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धनंजय तिवारी जी के लिखल भोजपुरी कहानी बहुरा

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धनंजय तिवारी जी
धनंजय तिवारी जी

“मम्मी जी राउर नाश्ता टेबल में लगा दी ?” जईसे ही सुमित्रा नहान घर से निकललि, उनकर बहु अनीता पूछलि।

“बहु तहके मालूम नईखे आजु हमार बहुरा के व्रत बा। आजु हम ना खाएब। ” सुमित्रा कहली।

फेरु सोचली कि इनका कईसे पता होई। अबे त ऐ घर में इनकर पहिला साल ह। ऊपर से ई ठहरली नवका जमाना के लईकी।

“माफ़ करेब ” अनीता मासूमियत से कहली “हमरा ना मालूम रहल ह।”

“अरे माफ़ी के कवन बात बा। जब हम तहके बतवले ही ना रहनी ह त तहके कईसे मालूम ” सुमित्रा दुलार से कहली।

” मम्मी जी ई बहुरा के व्रत काहे कईल जाला अउरी कईसे होला ?” अनीता बच्चन जईसन जिज्ञासु होके पूछली। चुकी उनकर परवरिश शहर में भईल रहे अउरी उ बहुरा से अनजान रहली।

“बहुरा के व्रत भाई के लम्बी उमिर अउरी सलामती खातिर कईल जाला जइमे बहिन लोग भोरे से उपासे रहेला अउरफेरु शाम के तालाब में जाके नहा के आवेला लोग। फेरु दूध पिठ्ठी खाके उपास तोड़े ला लोग ”

“ई दूध पिठ्ठी का होला ?” अनीता फेरु पूछलि।

“आटा के सेवई पार के ओके दूध में पकावल जाला। ओके दूध पिट्ठी कहल जाला ”

अनिता कुछ देर ला चुपा गईली। सुमित्रो राहत के सांस लेहली। मने मन सोचत रहली कि बहु केतना सवाल करेली।

“मम्मी जी, गुड्डू मामा त राउर चचेरा भाई न हई ” अनिता सोच के पूछलि।

एकाएक सुमित्रा के चेहरा के रंग बदल गईल। हालाँकि उनका मालूम रहे कि अनीता कवनो दुर्भाव से इ बात ना कहले रहली लेकिन तबो सुमित्रा के ई ना गवारा रहे कि गुड्डू के केहू चचेरा कहो ”

उनका चेहरा के रंग देख अनीता के बुझा गईल कि उनका बात से मम्मी जी के दुःख पहुँचल बा।

एने गूड्डू के जिक्र अईला से सुमित्रा के पुरान दिन फेरु से याद आवे लागल।

मायके में काफी खुशहाल परिवार रहे उनकर। परिवार बहुत बड़ा ना रहे। उनकर बाबूजी दू भाई में बड़ रहनी। घर में कुल जमा 8 लोग रहे।

बाबा, ईया, उ उनकर माई बाबूजी , चाचा चाची अउरी उनकर बेटा गुड्डू से सुमित्रा से २ साल छोट रहले। जेतना प्रेम उनके बाबूजी अउरी चाचा में रहे ओकरा से बड़ उनका अउरी गुड्डू में रहे। हा उनका माई अउरी चाची में तनी कम मिले लेकिन तबो मिला जुले के उनकर परिवार गांव के आदर्श परिवार रहे।

कबो उनके अउरी गुड्डू के देख के ना लागे कि दुनू जाना एक भाई बहिन ना ह लोग। अलग अलग कोख से जनम लेहला के बादो दुनू जाना के बीच बहुते बरियार रिश्ता रहे। तीज त्यौहार में एक दूसरा के भाई बहिन रहे लोग त खेल कूद , सुख दुःख में एक दूसरा के साथी। एक आदमी के दुःख से दूसरा के करेजा वेधा जाउ त दूसरा के ख़ुशी देख दूसरा जाना के परम आनंद मिले।

