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का ह जिउतिया : तारकेश्वर राय

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का ह जिउतिया : तारकेश्वर राय

परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प, आयीं पढ़ल जाव तारकेश्वर राय जी के जितिया व्रत पर लिखल एगो आलेख का ह जिउतिया, रउवा सब से निहोरा बा कि का ह जिउतिया आलेख पढ़ीं आ आपन राय जरूर दीं, अगर रउवा तारकेश्वर राय जी के लिखल रचना का ह जिउतिया अच्छा लागल त शेयर जरूर करी।

जिउतिया परब ह आस्था के बिश्वाश के । हर साल कुवार महीना में कृष्ण पक्ष के अष्टमी के दिन निर्जला उपास राख के अपना सन्तान के लम्बी उमिर के कामना करेले माई । उ उमिर के कवनो पड़ाव पर काहे ना होखे अपना संतान खातिर ओकर भावना में कवनो कमी ना लउके । पढ़ल लिखल बिद्वान बेटा के अनपढ़ निरक्षर माई भी अपना बेटा के भविष्य खातिर चिंतित रहेले । माई के महत्ता के, के बा जे नकार दिहि ? माइये हिय जवन ईट पाथर से बनल मकान के घर बनावेले, गुरूजी लोग देश के भविष्य के निर्माण जरूर करेलन जा त माई ही ओह भविष्य के आधार के जनमावेले । माई के इहे अरदास रहेला संतान ओकर सुखी रहँस चाहे ओकरा प्रति उनकर बेवहार कवनो दर्जा के होखे निक भा जबुन । पुरुष प्रधान समाज में बेटा के महत्व जियादे दियात रहे लेकिन अब एह भावना में धीरे धीरे ही सही बदलाव आवे के समहुत हो चुकल बा । बेटा बेटी के बिच के अंतर के खाई धीरे धीरे पटा रहल बा । आज केतने माई बेटा ना अपना संतान खातिर जिउतिया भूख ताली, ई बदलाव समय के मांग बा । रीती रिवाज भी समय के अनुसार बदल लेहले में सब कर भलाई बा ।

का ह जिउतिया : तारकेश्वर राय
का ह जिउतिया : तारकेश्वर राय

जिउतिया के भुखला में रउरो अपना माई के संगे चिल्हो सियारो के कथा जरूर सुनले होखब हमहुँ अपना अम्माँ के संगे एह कथा के सुनले बानी । पिछला जनम के कइल गइल नीमन बाउर काम के फल अगिलो जनम में जरूर भेटाला इहे एह कथा के कहनाम बा । चिल्हो के तप उनका सन्तानन के दीर्घायु बनावता ओहिजे सियारो के लालच के कारण उनका संतान के नियति के हाँथ में समाये के परता असमय ही । कथा के अंत में सियारो भी सत्य निष्ठा से जिउतिया के बरत के करतारी आ अपना पिछला जनम के पाप से मुक्ति पा जात बाली अउरी लम्बी उमिर तक जिए वाला संतान के महतारी के सुख भोगे के फल भेटाता एह बरत के साँच मन के कइला के कारण । कछु होखे भा ना होखे अपना बाउर करम पर अंकुश लगावे के सिख त भेटाते बा ।

जितिया व्रत से माई आ संतान के बिच सनेह के बंधन के मजबूती मिलेला ओकर दोसर परतोख बिरल ही बा । जहां संतान के मन में ई बिस्वाश रहेला की ओकरा माई के तप ओकरा पर संकठ ना आवे दिहि ओहिजे माई के मन में भी अपना संतान के सुरक्षा के लेके फिकिर कम होला । काहे ना रही, काहे की माई खर जिउतिया कइले बिया । हमनीके भोजपुरिया बघार में अक्सर हम सुनले बानी कहत की “जा हो बच गइल तोहार माई खर जिउतिया कइले रहली ह ।” सत्यता केतना बा उ त भगवान जान लेकिन आस्था आ बिश्वास से आदमी दुरूह से दुरूह काम के भी हँसत बिहँसत क ले ला आसानी से ।

कथा सुनला के बाद अक्सर अम्माँ आँख बन क के अंचरा हाँथ में लेके हाँथ जोर के कहे “ये अरियार का बरियार….. जा के भगवान से कहि दिह की फलाना के माई जिउतिया भूखल बाड़ी । हे जिउतया माई जइसे दुनिया के कुल्हिये बचवन के रक्षा करे लू ओइसहिं हमरा बचवा के नीके नीके रखिह । उनके हमरो उमिर लाग जॉव ये माई ।

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