परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प, रउवा सब के सोझा बा धनंजय तिवारी जी के लिखल भोजपुरी कहानी दुःखवा हरेलू हो बेटी, पढ़ीं आ आपन राय जरूर दीं कि रउवा धनंजय तिवारी जी के लिखल भोजपुरी कहानी ( Bhojpuri Kahani) कइसन लागल आ रउवा सब से निहोरा बा कि एह कहानी के शेयर जरूर करी।
अलोक जी के सिर में कई दिन से असहनीय दर्द रहे। दर्द के दवाई के कुछ असर ना होत रहे। पिछला कुछ दिन से पैर में थोड़ा सूजन भी आ गईल रहे अउरी उलटी भी होखे। वृद्धाश्रम से एम्बुलेंस कुछे देर में उनके हॉस्पिटल ले जाए वाला रहे। एम्बुलेंस अबे आईल ना रहे । ओही के इन्तजार में उ आंखी बंद क के बईठल रहले। आजू उनका कुसुम के बहुत इयाद आवत रहे। बयिठले बईठल पता ना कब उनकर दिमाग में अतीत के बात घूमे लागल।
“बाबूजी रउवा सर में बहुत तेज दर्द बानू? रुकी हम रउवा सिर में तेल लगा के दबा देतानी” आठ साल के कुसुम उनके अपना सिर के दबावत देखली अउरी कहली।
कुछे दिन पहिले अलोक जी के पत्नी के असामयिक देहांत भईल रहे अउरी उ अपना पीछे अलोक जी के साथे आठ साल के कुसुम अउरी 6 साल के अभिषेक के छोड़ गईल रहली। सिर दर्द के बेमारी अलोक जी के बचपन से ही रहे। बचपन से लेके जवानी तक माई अउरी शादी के बाद पत्नी उनका सिर में तेल लगा के दबा देउ लोग। ओईसे उनके आराम मिल जाऊ। लेकिन पाहिले माई अउरी ओकरा बाद पत्नी के गईला के बाद अब इ करे वाला के रहे। आजू कुसुम के बात सुनके आंखी गिल हो गईल। ओइदिन उनका अहसास भईल कि बेटी में औरत के सगरो रूप छिपल होला।
कुसुम आके उनका सिर पर तेल रखके दबावे लगली अउरी अलोक जी अनायासे गा उठले- दुखवा हरेलू हो बेटी, आंखी के पुतरिया।”
साचो में कुसुम अईसने रहली। जेतना दिन उनका साथे रहली, कबो अपना बाबूजी के दुःख परेशानी के बढे ना दिहली। हरदम कोशिश करस कि बाबूजी के कवनो तकलीफ ना होखे। कुसुम अउरी अभिषेक के चिंता के चलते ही अलोक जी दुसर शादी ना कईनी। कुसुम पढ़े में बहुत तेज रहली अउरी डॉक्टर बने चाहत रहली।
12 वि में जब निमन अंक से पास भयिली त अपना मन के बात बाबूजी के बतवली। बाबूजी दुबिधा में रहनी। अभिषेक दुयिये साल पाछे रहले अउरी उनका के भी इंजीनियरिंग पढावे के रहे। ओकरा बाद कुसुम के शादी भी करे के रहे। एगो हाई स्कूल के क्लर्क के नौकरी से इ बिलकुल संभव ना रहे। इ दुविधा अलोक जी के खात रहे। बाबूजी के चुप्पी से कुसुम बाबूजी के परेशानी समझ गईली। अभिषेक के पढाई ज्यादा जरूरी रहे। कुछ दिन बाद उ खुदे आपन मन बदल देहली अउरी बी ए में एडमिशन करवा लेहली।”
“एम्बुलेंस आ गईल। चली अलोक जी।” वृद्धाश्रम में ही उहाँ के सहपाठी, पाटिल साहब आवाज देहले। अलोक जी अतीत में से वर्तमान में आ गईले अउरी कुर्सी से उठ के चल देहले।
हॉस्पिटल में अलोक जी के देखते डॉ के इ अनुमान हो गईल कि उनका पैर के सूजन अउरी सर दर्द सामान्य नईखे। फेरु उ अपना शंका के आधार पर दू तीन गो टेस्ट लिखले।