समय के आपन गति बा। भले इ नियत चाल से चले ला लेकिन एकर नियत चाल में ही अयीसन असमान गति होला जवन कि एक झटका में सब कुछ बदल देना अउरी जबले केहू कुछ बुझे दुनिया बदल जाला। केतना ख़ामोशी अउरी आसानी से ई सुख के दुःख में अउरी दुःख के सुख में बदल देला कि केहू के अहसास ही ना होला।

चुपचाप अइसे ही एक दिन समय के चाल बदल गईल अउरी देखते देखत पहिले सुमित्रा के बाबा परलोक वासी भईनी अउरी कुछे दिन बाद ईया।

घर के पुरनिया ही घर के आधार होला। उ मजबूत आधार जवना पर पूरा घर के भार टिकल होला अउरी नीव जेतने बरियार होला, घर ओतने बरियार

बाबा ईया के जाते नीव कमजोर हो गईल। फेरु उनका माई अउरी चाची के स्वभावगत अंतर घर के इटा के खिसकावे लागल। धीरे धीरे शंका, ईर्ष्या, जरतुआहि, अविश्वास जइसन आततायी कुल के परिवार में घुसपैठ हो गईल अउरी उनका गांव के सबसे मजबूत परिवार के घर एक दिन भरभरा के गिर गईल।

दुनू भाई लोग अलग हो गईल लोग। गांव में जाके पूछी त हर आदमी के आपन मत रहे। केहू सुमित्रा के माई बाबूजी के गलत कहे त केहू गुड्डू के माई बाबूजी के। बहुधा अयीसने होला। जब परिवार टूटे ला , बिखराव होला त ओकर कबो कवनो सर्वसम्मत कारण ना खोजल जा सकेला। अगर ऐ सवाल के जबाब खुद समय पर छोड़ल जा त उ ईहे कही कि अइमे दोष केहू के ना होला। अपना जगह अउरी परिस्थिति के हिसाब से केहू गलत ना होला अउरी ऐ वजह से केहू दोषी ठहरावल जा सके। त अइमे दोष केहु के ना रहे। बस नियति आपन जगह बदलले रहे लेकिन एकर सजा मिलल सुमित्रा अउरी गुड्डू के।

एक झटका में दुनू लोग के बीच में समुन्दरो से बड़ा खाई हो गईल। हिमालयो से उचा पहाड़ खड़ा हो गयील। दुनू परिवार के बिच बात चित बंद हो गईल अउरी आँगन में टाट के दीवार खड़ा हो गईल। लेकिन उ टाट अंगना में ना खड़ा भईल रहे बल्कि सुमित्रा अउरी गुड्डू के करेजा पर खड़ा कईल रहे। दुनू जाना के पता रहे कि बहुते गलत भईल बा लेकिन उ लोग ओ अवस्था में ना रहे कि अपना माई बाबूजी के गलती के उ लोग चुनौती दे सके। माई बाबूजी राजा रहे लोग। ई लोग प्रजा रहे। जवन राजा के हुकुम उ प्रजा के माने के रहे अउरी बोलल त दूर एक दूसरा के तरफ तकलो के मनाही रहे।

जब के ई बात ह तब सुमित्रा के उमिर १४ साल अउरी गुड्डू के १२ साल रहे।

केतनो बरावे लोग लेकिन तबो अक्सर दू जाना के सामना होईये जा। चुकी घर एके रहे, खरिहान एके रहे, गांव एके रहे , स्कूल एके रहे त बरो त बरो कईसे।

