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क ख ग घ | भोजपुरी कहानी | संजीव कुमार सिंह

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संजीव कुमार जी
संजीव कुमार जी

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“हेति चुकी रहनी त, बकरी चरवनी
ओहिजा पकवा इनार बा,
हमरा गावहि में रहे के विचार बा……..”
सुनर गीत,कुछउ दूर से सुनात रहे…….

दु जाना यार लोग, अपना मस्ती में बकरी के हकले रहे लो, औरि गीत गावत चल देले रहे लो…….

सुबोधवा औरि मनबोधवा दुनु पकिया यार रहलसन। दुनु स्कूल नाहि जा सन। दुनु के माई बाप पक्का गवांर। माई बाप दुनु अनपढ़। दुनु के माई बाप, रोज बकरी चरावे के भेज द सन। सुबोधवा के त बाबूजी, बोल बम करत देवघर गईल रहलन, तबे सुबोधवा बोल बम के कपड़ा पहिरले बावे। बाबा देवघर के आशीर्वाद मिलल, तबो बुझात बा अकील ना आइल की लइका के स्कूल ना भेज के बकरी चरवावत बाड़न।

संजीव मास्टर साहब के नजर सुबोध मनबोध पर पड़ल। दुनु के बुला के पूछनी की पढ़े के मन ना करेला, का बाबु। बोल बाबु। पढ़े के मन करेला। दुनु यार अब चुप चाप खड़ा हो गइल बालो। केहु कुछु नइखे बोलत। संजीव सर फेरु से पूछनी, सुबोध मनबोध बोल बाबु, काहे पढ़े नइख जात। मनबोध हिम्मत करके, कहलन, सर जी, माई कहेले की पढ़ लिख के का होइ, बकरी चरइब त पइसा मिली। एहीसे। जब जब पढ़े के कहेनी, तब तब डॉटेली, पढ़े के ना भेजेली।

अच्छा एक बार फेर से माई से कह के देख, कहिय की माई पढ़ लिख लेहब त खूब पइसा कमाइब, तहरा कौनो दिक्कत ना होइ। आज अपना माइ से कह के देख…काहम फिर तहरा से बात करब…

सुबोध मनबोध, दुनु यार घरे जाके माइ से बात कइल लो, लेकिन माई के बुद्धि हेरा गईल रहे।

“केतनो कहबु, केतनो कहबु
ना चराएब अब बकरियां
हम ना जानी क ख ग घ…
गोर होला कि करिया
हमरा के मंगवा द ए माइ
पढ़े के स्लेटिया
स्कुलिया में बुलवले बानी
संजीव सर नाम लिखवाये के
चल माई नाम लिखा दे
बनब हम बड़का अधिकरिया
किताब ड्रेस सब फिरी में मिली
और मिली भोजनवा
नाम चल के लिखा दे माइ
रोज पढ़े जाइब स्कुलिया ।”

तबले 2 डंटा, सटाक से पीठिए पर, मिलल। सब स्कुल के भुत उतर गईल। अगिला दिने फेर से, बकरी लेके दुनु यार खेत मे…..

संजीव सर, फेर से देखनी त पूछनी की का भइल ह, त बात सब बतइलन, कि पढ़े के निहोरा कईनी ह, त मार पड़ल बा। मास्टर साहब कहनी की ठीक बा, कल तहरा माइ औरि बाबुजी से बात होइ, हम पूछब की पढ़े के काहे नईखी भेजत, ठीक बा, इहे कह के संजीव सर स्कूल की ओर चल दिहनी। रास्ता में धनन्जय यादव सर से भेंट हो गइल।

धनन्जय सर से, संजीव सर कहनि की काल, सुबोध मनबोध के घरे चले के बा, उ दुनु लइका के स्कुल में लाइल जरूरी बा, ताकि एने के सब लइका पढ़ लिख के बढ़िया आदमी बन जाइ लोग और एने के समाज मे भी सुधार हो जाई।

अगिला दिने, सुबोध मनबोध के माई बाबुजी के घरे जा के बात भइल,” देखि लोगन , पढ़ल लिखल के महत्व रउआ जानत बानि, समाज मे बहुत इज्जत बा औरि मिलेला, सबसे बड़का बात कि तहार लइका, कुछ टेक्निक सिख लिहन, त उनकरा बढ़िया रोजगार मिली, जब घर मे तहार लइका कमा के तहरा हाथ मे रुपया रखी तब तहार मन गदगद हो जाई, तहार परिवार के स्थिति सुधर जाई, देखि लोगन बात के समझ के विचार करके अपना बाबु के स्कुल में लेके आ जाई लोगन, हम हेड सर के कह के नाम लिखा देहब, राउर लइका के ड्रेस के पइसा मिली, किताब के पइसा मिली, छात्रवृति के भी पइसा मिली, बकरी चरावला से का मिली…..”

धनन्जय सर भी समझइनी। तले मुखिया जी भी कही से घुमत घुमत आ गइनी। उहो के समझइनि। धीरे धीरे बात असर करे लागल। सुबोध के माई बाबुजी, मनबोध के माई बाबु जी सब लोग तैयार हो गइल लो। काल से दुनु सुबोध मनबोध स्कुलिया में आ गइले…..

स्कुल में सुबोध मनबोध के नया छात्र के रूप खूब स्वागत भइल। अगिला दिने धनन्जय सर शाम में स्कूल बंद करके जाये लगनी, तब सुबोध मनबोध आके परनाम कइल लो, धनंजय सर कहनी की खूब पढ़ लिख, बड़का आदमी बन, इहे आशीर्वाद बा।
संजीव सर भी मन ही मन मुस्काए लगनी….।

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