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जाड़ के मजा

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सत्येन्द्र शुभम

सत्येन्द्र शुभम
सत्येन्द्र शुभम
जाड़ के मजा जाड़ा के दिन त गरीब खातिर जान लेवा होला लेकिन एह मौसम के एगो अलगे आनन्द भी होला |
चारो ओर हरिअर हरिअर गंहूँ के खेत होखे चाहे पिअर पिअर सरसों के फूल फूलाइल होखे | कल्पना करीं ओह खेतन में रउरा घूम तानी एगो अदभुद मनमोहक गंध रउरा नथुना में मह्शूश होखे लागी | चारो ओर उजर उजर कूहा के चदरा रउरा के घेरले बा आ रउरा चलल जा तानी खेतन में | आह अदभुद !
मटर के खेत में मटर के छेमी लागल बा ओह में से आध एक किलो छीमी तूर लीन्हीं आ घरे आ के तनी तेल मिरचाई आ नून देके भूंजवा लीन्हीं फेर दू चार गो संघतिया के साथ थरिया में ले के मिल के खाईं | वोह स्वाद के आगे छ्पनो व्यंजन के स्वाद फेल बा जी ! सांझ होते घूर फूक दीन्हीं लोग दुअरा पर बिटोरा जाव आ चले लागो बतकही संसद में वइसन बतकही आ बहस देखे के कहाँ मिली जी !
गाँव घर में हर नामी गिरामी लोग के दुअरा पर घूर के घेर के छोट छोट संसद लाग रहेला | एक पहर रात बितला पर पुअरा के बिछ्वना में घुस जाईं आ जौन आनन्द पुअरा के बिछ्वना प एगो लेदरा ओढ़ के सुते में मिलेला उ आनन्द मखमल के रजाई आ तोसक प कहाँ नसीब बा जी !

—सत्येन्द्र शुभम (आखर के फेसबुक पेज से)

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