सामने आवते दुनू जाना के मन हिलोर मारे कि जाके एक दूसरा से लिपट जाईल जाओ अउरी शिकायत कईल जा कि तू काहे हमसे नइख बोलत। खाई पाट जा, पहाड़ गिर जाओ लेकिन अगिला पल ही फेरु माई बाबूजी के बात यादे आ जा जवन कि ओ लोग के गोड़ में बेड़ी डाल दे, जबान के काठ क दे अउरी नजर अपना आप झुक जा। शायद दुनिया में एक दूसरा पर सबसे ज्यादा जान लुटावे वाला भाई बहिन लोग के हाल नदी के दू किनारा जईसन रहे जे हमेशा साथ साथ बहला के बादो कबो मिल ना पावेला।

दुनू जाना नजर झुका के अपना रास्ता चल जा लोग। दुगो मासूम के अयीसन सजा पर क्रूर नियतिओ के जरूर ह्रदय पिघलत होइ लेकिन उ ब्रह्मा के लिखल के आगे मजबूर होके सिवाय अफ़सोस के दू बून्द आँसू बहावे के अलावा कुछ ना कर सकत रहे।

कुछे दिन बाद बहुरा के त्यौहार नजदीक आ गईल।

गुड्डू अपना संघतिया के टोली के साथे गांव के पोखरा के मुआयना करे गईल रहले। बहुरा के एक दिन पहिले उ लोग हर साल जा लोग अउरी आपस में शर्त लागे कि के सबसे दूर ले पोखरा में तैर के जाई। गांव के बहरी सड़क के किनारे दुगो पोखरा रहल सन। एगो छोट, एगो बड़। छोट पोखरा तनी कम गहिर रहे अउरी ओइमे बहुरा के व्रत राखे वाला लईकी कुल नहा सं। सड़क के दूसरा किनारे वाला पोखरा ढेर गहिर अउरी विशाल रहे। छोट त का बड़ लोग के करेजा भी काँप उठे ओ पोखरा में जाए से।

लेकिन लइकाई के बाते कुछ अउरी होला। समुन्द्र के चीरे के, आसमान के कदमो तले झुकावे के, हवा के सीना पर दिया बारे के, तूफान में कश्ती पार ले जाए के नाम ही बालपन ह। ई अयीसन अवस्था ह जइमे हर असम्भव चीज सम्भव लागेला। गुड्डू अउरी उनका संघतिया लोग के भी इहे अवस्था रहे।

गुड्डू के पिछला बार के बात याद पड़ गईल। ओ लोग में शर्त लागत रहे कि के सबसे दूर ले जाई अउरी तब गुड्डू पोखरा के एक दम बीचोबीच जवन बास गाड़ल रहे ओके देखावत कहले -“हम उ बास छू के आएब।”

सब लईका सकता में। लईका त का गांव के केहू सयानो अबले उ ना छू के आयिल रहे।

“पगलाइल बाड़ का ” निकेशवा कहलस “ओइजा आजु ले केहू गईल बा ? ओइजा गईल मतलब मौत के गला लगावल बा। ”

“ई फेक तारे ” सुभाषवा कहलस।

लेकिन गुड्डू दृढ निश्चय क लेले रहले अउरकहले “हम जरूरी जाएब। काल्ह देखिह लोग। अउरी हमरा कुछु ना होइ काहे कि हमरा सलामती खातिर हमार दीदी बहुरा भूखे ली।”

सुभाषवा के मुह चोखा हो गईल। ओकरा बहिन ना रहली।

फेरु बहुरा के दिन आयिल अउरी बहिन के बहुरा के व्रत अउरी भरोसा ना टूटल। गुड्डू उ बास छू के सही सलामत आ गईले।

“का सोच तार हो?” निकेशवा गुड्डू के चुप देख के पूछलस।

“चिंता में बाड़े कि ऐ साल पोखरा में उतरी कि ना। ऐ साल त इनकर दीदी थोड़े बहुरा भुखीहे इनका खातिर। अब त दुनू जाना अलग बा लोग ”

सुभाषवा के ई उपहास गुड्डू के करेजा के छलनी क देहलस। घायल आदमी कबो कबो असंभव के सम्भव करे के ठान लेला।

