छठ पूजा : निर्भय नीर

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परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प, आई पढ़ल जाव निर्भय नीर जी के लिखल छठ पूजा (Chhath Puja) पर एगो आलेख , रउवा सब से निहोरा बा कि पढ़ला के बाद आपन राय जरूर दीं आ रउवा निर्भय नीर जी के लिखल रचना अच्छा लागल त शेयर जरूर करी।

छठ पूजा कहीं, छठ परव कहीं , षष्ठी पूजा कहीं, भा सूर्य उपासना कहीं, सभे एकही व्रत के अलग-अलग नांव हऽ, जवन कातिक माह के अंजोरिया में षष्ठी तिथि के हिन्दू के मनावे वाला एगो पवित्र परब हऽ। ई पहिले बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश आ नेपाल के तराइयन में मनावल जात रहे। बाकी अब एकर फइलाव देश भर में होखत विदेशों में बढ़त जाता। ई अइसन निर्जला आ शुद्ध सूरूज भगवान के उपासना के बरत हऽ कि तनिको असुद्धि भइला पर तुरंते कुफल मिल जाला।

ई बरत साल में दू बेरा मनावल जाला। जवन कातिक आ चइत माह में होला। दूनू अंजोरिये के छठे दिनहीं मनावल जाला। कातिक वाला के कतिकी आ चइत वाला के चइती छठ कहल जाला। एकर बड़ा कठोर नियम-नेत होला, जेकर पालन करत बरती अपना बरत के शुद्ध मन से निभावेला। एह परब के पहिले खालमेहरारूए करत रहली, बाकी बाद पीछे मरदो करे लगलन। आ अब दूनू बेकत एक दूसरा के सहयोग करत एह परब के करत बा लोग। ई व्रत बांझन के पुत देला, निर्धन के धन देला, कोढियन के स्वथ्य काया देला, आ निर्बल के बल देला।

छठ पूजा
छठ पूजा

एह पूजा के पूरा करे में चार दिन लागेला। पहिलका दिन के ‘नाहाय खाय’ कहल जाला। दूसरका दिन के ‘खरना भा लोहंडी’ कहल जाला। तिसरका दिन श्री-शोभिता के लगे जिनका के छठी माई भी कहल जाला, जाके उनकर घाट सेवल जाला आ डूबत सूरूज के अरघ दिहल जाला। अंत में चउथा दिन भिंसहरा ओहि घाटे जाके उगत सूरूज के अरघ दे के परब के समापन कइल जाला।

अब आई एह परब के सांगोपांग चर्चा कइल जाव।

छठ पूजा के पहिलका दिन

पहिलका दिन चतुर्थी तिथि के नहाय-खाय के दिन कहाला। एह दिन घर-दूआर नीमन आ पवित्र मन से खूब साफ-सुथर सफ़ाई कइल जाला। आज़ु के दिन जवन वरती होलें, नहा-धोआ के सुरूज भगवान के जल देके, आ धूप-अगरबत्ती देखा के भोजन करें लें।

भोजन में अरवा चाउर के भात आ बुंट के दाल संगे लउकी फेंटल तरकारी बनेला जवन बिना लहसुन पियाज के होला। इहे बरती खालें, आ दिन भर पूरा तरे शुद्ध बनल रहेंलें। बरतियन खातिर बर-बिछावना शुद्ध रूप से कइल जाला ताकि कवनो प्रकार से अशुद्ध ना हो पावे। कुछ लोग पुअरा भा सितलपाटी धरती पर बिछा के सुतेला लो।

