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भोजपुरी कहानी कासे का हो गइल | हीरा प्रसाद ठाकुर

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भोजपुरी कहानी कासे का हो गइल | हीरा प्रसाद ठाकुर

परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प, रउवा सब के सोझा बा हीरा प्रसाद ठाकुर जी के लिखल भोजपुरी कहानी कासे का हो गइल , पढ़ीं आ रउवा सब से निहोरा बा कि एह कहानी के शेयर जरूर करी।

बासन्ती के दोसर देह रहे। प्रायः अब दिने गिनल जात रहे। पाँच दिन पहिले से उनुका पेट में मीठा – मीठा दरद होत रहे। तरूण कसहूँ – कसहूँ दूनों बेरा खाना बनावस अउर खा, खिआ-पिआके नोकरी निभावत रहन। बड़ी भीड़ -भड़ाका अउर उभ-चूभ में परल तरूण कहलें –

ए बासन्ती ! चलऽ ना तोहरा के मालिगाँव रेलवे अस्पताल में भर्ती करा दीं। हमरा बड़ी मेहनत करेके परतादूनों बेरा खाना बनाना, ड्यूटी करना साथ-साथ कमला बेटी पर ख्याल करना। मानसिक तनाव हमार दिनों पर दिन बढ़ते जाता।

भोजपुरी कहानी कासे का हो गइल | हीरा प्रसाद ठाकुर
भोजपुरी कहानी कासे का हो गइल | हीरा प्रसाद ठाकुर

बासन्ती तइयार ना भइली। अउर कहली – रउआ से कमला ना पोसइहें। अबहीं मीठे – मीठे नू दरद बा। आखिरी हो जाई तब हम चल चलबि। हाताना परेसानी में रउआ के डालिके अतना दिन पहिले कहाँ जाईं। रउआ नोकरी करबि कि हमरा के देखे मालिगाँव जाइबि कि बेटी कमला के पोसबि।

एही उधेड़ बुल में तरूण परले रहन कि ड्यूटी करे चल गइलें। रंगिया में उनुका नोकरी करत चार वरिस हो गइल रहे। बेटी कमला स्टेशन के बगले क्वाटर से निकलिके लइकन संगे स्टेशन में खेले आ गइली अउर संटिग गाड़ी तेजपुर वाली पर चढ़े – उतरे लगली। अतने में गाड़ी खुल गइल।

एने तरूण के पास खबर आइल कि राउर बेटी कबे से कहाँ दो त चल गइली। अउर राउर बासन्ती दरद से आह बाप आह दादा चिल्लात बाड़ी।

हीरा प्रसाद ठाकुर जी

तरूण के दिमाग काम ना करत रहे। एक तरफ कमला बेटी भुलाइल रही दोसरा तरफ बासन्ती के चोला दरद से तड़पत रहे। ऑफिस में हाला हो गइल। अब कवन निदान निकालल जाय। एक तरफ तरूण दोसरा तरफ बासन्ती अपने आप में हुटुकत रहे लोग।

मनीष डेका इन्चार्ज रहन। पुरनिया आदमी सलाह देलन – तरूण बाबू ! आखिर राउर कमला त भुलाइये गइली। अब रउआ आपन बासन्ती के बचाईं। राउर बासन्ती के साथे दू गो जीव बा। कमला के साथे एके जीव बाटे।

तरूण बात मान गइलन। अउर हाली-हाली बासन्ती के मालिगाँव रेलवे अस्पताल में पहुँचा देलन। बासन्ती के हदस समाइल रहे आपन बेटी कमला खातिर। सात बजे रात में तरूण मालिगाँव अस्पताल में बासन्ती के पहुँचा देलन।

विहान भइल बाकिर बासन्ती के चोला बदलल ना अउर बासन्ती के उहवें छोड़िके तरूण गिया चल अइलन।
तरूण आपन बड़ा बाबू के सहयोग से चारो भर घुमलन बाकिर कमला मिलली ना।

एने कमला चार बरिस के, गोरेश्वर उतरिके सीधे रोड पकड़िके चल देली। गोरेश्वर पहिला स्टेशन रोगिया से रहल जवन तेजपुर के रास्ता में बा। कमला के चलते चलत छव शाम बज गइल। अब अन्धकार होखे लागल। कतहीं केहू लउके ना। केने जास । ओहिजे बइठिके रोवे लगली।

उहवें अमीत भराली के पाँच-सात कट्ठा में हाता मारल कान रहे। बहुत बड़का जमींदार । गेटे पर घुमत रहन अउर देखलन कि एक चार वरिस के लइकी रोअत बिआ। भराली के अनुमान भइल कि जरूर ई कवनो बिहारी के बच्ची हटे। अमीत भराली आपन बिहारी नोकर चंदन के बोलवलन।

चंदन पूछे लगलन भोजपुरी में। लइकी कवनो जबाब ना दे। खाली रोअत रहे। चंदन उठाके घरे ले गइलन। अमीत भराली के समुचा परिवार ओह कमला के मनावे में, बझावे में लाग गइल। आखिर कमला दू कवर खइली अउर खाके सूत गइली।