हम काल्ह पूरा पोखरा पार क के देखाएब। दीदी के बहुरा के हम मोहताज थोड़े बानी।” गुड्डू ढृढ़ता से कहले।

सब लईका सकता में आ गईल सन। सबके मालूम रहे कि गुड्डू जिद्दी हवे अउरी जवन एक बार ठान लेले उ करि के माने ले। लेकिन ओतना बड़ पोखरा के पार कईल मौत के गले लगावल रहे। लेकिन अब उ पीछे ना हट सकत रहले।

पोखरा से लौटले त सुमित्रा दुआर पर झाड़ू लगावत रहली। उ मने मन अट्टहास कईले। तू काल्ह बहुरा ना नु भुखबु हमरा खातिर लेकिन तबो हम पोखरा पार क के देखाएब। अयीसन ना रहे कि उनका मन में सुमित्रा खातिर नफरत रहे लेकिन जब क्रोध अउरी हठ मन पर हावी हो जा त प्रेम महत्वहीन हो जाला।

एकरा बिपरीत सुमित्रा में मन में कुछ अउरी चलत रहे। उनका अउरी गुड्डू के बीच मन के प्रेम रहे। दुनिया ओ लोग के बाहर से रोक सकत रहे बात करे से, मिले से, देखे से लेकिन जवन वात्सल्य मन के भीतरी रहे ओके उ कबो ना छीन सकत रहे।

उनकर माई बाबूजी, चाचा चाची गुड्डू से बात करे पर रोक लगा सकत रहे लेकिन भाई खातिर उनके व्रत से ना रोक सक़त रहे।

अउरी अगिला दिने भईलो उहे। सुमित्रा बहुरा के व्रत रखली। माई एक बार टोकली भी लेकिन फेरु चुपा गईली। उनहु के अब अहसास हो गईल रहे कि बड़ लोग के बचपना के कारन बच्चन के सजा मिलता। ठीक चार बजे उ अपना सहेलियन के साथे पोखरा में नहाये खातिर निकललि त माई आटा के पिट्ठी पारत रहली। उनका संतोष भईल कि चल कम से कम माई त अब बदल तारी।

उनका सामने ही गुड्डूओ अपना संघतियन के साथे बड़का पोखरा में नहाये खातिर निकलले। सुमित्रा के देख के कुटिल मुस्कान के साथे आगे बढ़ गईले। उनका ना मालूम रहे कि सुमित्रा उनका खातिर बहुरा के व्रत रखले बाड़ी।

लईका अउरी लईकी के टोली अपना अपना पोखरा में उतर गईल। सुमित्रा भी बहुत अच्छा तैराक रहली। उ लोग जल्दिये नहा के पोखरा से बाहर आ गईल लोग।

एने गुड्डू अब पोखरा में उतरल रहले। लेकिन पता ना काहे आजु उनकर विश्वास डोलत रहे। टांग कापत रहे। शायद बहिन के दुआ ना रहला से उ अपना के कमजोर बुझत रहले। धीरे धीरे उ बिच पोखरा ले पहुँचले। लेकिन ओकरा बाद उनकर सांस लड़खड़ाए लागल अउरी उ डूबे लागले। सब लईका कुल हल्ला कईल सन। अरे गुड्डू डूब तारे।

कुछे दूर पर सुमित्रा के टोली रहे। सुनीता के कान में गुड्डू के डूबला के हल्ला गोली खान टकराईल अउरी उ आव देखली ना ताव। पोखरा में कूद गईली।

लेकिन ओतना बड़ पोखरा के सबसे गहिर जगह से गुड्डू के बचावल असम्भव रहे। लेकिन आजु एगो बहिन के इम्तहान रहे। आजु उ खाली गुड्डू के बहिन ना रहली बलुक समस्त बहिन कुल के प्रतनिधि रहली जवन अपना निस्वार्थ प्रेम से भाई के सलामती ला प्रार्थना करेली सन। आजु त बहुरा रहे। आजु अगर एगो बहिन भाई के ना बचा पायित युगो युगो से चलत आवत वो भरोसा पर के भरोसा करीत। के मानित कि बहिन के निस्वार्थ प्रेम से भाई के लम्बा उमिर होला।