दू दिन में टेस्ट के परिणाम आ गईल अउरी डॉक्टर के जवन शंका रहे उ सच साबित भईल। अलोक जी के दुनु किडनी ख़राब हो गईल रहे। आश्रम के संचालक के लगे अभिषेक के बतवला के अलावा कवनो दुसर चारा ना रहे। वृद्धाश्रम के भी आपन कुछ सीमा रहे। बुढ पुरनिया के वृद्धाश्रम रख के देख भाल कईल अलग बात रहे अउरी बेमारी के इलाज करावल अलग। किडनी फेल भईला के बाद दुयिगो रास्ता रहे- यात नियमित डायलसीस होखे या फेरु किडनी बदलावों अउरी इ दुनु तरीका बहुते महंगा रहे। वृद्धाश्रम ऐ खर्च के वहन करे में संभव ना रहे।
अलोक जी के पूरा उम्मीद रहे कि उनका कुछु ना होई। अभिषेक बचा लिहे। परिवार समेत विदेश शिफ्ट होत समय अभिषेक के कहल बात उहाँ के निमन से इयाद रहे अउरी ओयिपर पूरा भरोसा भी रहे।
“बाबूजी रउवा तनिको चिंता मत करेब। हम बानी नु। कवनो भी दिक्कत होई, जब हमार जरुरत लागी हम आ जाएब” जात घरी अभिषेक अलोक जी से वादा कईले रहले। गयीला के बाद हफ्ता में एक दू बार हाल चाल भी लेत रहले। पिछले कुछ दिन से महीना पंद्रह दिन पर फ़ोन आवे। अलोक जी समझत रहले। नौकरी में आदमी के व्यस्तता भी त बढ़ जाला। ऊपर से आनी देस।
संचालक अलोक जी के बात अभिषेक से करा देहनी। बेमारी सुनके अभिषेक घबरा गईले। फेरु बाबूजी के हिम्मत देहले अउरी कहले कि उहाँ के कुछु ना होई। कंपनी में छुट्टी के बात क लेतानी अउरी छुट्टी मिलते आएब। तबले कुछ पईसा भेज देतानी। अभिषेक के बात से अलोक जी के आधा बेमारी एहिंगा ठीक हो गईल। ओकरा बाद अभिषेक कुछ पईसा भी भेज देहले। कुछ दिन उहाँ के डायलसीस भईल।
लेकिन ओकरा बाद पहिले अभिषेक के फ़ोन आवल बंद भईल अउरी ओकरा बाद पईसा आवल भी। संचालक महोदय फ़ोन क के थक गईले पर यात अभिषेक के नंबर पहुच के बाहर आवे या फेरु केहू फ़ोन ना उठावे।
अलोक जी की स्थिति ख़राब होखे लागल। अब उनका समझ में आ गईल रहे कि जवना बेटा खातिर उ कवनो उठाह ना छोडले रहले। जेकरा भविष्य खातिर ओतना मेधावी लईकी के भविष्य पर रोक लगा देहले उ उनके बरसो से छलत आईल रहे। पहिले जब उ कहलस कि गाँव के घर दुआर बेच के मुंबई में फ्लैट खरीद के शिफ्ट हो जाईल जाई काहे से कि बच्चन के पढाई के स्कोप ओयिजा नईखे त उनका इ बात सही लागल रहे। ओकरा बाद जब बेटा के विदेश में नौकरी हो गईल अउरी उ कहले कि काहे ना फ्लैट के भाडा पर दे दिहल जाऊ अउरी रउवा वृद्धाश्रम में शिफ्ट हो जाई। ओईसे राउर मन भी लागल रही अउरी बच्चन के भविष्य खातिर कुछ पईसा भी जमा हो जाई। उनका तबहियो अभिषेक पर कवनो शक ना भईल। पर अब उहाँ के सब बुझा गईल रहे। उनकर बेटा उनके छल लेले रहे। लेकिन इ दुःख उ केकरा से कहबो करस। अपना जन्मला के छलल सबसे कहल भी त ना जा सकेला। हालांकि आश्रम के सब साथी लोग बुझ गईल रहे। उहो लोग त अपना के ही छलल रहे लोग।
अलोक जी के गिरत हालात पर पाटिल साहब बड़ा दुखी रहले। उ रोज रोज उनसे पूछस कि कवनो अउरी नजदीकी रिश्तेदार नईखे। पर उ कुछु ना बतावस अउरी अब बता के भी का होईत। कुसम अपना परिवार में रच बस गईल रहली। उनकर आपन कुल जिम्मेदारी रहे। ओके छोड़ के उनकर देखभाल कहाँ संभव रहे। ऊपर से अतना बड बेमारी। उनके अपना कष्ट के बता के भी दुखी कईला से का फायदा। वईसे भी उ आपन जिनगी आपन संपत्ति सब त बेटा के नावे क देहले रहले। जब उहे धोखा दे देहलस फेरु अब कवन आस बचल रहे।
