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भोजपुरी नाटक सरग-नरक : एगो इंकलाब के नाव हऽ

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भोजपुरी नाटक सरग-नरक

रंगमंच, प्रस्तुत्य कला के एगो अएहन माध्यम ह जवन अपने आप में एगो क्रांति है। एह क्रांति के शुरूआत भले एगो प्रेक्षागृह से होला बाकी एकर असर समाज के मन-मस्तिष्क पर होला जवन कई बेर भौतिक रूप भी ले लेला।

अइसने एगो क्रांतिकारी भोजपुरी नाटक सरग-नरक के मंचन रंगमंच के सशक्त संस्था रंगश्री 31 मार्च के सांझे 6 बजे से श्री अखिलेश कुमार पांडेय के निर्देशन में कइलक।

भोजपुरी नाटक सरग-नरक
भोजपुरी नाटक सरग-नरक

भोजपुरी नाटक सरग-नरक के लिखले बारें हिन्दी-भोजपुरी के सुप्रसिद्ध लेखक श्री सुरेश कांटक जी। श्री कांटक सामाजिक कुरितियन के खिलाफ खुलके लिखे खातिर जानल जालंे।

नाटक में चल रहल गंभीर कटाक्षन के दर्शक लोग केे खूब समर्थन मिलल आ कुछ चुटिला संवादन पर खिलखिलातो नज़्ार अइलें। नाटककार अपना आसपास के हो रहल अनैतिक व्यवहारन पर नोखिला नजर बनवले राखेलें आ ओही के विरोध स्वरूप अइसन का्रंतिकारी रचना के उदय होला।
हालांकि बहुत लोग के ई नाटक पसन ना पड़ी बाकी कवनो वाद से उपर उठके देखल जाओ त ई एगो सच्चाई से लबालब नाटक बा जवना के कवनो सानि नइखे।

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दिल्ली के द्वारका स्थित रंगश्री स्टूडियो थियेटर में उपस्थित दर्शक लोग बड़ा मनोयोग से पूरा नाटक के आनन्द लेहल। नाटक के लेखक श्री सुरेश कांटक एह नाटक में जातिय भेदभाव, उंच-नीच आ ब्राह्मणवाद पर क्रांतिकारी अंदाज में कठोर प्रहार कइले बारें।

एगो पंडित कवना तरह गांव के भोलाभाला दलित के रस्मों-रिवाज आ स्वर्ग-नरक के नाम पर डरा के धन अईंठे के कोशिश करतारें बाकी जागरूक नवजवान दलित के जागरूकता के कारण उनकर पोल खुल जाता। खुद पंडित के बेटा आ उनकर पत्नी उनकर विरोध करत बारें। एह नाटक के लेखन पर काव्य शैली के काफी प्रभावो देखे के मिलेला। निर्देशक अखिलेश कुमार पांडेय के निर्देशकिए प्रवीणता के कारण नाटक आउर भी प्रभावी बन गइल।

पंडित के भूमिका में मुख्य कलाकार लव कान्त सिहं ‘लव’, दलित व्यक्ति भोदू राम के भूमिका में अखिलेश कुमार पांडेय, पंडित के पत्नी के भूमिका में वीणा वादिनी आ भोदू राम के बेटा के रूप में रूस्तम कुमार बेहतरीन अभिनय कइल लोग। सभी कलाकारन के अभिनय के दर्शक लोग बहुत सरहलक। एह प्रस्तुति में रंगश्री के संस्थापक श्री महेन्द्र प्रसाद सिंह प्रकाश व्यवस्था आ मंच सज्जा, श्रीमती सुचित्रा सिंह वस्त्र सज्जा आ रूप सज्जा के कार्यभार सम्भलनीं।

– लव कान्त सिहं ‘लव’

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