भोजपुरी लोक गीतों में हंसी मजाक : रामचन्द्र कृश्नन

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हंसी आ मजाक मानव जाति के एक स्वाभाविक गुण ह। अइसन केहू ना होई जे खिलखिला के न हसलें हो न मजाक में बोललें हो, जे मनई के जीवन में न कब्बो हंसी आवे न खुशी ते ओकरो जीवन बेकारें बा,। जेह तरह से बेमार शरीरी के भोजन आ दवा जरूरी होला ओहि नियर थकल मानल शरीर खातिर हंसी आ मजाक जरूरी चीज बा, झगरा झंझट से जीव अकुताइल आ मेहरी लइका से मन मोटाइल आ काम कइला के बाद मन मुरझाइल ते इ हसीं आ मजाके मनइन के हिया हरन करेला।

चाहे रउरि केतनो रिसिआइल होई केतनो जिरजिराइल होई जब हंसी आ मजाक के छिटा परल ते राउर काया निर्मल भइल‌। एहि लिए स्वस्थ मनोरंजन खातिर नाटक सिनेमा आ नृत्य में लबार, जोकर ,भाण आ मसखरिया के विशेष व्यवस्था कइल जाला,जवन अपने हास्य व्यंग शैली में बिभिन्न प्रकार के हास्य प्रर्दशन कके मनइन के स्वस्थ मनोरंजन करेलें ।

रामचन्द्र कृश्नन जी
रामचन्द्र कृश्नन जी

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आ बैज्ञानिको लोग कहेला कि हसलें से मानव शरीर के तीन सौ साठ धमनी के व्यायाम होला जेकरे जीवन में हंसी आ खुशी के तनिको संचार नाई रहला ओकरा जीवन बेलकुलें नीरस होला।

एहि लिए कहल बा, रसे जीवन हे, यदि हंसी आ मजाक नाई रहत ते मनइन के आपन कुंठा आ वेदना के भुलवलें के अउर कवनों माध्यम नाई लउकत बा, हंसी आ मजाक से बोझल बाति बड़ा निमन आ चोख लगला, हस मुख चेहरा के बखान रउरे पाच सुनते होब, जे बात बात में हंसी आ मजाक से भरल बाति करेला ओकरा बाति में बड़ा आनन्द आवेला।

चाहे शिष्ट साहित्य के शुद्ध रचना हो चाहें चाहें लोक साहित्य के कवनों प्रसंग अगर ओहमें हंसी आ मजाक के भरपूर प्रयोग नाई बा ते ओकर छवि धूमिल लगेंलें।

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हमन के जेतना पुरान ग्रन्थ बा ओहमें एक से एक हंसी आ मसखरा से बोझल कहानी भरल बा । एतने नाई माटी के बोली से लेके गीति तक जब आंखि दउरइबें ते रउरा अइसन जगह ना पईबें जहां हंसी आ मजाक न हो । एहि लिए हमतें इहें कहब कि हंसी आ मजाक मनइन खातिर ओतनिए जरूरी बा जेतना कि जिए खातिर भोजन।

भोजपुरी लोक गीतन में हंसी आ मजाक के अनेको उदाहरन भरल परल बा, जेके सुनि के आप लोट पोट हो जाब जब बिआह के समय कन्या पंक्ष के इहा बरात आवेलें ते नारी लोग बराती लोगन के का गारी सुनावेली देखि।

एहि बरतिहवन के सूप अस कान रे ,एहि काने सुने अइलें बतिआ हमार रे।
एहि बरतिहवन के कोहा अस पेट रे एहि पेटे खाए अइलें खनवा हमार रे।
जब नाई वर महोदय के नह काटें लगला तब नारी लोग का गावेलि।
नह काटू ये नउआ नह काटू रे, अंगुली जनि काटहूं, तुहके में देबों दुल्हा के माई तुहकें बुकवा लगइहें।
जब भसूर वधू के ताग पात डारे जालें ते का सुनेंलें।
अरे सोना सोना करत रहलें गिलट लेके अइलें रे,
तोरे बहिन के भसूर मारो माडो मे हसवलें रे।
बिआह में नारी लोग समधी के का गारी सुनावेली।

समधी के बहिना गईली बजार,, बिचें मिल गया यार,उनकर काट खाया गाल हो हो मेरे लाल ,,एह तरह से भोजपुरी लोक गीतों में हंसी आ मजाक के समुन्दर भरल बा जरुरत बा एके चुनिं के निकरलें कें।

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