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देवेन्द्र कुमार राय जी के लिखल कुछ भोजपुरी रचना

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देवेन्द्र कुमार राय जी
देवेन्द्र कुमार राय जी

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रोवेली भाषा हमार भोजपुरिया,
रोवेली भाषा हमार। टेक।

गीतीया के भाव देखि कुंहुंकेला मनवा
अंखियां में भरी जला लोर,

नाचि नाचि गावत देखि अंखियां के सोझा
होइ जाता मन हमार थोर,

कबले समझीहें माई दरद के
कहिया ले करिहें बिचार भोजपुरिया,
रोवेली भाषा हमार,
रोवेली भाषा———-भोजपुरिया। टेक।

डेगडेगे ठेस लागे तबहूँ ना सम्हरे
जाने कइसन लागलबा आग,

दूनिया जहान सभे मुहवां प थूके
तबो नाहीं आवतरुए लाज,

केहू समझावे ना समझे देवेन्दर
इजत के दिहले उघार भोजपुरिया,
रोवेली भषा हमार।
रोवेली भाषा———भोजपुरिया। टेक।

सभ पुरनका बिना काम के

बेवहार बगदल संस्कार के
कहेले दुनिया लठ मार के,
अब तुं खाली देख आ सुन
हर मुंह से जहर भरल बा।।

अंखिया खाली नाचे निरेखे
नयका जुग के रुप के देखे,
अंखिया अछइय लउके ना
जोति जगत के मरल बा।।

सभे कहे तुं बाड़ पुरनिया
समझि ना पइब नयका दुनिया,
एहीजा केहू केहूके नइखे
लउके नीमन उ त सरल बा।।

सुन देख आ आपन राख लेहाज
बाजी ना केकरो बजावल साज,
छटपइला से धुन सुर ना पकडी़
राय के जोगवल सभ जरल बा।।

तनी बंचिके रहीं

लुकवला से घिनाईं मति
देखवला में बिकाईं मति,
कुछ परदो में रहे दीहीं जी
अचके में कुल्हिउठाईं मति।।

कहल कुछऊ भीतरो रहे
कहल कुछऊ बहरो रहे,
कुछ अनबुझल रहे दीं इंहां
कुल्हि खोल के देखाईं मति।।

सफगोइए के फेरा में ढे़र लोग गइल
एही चक्कर में ढे़र लोग छूँछभइल,
छनकल तनिए सा रउवा जरुरे रहीं
अचके परदा के सटदे हटाईं मति।।

दूधारी ह दुनिया चिन्हाइ ना
जवन जवन चहब भेंटाइ ना,
एहीजा परदा में अचरज तोपाइल रहे
एह से सभका के भीरी सटाईं मति।।

कतहीं लउके ना जोति

मन के अंगना में सगरो आन्हार भइल बा,
सोंच के कुंचा के खरिका खीआ गइल बा।

संस्कार सिसिकत ढकचत चले राह में,
लोर भावना के सगरो सुखा गइल बा।

जीनीगी धरती में लउके ना कतहीं नमी,
स्वार्थ के कोंढी़ तबो त फुला गइल बा।

बोवल बेवहा के अंकुर फुटल ना कबो,
बाकी फउके के आदत धरा गइल बा।

छल के आन्ही मे आम सोंच के कोलांसी भइल,
सगरो धोखा के फेंड़ अब धधा गइल बा।

मन के कोठिला में कुछऊ हम संइचीं धरी,
बाकी पल पल के चैन अब छीना गइल बा।

छल कुहरा अब अइसन आन्हार कइले बा,
एह में एक दोसरा से सभे छिनीगा गइल बा।

फेंड़ अछइत अगुती पिछुती ना छांह मिलता,
राय रग रग में जहर घोरा गइल बा।

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