छठ पूजा के दूसरका दिन

दूसरका दिन पूरा दिन भूखल रहल जाला, फेरू सांझ के डूबत सूरूज के नहा धोआ के जल ढारल जाला , आ धूप-अगरबत्ती देखावल जाला। आपन मन पवित्र क के सूरुज भगवान से बरत पूरा करे खातिर आशीर्वाद मांगल जाला। रात में जवन दस पंद्रह दिन पहिलहीं से माटी के चुल्हा पारल गइल रहेला, ओकरे पर माटी के पतुकी में साठी के चाउर आ ऊखी के रस भा मीठा डाल के बिना दूध के रसियाव बनावल जाला, आ शुद्ध गेहूं के आटा जवन पहिलहीं से धो धा के आ पिसवा के धइल रहेला ओकरे रोटी बनावल जाला। जे घीव खाला ओकरा ला रोटी में गाय के घीव चपोतल जाला। ओहि रोटी आ रसियाव से बरती सबसे पहिले अगिन जीयावलें, फेरु अगरासन कढाला। जवना के घर के लइका भा लइकी कवनो सवांगी खा जाले। अगरासन दोसरा केहू के ना दिहल जाला। इहे एगो अइसन व्रत हऽ , जवना में अगरासन केहू बेटा-बेटी खाला, बाकी व्रत के अगरासन गाय के खिआवल जाला। बरती के खइला के बाद घर परिवार के सभे लोग खाला। जेकरा किहाँ छठ ना होला प्रसादी खातिर ओहिजा बइठ के इंतजार करेला। प्रसादी खइला के बाद सभे आराम करेला।

छठ पूजा के तिसरका दिन

फजीरहीं उठ के आपन नित्य कर्म क्रिया क के शुद्ध मन से दिन भर भूखल रहल जाला। नया माटी के चुल्हा पर ठेकुआ, खजूर, पुड़ी, पिड़िकिया आदि बहूते पकवान व्रती बनावेला। कलसूप छइटा धो-धा के शुद्ध क लिहल जाला। उपरी बेरा, बांस के नया सूप, जेके कलसूप कहल जाला, ओह में फर-फरहरी आ मीठा में पाकल ठेकुआ, खजूर आ पुड़ी से सजावल जाला। ओहि के लेके छइटी भा छइटा में राख के छठ घाटे आजन-बाजन के साथे गीत गावत खलिहा पांवे जाइल जाला। श्री शोभिता के पूजा कइल जाला, आ घाट अगोरल जाला। जब सूरूज डूबे लागेलें तब पहिलका अरघ दियाला। पूजा पाठ कइला के बाद सभे घरे आ जाला। मेहरारू घर के अंगना में माटी के बनल हाथी ध के कोसी भरे लागेली। मरद ऊखी के खड़ा कर के चांदनी टांगें लें। छठी माई के गीत गवनई होखे लागेला। सभ घर दूआर, गांव जवार, भक्तिमय होखे लागेला।

छठ पूजा के चउथा दिन

चउथा दिन बरती मुनारहीं उठ के आपन क्रिया कर्म से निवृत्त हो के, नहा धोवा के, दोसर पुड़ी, चना, चाउर फर-फरहरी, आ ऊख के साथे श्री शोभिता घाटे जालें, आ ओहू जा कोसी भरेंलें। फेरू घरे आइल जाला। जे बाकी सभे लोग होला उहो ब्रह्म मुहूर्त में नहा धोआ के शुद्धि के साथे छठ घाटे दउरा उठा के छठी माई के घाटे जाके पूजे लें आ सुरूज भगवान के उगे खातिर घाट सेवेलें। कुछ लोग त ओही घरी से पानी में खड़ा हो के सूरुजदेव के उगे के राह निहारत रहेला। सूरूज के उगला पर व्रती लौटानी के अरघ देवेंलें आ अपना बरत के पूरा कइला खातिर भा मनसा पुरावे खातिर भगवान आदित्यनाथ से मिनती-बिनती करेलें। अरघ दिहला के बाद ब्रती अरघ वाला ठेकुआ मूँह में डाल के पानी पी के बरत के तुड़ेलें। दउरा मुड़ी पर उठा के फेनु सभ परिवार घरे आ जाला।

