भोजपुरी लोकसंगीत को सहेजने का प्रयास

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युवा डाक्यूमेंट्री फिल्मकार सिमित भगत ने समृद्ध भोजपुरी लोकसंगीत को सहेजने और बढ़ावा देने के लिए द बिदेसिया प्रोजेक्ट नाम से एक अनूठा प्रयास शुरू किया है। इसके तहत वह सुदूर ग्रामीण इलाकों में जाकर लोकगायकों से पारंपरिक गीतों की रिकॉर्डिंग करते हैं, ताकि यह विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए बची रहे।

उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के देल्हूपुर गांव की रहने वाली 94 वर्षीय सरस्वती देवी लोकगीतों को याद करने की कोशिश में बुदबुदाती हैं और याद नहीं आने पर बेबस नजर से देखती हैं। लेकिन कुछ देर बाद उन्हें कुछ पंक्तियां याद आ जाती हैं, जिन्हें वह लय में दोहराती हैं। इसके साथ ही कैमरे के पीछे से यह नजारा देख रहे फिल्म निर्माता सिमित भगत मुस्कुरा उठते हैं यह ‘द बिदेसिया प्रोजेक्ट के तहत भोजपुरी लोकसंगीत को सहेजने की कोशिश का एक दृश्य है।

द बिदेसिया प्रोजेक्ट : भोजपुरी लोकसंगीत को सहेजने का प्रयास
द बिदेसिया प्रोजेक्ट : भोजपुरी लोकसंगीत को सहेजने का प्रयास

दो वर्ष पूर्व, लेखक वडाक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता सिमित भगत ने पहली बार भोजपुरी लोकसंगीत की समृद्ध परंपरा के बारे में सुना था। तभी से वह इसकी जानकारी जुटाने लगे। सबसे पहले वह देल्हूपुर पहुंचे। वहां उन्हें अजय मिश्रा नामक कलाकार के बारे में पता चला। अजय से पहली मुलाकात के दौरान ही वह समझ गए कि भोजपुरी लोकसंगीत को रिकॉर्ड करना जरूरी है, ताकि उसका असल स्वरूप भावी पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रहे।इस अहसास का नतीजा जल्द ही सामने आया, जब मुंबई लौटने के बाद सिमित ने भोजपुरी लोकसंगीत को संरक्षण और बढ़ावा देने के लिए द बिदेसिया प्रोजेक्ट के नाम से एक गैरलाभकारी पहल शुरू की। इसके लिए उन्होंने एक एनजीओ का अपना आकर्षक काम भी छोड़ दिया।

सिमित कहते हैं, ‘उत्तर प्रदेश व बिहार में भी भोजपुरी लोक कलाकारों के लिए सीमित मंच हैं। युवा पीढ़ी नए भोजपुरी संगीत के जरिये मशहूर होने की उम्मीद रखती है, पर वह भोजपुरी लोकसंगीत से दूर हो गई है। भोजपुरी लोकसंगीत को अश्लील गीतों तक सीमित समझ लिया जाता है। लेकिन अजय से मुलाकात ने मुझे एकदम अलग समझ दी।’

सिमित का ध्यान सबसे पहले बिरहा’ पर गया। बिरहा भोजपुरी लोकगीत का वह रूप है जिसमें खास कर जुदाई की पीड़ा व्यक्त हुई है। उन्नीसवीं सदी के मध्य में अंग्रेज भारत से मजदूरों को फिजी, गयाना और मॉरीशस जैसे अपने उपनिवेशों में ले गए थे।इन’गिरमिटिया’ (अनुबंधित) मजदूरों में से ज्यादातर उन्हीं उपनिवेशों में बसने को मजबूर हो गए। देश, घर-बार और परिचित-मित्र हमेशा के लिए छूट गए। अपने देश और घर-बार से जुदाई का दर्द उनके अनगिनत बिरहा गीतों में फूटा।

सिमित बताते हैं, ‘इस मौखिक परंपरा का व्यापक रूप से दस्तावेजीकरण अभी तक नहीं किया गया था। इसके ज्यादातर संगीतकार अज्ञात हैं। हालांकि बिहार के बक्सर के गोपाल मौर्य जैसे कई कलाकार आज भी इन गीतों को गाते हैं। बिरहा के अलावा चैती, बारामासा और जंतसार जैसे पारंपरिक गीत और इनकी गायनशैलियां हैंमहेंदर मिसिर और भिखारी ठाकुर जैसे भोजपुरी रचनाकारों के गीत हैं। इन सबको सहेजना जरूरी है’

सिमित भगत
सिमित भगत

सिमित का यह सफर दो वर्ष पूर्व उत्तर प्रदेश और बिहार के इलाकों में दो सप्ताह के दौरे से शुरू हुआ था।वह मोटरसाइकिल पर सवार होकर इन इलाकों में रहने वाले भोजपुरी लोकगायकों और संगीतकारों के पास गए थे।एक कलाकार के पास जाने पर उन्हें किसी और कलाकार के बारे में पता चलता था।उनसे मिलकर उन्होंने उनके गीत-संगीत की रिकॉर्डिंग की। ये रिकॉर्डिंग कभी किसी मंदिर में, कभी खेतों में या कभी किसी नदी के किनारे की गईं। फिर सिमित ने इस काम के लिए एक टीम बनाई। इस तरह वह अब तक करीब 25 कलाकारों के 125 गीतों की रिकॉर्डिंग कर चुके हैं। उनका लक्ष्य अधिक से अधिक कलाकारों तक पहुंचने का है।

सिमित चाहते हैं कि भोजुपरी लोक कलाकारों के संगीत को न सिर्फ व्यापक मंच मिले, बल्कि उनके लिए आजीविका के मौके भी पैदा हों। इसके लिए वह इंटरनेट का उपयोग करने की दिशा में भी योजना बना रहे हैं। ऑनलाइन व लाइव कार्यक्रमों की योजना भी है फिलहाल द बिदेसिया प्रोजेक्ट के फेसबुक पेज व यूट्यूब चैनल पर कुछ कलाकारों को सुना जा सकता है।

द बिदेसिया प्रोजेक्ट यूट्यूब चैनल: https://www.youtube.com/channel/UC2jnfWIA9dtN6__bDD9HhpQ

द बिदेसिया प्रोजेक्ट फेसबुक पेज: https://www.facebook.com/TheBidesiaProject

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