उ पूरा ताकत लगा देहली। कुछ देर में गुड्डू उनका पहुंच में रहले लेकिन ओइजा से किनारे आवल बहुते मुश्किल रहे। गुड्डू बेदम रहले। लेकिन असम्भव के सुमित्रा सम्भव क देहली। गुड्डू के खींच के किनारा क देहली। लेकिन किनारा आवत आवत उ खुदे बेदम हो गईल रहली। बहुत पानी उनका भीतर घुस गईल रहे। बचल असम्भव रहे।

असम्भव जब सम्भव हो जा त ओहि के कुदरत के करिश्मा कहल जाला। ई दुनिया में जेतना भी दुआ कईल जाला, जब उ दुआ सफल होला त असंभव सम्भव होला।

ठीक दू दिन बाद असम्भव सम्भव हो गईल। सुमित्रा मौत के मुँह से निकल के होश में आ गईली। उनका सामने माई बाबूजी , चाचा चाची अउरी गुड्डू बईठल रहे लोग।

गुड्डू देख के रोवे लगले।

“अब का रोव तार।” सुमित्रा उनकर बाहि ध के कहली “अब त हम जिन्दा बानी ”

गुड्डू के मालूम रहे कि ई ख़ुशी अउरी पश्चताप के मिश्रित लोर रहे। दीदी के जिन्दा रहला के ख़ुशी रहे त, दीदी उनका खातिर व्रत ना रखिह इ अविस्वास खातिर पस्चताप रहे।

“दीदी हमके माफ़ क द। हम तहरा पर भरोसा ना रखनी। अगर हमके मालूम रहित कि तू व्रत रखले बाड़ू त हम एक बार नाही दस बार उ पोखरा पार क देले रहिति। ”

“कवनो बात ना।” सुमित्रो के आँखि गिल हो गईल रहे “अब अगिला बार पार क लिह।”

दुनू भाई बहिन के साथे माई बाबूजी, चाचा चाची, सबके आँखि से लोर ढरक गईल जवन कि ऐ बात के निशानी रहे कि लोर के पानी, ओ लोग के परिवार के सब कमी के धो के घर के दिवार के फेरु से मजबूत क देले रहे। आँगन के टाटी के दिवार प्रेम के बवंडर में तिनका खान उड़ गईल अउरी एक बार फेरु परिवार प्रेम के मजबूत रिश्ता से बन्हा गईल।

अगिला साल फेरु बहुरा आयिल अउरी गुड्डू दीदी से कईल वादा पूरा क के देखवले पोखरा पूरा पार क के।

जले सुमित्रा के बियाह ना भईल रहे तले अब ई हर साल के बात रहे।

फेरु दुनू जाना के बियाह भईल अउरी दुनू जाना के नया बसेरा हो गईल। भले बसेरा अलग हो गईल लेकिन कबो न भाई बहिन के प्रेम कम भईल ना सुमित्रा के बहुरा के व्रत छूटल।

सुमित्रा अतीत के सागर में गोता लगावते रहली कि तबही कॉल बेल बाज उठल।

अनीता जाके देखली त कूरियर आयिल रहे।

“मम्मी जी देखि मामा जी के भेजल साडी आयिल बा ” अनीता पैकेट खोलत कहली।

गुड्डू कबो बहुरा पर दीदी के साडी भेजल ना भुलास।

“साडी रख द अउरी चल पिट्ठी पारे।” सुमित्रा कहली “आजु हम तहके दूधपीठठी बनावे के सिखाएब।

रउवा खातिर  
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देहाती गारी आ ओरहन
भोजपुरी शब्द के उल्टा अर्थ वाला शब्द
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