के नजर एक दिन पड़ गइल रंगे हाथ पकड़ लेलन. ले आके प्राइमरी स्कूल के हेडमास्टर के सोझा खड़ा क देहलन. मास्टर साहेब! रउरो जिमेदारी बनत बा कि जाके देखीं कि लइकन खातिर भोजन कइसन बनत बा. असली माल घरे भेज के हीरा बो पानी नीयर खिंचड़ी लइकन के परोस देत बाड़ी त एह से कवन लाभ बा. सरकार के दीहल सहायता के ई सदुपयोग ह कि दुरूपयोग? हेड मास्टर साहेब का काठ मार दिहलस. हीरा बो के जवाब दे देलन बाकिर काका उनका के रोक देलन. कवनो समस्या के ई ना निदान ह. दूसरकी आयी त ईमानदार होखी एकर कवन सबूत बा. रउरा एही के राखीं आ एकरा प नजर राखीं. हमहू देखत रहब. ओह दिन के बाद हीरा बो एको दाना ना चोरावे के साहस कइली लइकन के खिचड़ी नीक मिले लागल. हेड मास्टर साहेब सतर्क हो गइलन.

काका बिना होली के तेवहार अब सून रही. होलिका जरा के गावत बजावत लोग जब जपाल के दूआरी प पहुंचे त होरी गावत काका के एगो कबीरा हवा में गूंज जाव एकरा बात ‘मनोरा’ गवाये लागे. गीतन में सवाल जवाब के ओहिजा ‘मनोरा’ कहल जाव. ओहर ले केशव बो आ औरतन के सामूहिक सुर के साथे गूंज जाय.कवन फूल फूले गहागह हो, कवन फूल फले भिनुसार मनोरा झूमि रह भइया झूमि रह, झूमि रह सारी रात मनोर काका ओकर जवाब देस आ प्रकृति वर्णन से शुरू भइल ई मनोरा चिकारी में फेेनु नीक लागे वाली गारिन में बदल जाव, जवना में देवर भउजाई के मजाक रहे. होली के खास आइटम में ई मनोरो मानल जाय. आजकाल त एके केहू जनते नइखे. इहे ना काका गांव के रमलीला में पात्र रहलन जवन जब चाहे तब हनुमानजी से लेके कालनेमि के पाठ क लेव. जवन पात्र कम रहे काका ओकर कमी पूरा करस.

बाकिर उनकर ‘लदहवा राजा’ के भूमिका देखे खातिर बड़ा भीड़ जमत रहे. सीता स्वयंबर में धनुष तोड़े एगो लदहवा राजा गइल रहे धनुष के देखते चित्त हो गइल. काका के उहे भूमिका रहे. पेट में कपड़ा के बंडल बांध के लाद बनावल जाव. काका लदहवा राजा के भूमिका में भचकत चलस साथे उनकर मंत्री उल्टा छाता उनका के लगावत चले, दूनो जना के नोक-झोक सुनके दर्शक हंसत-हंसत बेहाल हो जास. मंत्री के भूमिका राम जग ना करस. दू बरिस पहिले राम जग ना मू गइलन. काका ओह दिन बड़ा रोवलन. लदहवा राजा के भूमिका निभवलन बाकिर हंसी नागा ना ना लेआ पवलन ना काका ओह तरे खुल के हंसा पवलन. राम जग के गम उनका मन में कहीं बइठल रहे.

पिछला साल काका गांव में लइकिन खातिर एगो सिलाई केन्द्र आ पुस्तकालय बनववलन. उन्हन के चलावे खातिर आपन पांच बीघा जमीन दे देलन कि एकरा आमदनी से जवन पइसा मिली तवना से ई केन्द्र आ पुस्तकालय चली. दर दयाद उनका प बड़ा कुरबुरइलन कि जमीन झूठे दान क देलन. काका बात समुझ गइलन कहलन हमरा आगे पाछे के बा जवन रही तवन तोहने लोग के न रही कुछ अपनो मन के क लेबे द जा. इहे ना हरदुआर बड़ा बेमार रहलन. काका देखे गइलन त उनकर हालत देख के उनकरा आंखि में लोर भरि आइल. घर में अनाज के दाना ना रहे लइका भूखे बिलबिलात रहलन स. दवाई के करो. काका घर से गेहूं आ चाउर त भेजवइबे कइले जिला अस्पताल में ले जाके हरदुआर के भरती करा दिहले. जवले नीक ना हो गइले तब ले ओकरा एक-एक बात के खियाल कइले. ई उहे हर दुआर रहे जे झूरी काका के मउग कह के चिढ़ावत रहे- ‘मउगा मउगाई करे मेहरी के माई कहे’

ठीक भइला प काका कहले, लइकाई के ते इयार हउवे तू हमरा के ‘मउग’ कहु चाहे कुछ अउर. हरदुआर काका के गोड़ छान लिहलन आ कहलन मालिक ‘मउग’ ना रउरा ‘मरद’ बानी. ई जिनगी राउर बा. कबो कुछ कहब हाजिर रहब. काका हरदुआर के बात सुन के हंस दिहलन. जो अपना परिवार के पाल पोसु. हमरा कवन जरूरत बा. जहें सांझ तंहे बिहान. गाय रखले बानी सांझ के ओकरा दूध में कबो तनी चाउर चीनी डाल देइला त खीर बन जाले. बाट्टïी-चोखा त हमार भोजन बारह मसिया हो गइल बा. एह में कवन जरूरत बा. गाय के लेहना काट लियाइला. केतना खइबे करी. भूसा बटले बा. कहिके काका आगे बढि़ गइलन. हरदुआर आंख में कृतज्ञता के लोर-लीहले उनका के देखत रहले. काका के मुअल सुन के हरदुआर फफक-फफक के रोअत रहलन. चतुरी काका कहले-झूरिया हमनी के छोड़ के अचके चल दिहलस, तोरा बिना राम लीला आ होली में अब हमनी खातिर कवनो रस ना रही. काका के चेहरा प अखंड शांति विराजत रहे. चिर निद्रा में सूतल रहले जइसे कहत होखस आगे के काम अब तोहन लोग के हवाले.

–गिरीजेश राय जी

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