छठ पूजा के विषय में कुछ आउर बात

अइसन मानल जाला कि एह व्रत के सबसे पहिले माई अदिति कइले रहीं। जेकरा पीछे एगो कथा हऽ कि जब पहिलका देवासुर संग्राम भइल आ ओमें असुरन के हाथे देवता लोग के हार हो गइल त देव माई अदिति तेजस्वी बेटा खातिर देवारण्य के सूर्य मंदिर में छठी मइया के व्रत कइली, तब ख़ुश हो के छठी मइया सभ गुण से भरल-पुरल त्रिदेव रूप आदित्य भगवान के जन्म के वरदान दिहली, जे बाद पीछे असुरन के हरा के देवता लोग के विजयी बनवलन। जहाँ अदिति छठी माई के पूजा कइले रहीं , कहल जाला कि स्थान देवधाम हो गइल,जवन बिहार के औरंगाबाद जिला में देव सूर्य मंदिर के रुप में जान पड़ेला।

एगो आउरि कथा सामने आवेला कि जब पांडव आपन सारा राज-पाट जूआ में हार गइलें, तऽ कृष्ण भगवान के बतवला पर द्रौपदी छठ व्रत कइली , तब जाके उनकर सभ मनोरथ पूरा भइल , आ पांडव के हारल राज-पाट फेरू से मिल गइल। तब से सभे सूर्य उपासना के छठ व्रत करे लागल।

एगो आउरि पौराणिक कथा के अनुसार कृष्ण जी के पोता शाम्ब के जब कुष्ठरोग हो गइल रहे‌। तब शाक्य देश से ब्राह्मण के बोला के सूर्य के विशेष उपासना करावल गइल, जवना से उनकर कुष्ठ रोग से मुक्ति मिलल। ओ दिन के बाद से सभे सूर्य के विशेष उपासना करे लागल लोग, जवना के छठ पूजा मानल जाए लागल।

एगो आउरि पौराणिक कथा के अनुसार ई भी कहल जाला, कि राजा प्रियंवद के कवनो संतान ना रहे। तब महर्षि कश्यप जी पुत्र प्राप्ति खातिर सूर्य के आराधना उनकर पत्नी मालिनि के करवलें। जवना से उनका पुत्र के प्राप्ति भइल। बाकी कुछे दिन के बाद मर गइलन। राजा प्रियंवद अपना मुअल बेटा के लाश ले के शमशान में अइलन आ ओहि जा आपन परान देवे लगलन त ब्रह्मा जी के मानस पुत्री देवसेना प्रकट भइनी आ कहनी कि हे राजा हम ही षष्ठी देवी हईं। हमार पूजा करीं, आ दोसरो के एह पूजा के करे ला प्रेरित करीं। राउर मनसा ललसा फेरु से पूरी। जब प्रियंवद एह षष्ठी देवी के पूजा कइलन त उनका बेटा भइल। प्रियंवद राजा जवना दिन पूजा कइलन, कातिक माह के षष्ठी तिथि रहे।तब से सभे लोग एह छठी माई के पूजा करे लागल।

एह तरे कई तरह के आख्यान सूर्य उपासना के मिलेला। चाहे कवनो कथा रूप में सूर्य पूजा होखे करें के चाहीं , करवावे में सहयोग भी करे के चाही, जेकरा से सबका घरे संस-बरकत के संगे अन्न-धन-जन के बढ़ोतरी होत रहो ,आ लोग खूब ख़ुश रहो। हमरा ख्याल से ई परब अपना जन समुदाय द्वारा रीति-रिवाज से गढ़ल सूरूज भगवान के उपासना के व्रत हऽ। जवना के मुख्य धूरी किसानी आ गांव के जीवन होला। काहे कि एह व्रत के करे में ना कवनो धन लागेला ना कवनो पंडित के जरुरत बा। जरुरत होला त पास पड़ोस के सहयोग के , सद्भावना के, मिल्लत के साफ सफाई के आ एक दूसरा खातिर समर्पण भाव। एह से ए छठी माई के कृपा आ सूरूज भगवान के आशीर्वाद सबका मिलत रहे, इहे मंगल कामना बा।

छठ पूजा के नेत नियम आ केंगा मनावल जाला जाने खातिर इ वीडियो जरूर देखीं

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