कमला के सेवा ओह अमीत भराली किहाँ कम ना होत रहे। एह से कमला उहाँ रस – बस गइली। छोट – छोट लइकन में मिलके खेले कूदे लगली।

एने मालिगाँव अस्पताल में बासन्ती छटपटात रही। उनुकर दू पस्ता जीवन से चोला बदलल ना। सात दिन बीत गइल। तरूण कबो बेटी के खोजे जास कबो ड्यूटी करस। कबो मालिगाँव जास। उनुकर दिमाग ना काम करत रहे। सोंचत रहन तरूण कि हमार का भविष्य बा। अब केतना दुख देखबि। ना नेहाये के सुध ना खाये के बेर। खाना बनावल तवाँ जाय। ढूके ना कि खास। अब होटले में खाके काम चलावे लगलें।

ओने मालिगाँव में बासन्ती के भी खाना-पीना नीक ना लागत रहे। उहो अंठई अस सुखा के हो गइली। अब उनुकर खाली पेट भर लउकत रहे।

मनीष डेका जे ऑफिस इन्चार्ज रहलें कहलें – तरूण जी ! राउर बेटी के कुछ खबर नइखे मिलत। बड़ी चिन्ता के बात बाटे। अमीत भराली जमींदार रहन। अउर नेता भी। प्रेस रिपोर्टर के बोलवलें. अउर बेटी कमला के फोटो खींचवा के समाचार बनवा के अउर अखबार में निकलववलें।

नूतन असमिया अखबार में निकलल। मनीष डेका अखबार पढ़लन। तरूण के असमिया भाषा ना आवत रहे। मनीष डेका कहलन – तरूण जी ! हई देखीं – राउर कमला के फोटो ह । गोरेश्वर में खैराबारी के जमींदार अमीत भराली किहाँ सात दिन से बिआ।

तरूण जी हहुअइलें देखलें अउर आपन जिगर के टुकना कमला के पहचान लेलन। करेजा के घाव ठंढा होखे लागला

कइसहूँ बिहान भइल। दू गो असमिया, एगो बंगाली, एगो केरेलियन अउर तरूण मिलके रंगिया से गोरश्वर उतरलन अउर खैरावारी के जमींदार अमीत भराली के गेट पर पहुँच गइलन जा।

अमीत भराली के पास खबर पहुंचल। उनुका बड़ी बेचैनी भइल कि कहाँ बइठाईं – उठाईं, का खिआईं-पिआईं। सारा परिवार एह लोग के सेवा – सत्कार में लाग गइलेंकिसिमकिसिम के नास्ता, भोजन, सेवा सत्कार एह लोगन के भेंटाइल। एने तरूण के भीतरे – भीतर फेंफरी परल रहे कि कइसे हाली आपन कमला बेटी के देखीं।

ओने भराली के परिवार में हाला मच गइल कि कमला के लेबे लोग आइल बा। कमला सुतले रही। सुतलें में भराली कोरा में टाँगिके ले अइलें।

तरूण बेटी के देखते दउरके कोरा में ले लेंले अउर कहलें – कमला ! कमला !!

कमला के नींद छनाक दे टूट गइल। अउर अपना बाबूजी के नरेटी छापिके रोओ लगली।

भराली के परिवार कमला बेटी के विदाई करे में छपटात रहे। सुकुचात रहे बाकिर करस का। कवनो उपाय ना रहेचाहत लोग ना रहे कि कमला हमरा घर से जास।

कमला के विदाई होखे लागल। हर-हरऽ सब कोई के लोर चुये लागल। विदाई में दूगो फराक दू गो सलवार, दू गो पाईन्ट, दू गो बचकानी असमिया साल, पाँच गो नारियल, पाँच गो उख, पाँच किलो पेंड़ा लोग देलना

तरूण देखलें कि कमला के देखे खातिर दू वरिस के लइका डेगा – डेगी उढुकत भराली साहब के बाबा कहत उनुका कोरा में चढ़ गइल।

अब तरूण ओह लइका के देखते पसीज गइलन अउर एक हजार एकावन रोपेया निकाल के देबे लगलन। भराली साहब नकरलन जरूर बाकिर तरूण ओह लइका के बगली में डाल देलन अउर साहेब सलामत करत विदा लेलन।

मनीष डेका जे तरूण के अफिस इन्चार्ज रहन से रंगिया आके कहलन तरूण जी गौहाटी जायेके गाड़ी लागल बिआ। एही लगले चढिके बासन्ती के देखा आईं ना त ओने छटपटात होइहन। कलपत होइहन।

तरूण आपन बेटी कमला के लेके धावा धाई मालिगाँव पहुँचलन। बासन्ती आपन बेटी कमला के फरके से देखते ही अघा गइली। कमला दउरत गइली अउर माई के छाती पर जसहीं चढ़ली तसहीं बासन्ती के हलुके दरद भइल अउर बेटा !!

ध्यान दीहल जाव : इ भोजपुरी कहानी हीरा प्रसाद ठाकुर जी के लिखल किताब बाल कहानी संग्रह घोडा के कोड़ा से लिहल गइल बा।

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