धीरे धीरे अलोक जी के हालत ख़राब होखे लागल। आश्रम में सब केहू जान गईल रहे कि अब उ ढेर दिन में मेहमान नईखन। हरमेशा उ अपना विस्तर पेर लेटल रहस। उलटी अउरी दस्त भी खूब होखे। जब भी उनका सर दर्द होखे, मुह से अनायास ही इ गाना उनका मुह से निकल जाऊ- दुखवा हरेली हो बेटी। आश्रम के सब केहू ऐ गाना से परिचित हो गईल रहे।
ओइदीन सर में भी बहुत दर्द रहे अउरी उ आधा बेहोशी में लेटल रहले। केहू धीरे धीरे आके उनकर सर सहलावे लागल। सिर पर जानल पहचानल नवरत्न तेल के खुसबू से उनका बड़ा राहत मिलल अउरी उ गा उठले- दुखवा हरेली उ बेटी, आंखी के हो पुतरिया।”
गावत गावत उ रूक गईले अउरी चिहा के ताके लगले। पहिले त उनका देख के विश्वासे ना भईल। उनका सिरहाने कुसुम बईठ के सिर दबावत रहली।
“बाबूजी गांई ना” उ सुसकत कहली “काहे चुपा गईनी” जबाब में अलोक जी के रोवाई फूट पडल अउरी कुसुम भी रोवे लगली।
बाबूजी से कुसुम के बस एके शिकायत रहे कि अतना कष्ट चुपचाप सह गईनी पर उनका काहे कबो ना बतवनी। हालाँकि उनका मालूम रहे कि उनका कष्ट ना होखो एही खातिर उहाँ के उनसे इ सब ना बतवनी। बाबूजी सज्जनता से उनका मन बाबूजी खातिर स्थान अउरी उच हो गईल रहे।
सामान्य होते ही अलोक जी के मन में इ सवाल आईल कि आखिर कुसुम के कईसे उनका बारे में पता चलल ह। “तहके अभिषेक भेजले बाड़े नु?” उ सोच के पूछले।
कुसुम ना में मूडी हिला देहली अउरी पास ही खड़ा पाटिल साहब के तरफ देखे लगली। फेरु पाटिल साहब बतवले कि रोज रोज उनका मुह से बेटी के गाना सुनके इ शक भईल रहे कि जरूर उनके केहू बेटी बा जेकरा खातिर उ गीत गावेले। फेरु काफी खोजला के बाद उनका डायरी में कुसुम के नंबर मिलल रहे अउरी उ उनके फ़ोन कईले रहले।
कुछ देर में संचालक के साथे कुसुम के पति भी आ गईले। आश्रम से जाए के सारा औपचारिकता उ पूरा क देले रहले अउरी उनके ली जाए खातिर बाहर उनकर कार इतजार करत रहे।
“अब हमार अंतिम समय नजदीक बा। हमके अपना साथे ले जाके तह लोग काहे परेशानी उठाव तार लोग?” ओ लोग के मन के इच्छा जान, अलोक जी कहले।
“अईसन बात मत कही बाबूजी” कुसुम उनका मुह पर हाथ रखत कहली “हम अपना खून के आखिरी कतरा तक रउवा के बचावे खातिर बहा देब। रउवा कुछु ना होई ”
फेरु कुसुम अपना मन के बात बता देहली। उ अलोक जी के आपन किडनी देबे के तय क लेले रहली।
अलोक जी आगे कुछु ना कहले। वृद्धाश्रम के सगरी साथी लोग भारी मन से उनके विदा कईल लोग। सबके मन में इ अफ़सोस रहे कि काश ओ लोग के भी एगो कुसुम जईसन बेटी रहिती। फेरु ओहू लोग के भी वृद्धाश्रम में जिनगी ना बितावे के पडित।
कार में अलोक जी लेटल रहनी। उनकर मूडी में गोदी में रखके कुसुम दबावत रहली अउरी भर रास्ता अलोक जी इहे गावत रहले -दुखवा हरेलू हो बेटी।
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