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बंशी | भोजपुरी कहानी | संजीव कुमार सिंह

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बंशी | भोजपुरी कहानी

परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प, आयीं पढ़ल जाव संजीव कुमार जी के लिखल भोजपुरी कहानी बंशी , रउवा सब से निहोरा बा कि पढ़ला के बाद आपन राय जरूर दीं, अगर रउवा संजीव कुमार जी के लिखल भोजपुरी कहानी अच्छा लागल त शेयर जरूर करी।

दीपक बड़ी देर से एगो पेड़ के नीचे खड़ा रहलन। रिकशावाला के इंतजार करत रहलन। बहुत बरिश पहिले जब आफिस जास त ओहि पेड़वा के छांव में खड़ा होईके रिक्शा के इंतजार करस। बंशी नाम के एगो रिक्शा वाला अपन रिक्शा लेके तुरन्त पहुच जाव, उनके ऑफिस पहुचा देव। रोज बंशी से उनकर मुलाकात होखे, रोज बंशी उनके ऑफिस पहुचावस, छुट्टी होखे त दीपक साहब के घरे उनकरा रूम पर पहुँचा देस।

बात भी खुब होखे। बंशी ओ घड़ी अपना घर मे अकेले रहस, माई बाबुजी के सेवा करस औरि रिक्शा चलावस, अपना परिवार के देखस। उ बंशी रिक्शावाला से आत्मीय लगाव भ गईल रहे।आज फिर से ई शहर में दीपक के ट्रांसफर हो गइल रहे। आज पहिला दिन रहे, उनका समय से ज्वाइन भी करे के रहे। आज त हद भ गईल, खाली टो टो ई रिक्शा लउके, रिक्शा ना लउके। तले अचानक एगो बूढ़ा रिक्शा वाला लगे आइल।
“बाबुजी कहा चलब”
“हमरा ऑफिस चले के बा, कई रुपया लागी”
“बाबुजी जौन बुझाई तउन दे देहब”, मुरझाईल मन से के बंशी जवाब दिहलन।
“ठीक बा त तनी जल्दिये पहुचा द”
दीपक ऑफिस आ गइलन। बंशी के कहलन शाम के 5 बजे एहिजा आ जइब, त फेर हमरा के लेले चलतSS..
“ठीक बा, हम 5 बजे आ जाइब”
ठीक 5 बजे बंशी ऑफिस के सामने रहलन।

बंशी | भोजपुरी कहानी
बंशी | भोजपुरी कहानी

दीपक ऑफिस से बाहर अइलन, त रिक्शा देख के बड़ा खुश भइलन। दीपक रिक्शा पर बईठलन। त पूछलन की ई बताव, तहार का नाम हवे। बंशी आपन नाम बतवलन। नाम सुनल जान के दीपक फिर से ई बात पूछलन की रिक्शा केतना दिन से चलावे ल..।

“हजुर, रउआ हमरा नईखी चिन्हत, हम रउआ पहचान गइनी ह.. रउआ आज से बिशन बरिश पहिले इहे ऑफिसवा में काम करत रहनी, हम रउआ के रोज ऑफिस ले आई औरि घरे ले जाई, फेरु रउआ पता ना कहा चल गइनी..”

“कहि तु उहे…बंशी, त ना हउअ…”
“जी साहब, हम उहे हई”
बड़ी आत्मीयता के अनुभव भइल, दीपक के। बिशन बरिश पहिले के याद ताजा भ गईल। बुझाइल की केहु बड़ी दिन के बाद मिलल बा।

बात चीत होखे लागल। दीपक पूछलन की ई बतावSS…. की ई शहरिया में बड़ी कम रिक्शा लउकत बा, का बात बा।

“साहब, हमनी रिक्शा चलावे वाला के आफत आ गईल बा, सरकार ई रिक्शा के परमिट दे दिहले बिया, जेकरा से शहर में खाली ई रिक्शा चलत बा, हमनी के संख्या धीरे धीरे घटत जात बा”, बंशी।

“सरकार प्रदूषण घटावत बिया, एहीसे ई रिक्शा के परमिट देहले बिया, ई बैटरी से चलेला और धुंआ ना निकलेला”

बंशी एगो लम्बा सांस खिंच के फेर से कहे लगलन…

” हजुर, हमरो रिक्शवा से भी प्रदूषण ना होखेला, लेकिन का करब, हमनी पर सरकार मेहरबान नइखे। जब सरकार के प्रदूषण खत्मे करे के बा त गाड़ी के अनावश्यक बिक्री पर रोक लगावे के चाही, जेकरा जरूरत नइखे उहो गाड़ी खरीद लेले बा, झुठहु शान खातिर दिन भर धुंआ निकल रहल बा”

संजीव कुमार जी

“ई बात त सही कहले बाड़ss, सरकारी बस के बढ़ावा देवे के चाही, जापान में लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट ज्यादा उपयोग करेला, एहीसे ओहजा प्रदूषण कम बा, ओहजा लोग टरसायकल, कार,बहुत कम चलावे ला, साईकल ज्यादा लोग उपयोग करेला…..लोग ओहजा समझदार भी बा, एहीसे उहवा प्रदूषण एकदम कम बा, एगो औरि बात बा रिक्शा चलावत बाड़, तहार शरीर भी स्वस्थ ही रही, कौनो बीमारी नजदीक नाहि आई ” दीपक कहलन।

बतियावत बतियावत समइया कट गईल, घर आ गईल।
साहब उतर के बंशी के भाड़ा देइके कहलन, काल सबेरे आ जईह… अब रोज तहरे ले जाए के बा, ले आवे के बा।
बंशी बड़ी खुश भइलन, की एगो फिक्स सवारी हो गइल।

अगिला दिने बंशी टाइम से आ गइलन..
बातचीत होखत गईल…
बंशी बड़ी खुश रहलन।
शाम के बंशी 5 बजे ऑफिस पहुच गइलन, साहब में 10 मिनट लेट रहे, त गाना गुनगुनाए लगलन…

“जब से ई रिक्शा आइल बाजार में
तब से हमरो रिकशवा बेकार हो गइल।
दिन भर खड़े खड़े बीते बाजार में
मिले न एकहु सवरिया इंतजार में।
गिनती के हमनी बचल बानी संसार मे
आमदनी बिना जिनगिया बीतत बा अंधकार में।
जब से ई रिक्शा आइल बाजार में
तब से हमरो रिकशवा बेकार हो गइल।”

साहब ऑफिस से बाहर अइनी। रिक्शा पर बईठनी…
धीरे धीरे रिक्शा बढ़े लागल…समय के चक्र खानी पहिया घुमे लागल….।

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