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जब एगो भोजपुरी अनुवादक राखल गईल

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जब एगो भोजपुरी अनुवादक राखल गईल

जब एगो भोजपुरी अनुवादक राखल गईल
जब एगो भोजपुरी अनुवादक राखल गईल
ह त इ साँचो में भईल, ह्रदय रोग के एगो नामी गिरामी डॉक्टर साहेब रिटायर्ड भईला के बाद बेतिया में आपन क्लिनिकल खोलले, डॉक्टर साहेब के पूरा जिनगी सरकारी नोकरी में भर देश घुमत में बीतल रहे, बेटा बेटी दिल्ली में पढ़ल लो आ डॉक्टरीये के पेशा में आईल लोग, उनकर एक्के गो बेटा रहे उनकर शादिओ अपने पसन् से दिल्ली के एगो पंजाबी परिवार में भईल, उहो एगो डॉक्टर रहली।

डॉक्टर साहेब के क्लिनिक बेतिया के खुब चले लागल. डॉ साहेब अपना बेटा-पतोह क साथे बेतिया चलि गइले, क्लिनिक में होत भोर से मरीज के लाइन लाग जाए क्लिनिक में तीनु जाने यानी बापे बेटा आ पतोह मरीज के देखे लागे लोग.

अब असली समस्या दिल्ली के उनकर डॉक्टरिन पतोह में झेले के पड़त रहे – रउरा देखि रोज रोज का होत रहे क्लिनिक में गाँव गवइ से के शहर बाज़ार के मरीज आवे लो . डॉक्टरिन साहेब जब मरीज से पुछस – क्या परेशानी हैं ? क्या तकलीफ हैं ?
बस मरीज के बात सुन लीन्ही – का कहीं ऐ डॉक्टर साहेब – हईये होखे ला , सुनी
पेट ओवडेडत बा, छाती पर ट्रेन चलत बा इ डॉ साहेब, कपार बथत बा, गोड गिन्गिनात बा कबो कबो हाथ झिन्झिनात बा, मुंह माहुर हो गईल बा, मिआज उखडल रहत बा।

एगो मरीज कहलस – थूक तीत लागत बा ऐ डॉक्टर साहेब , देह गतर गतर फाटत बा,
दुसर मरीज कहलस – गवे गवे टिसत बा, तरास लागले रहत बा, झाडा उतरते नईखे आ मन करत बा की दिन भर पैखने में बैठल रही
चौथा मरीज से डॉक्टर साहेब पुछली – आपको क्या हुआ है ?
चौथा मरीज अउर हार्ड रहे – उ कहत बा- डॉ साहेब पानिये झारा होखत बा, तिल्ले तिल्ले झारा लागले रहत बा, कमजोरी के चलते चलत बानी हेने त जात बानी होन्ने. देह बरफ भईल बा, खाली पल्ला लागत बा, मुड़ी पर बुझात बा की गरम तावा रखल होखे, कपार त चूल्हा लेखा तवल रहत बा, बरमंड दरद से फाट जाई – अइसन बुझात बा।

आपको क्या हुआ है डॉक्टर साहेब पांचवा मरीज से पुछली – हमरा! मत पूछी ऐ डाकटरीन साहेब, हमरा नइहे कुछु भईल, हई! हमार इया हई. इनका देखे के बा – भोरभोरे इनका आंखी के सोझा चकमक भईल ह, उहे गिर गइली ह, मुंह से गजर्रा फेंक देली ह, तब से उनकर धुकधुकी चलत बा. जमीन पर गिरला से इनकार भोभनास फाट गईल बा आ भुभुन से खून रिसत बा, ओह बेरा त इनकर मुंह गेना नियर फुल गईल रहे, बाकिर अभी ओहर गईल।

डॉक्टर साहेब लगे जब छठा मरीज आईल – ओकरो सुन लिहिन का कहलस –
डॉक्टर साहेब – दरद से हालत ख़राब बा, कबो उपर मुन्हे होखत बा कबो निचे कारी, गएस बनता बा, गएस से पेट तमुरा लेखा फुल जाता, गएस कबो पेट में त कबो पीठ में त कबो छाती से होखत मुड़ी में ढुक जात बा . बिछ्वने ध लेले बानी, कबो कबो कए होखत बा.
सातवां मरीज के बेमारी सुन के डॉक्टर साहेब के खुदे बडमंड फाटे लागल – मरीज बतवलस – ए डॉक्टर साहेब, हमरा रात भर खोंखी होत रहत बा, खोखला के चलते निन भागी गइल बा, आंख के पपनी टाइट हो गईल बा ना हिलत बा ना डोलत बा, आंख भीरी चौबीसों घंटा अन्हारिये रहत बा, कुछो लउक्त नइखे, टोइया टोइया के चले के पडत बा, हफनियो एही में पेसले बा. गोड हगुवात रहत बा, मन करत बा हगुवावते रही, अब राउरे कोनो इलाज कारिं।

डॉक्टर साहेब मरीज के बात समझ ना आवते ना रहे, मरीज के बात सुन उ खुदे मरीज होखे लागल रही, फेर निर्णय भइल की एगो अनुवादक राखल जाव. आ एगो भोजपुरी के अनुवादक रखल गईल जे भोजपुरी में मरीज के बात डॉक्टर साहेब के इंग्लिश में सुनावे।

(सच्ची घंटना पर आधारित) –संतोष पटेल

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