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समाज के कोढ़ डाइन-प्रथा पर एगो भोजपुरी गीत

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डाॅ पवन कुमार
डाॅ पवन कुमार

कवने कसूरवा रामा भइले दुरगतिया मोरा
लोगवा डइनिया कहि के बोलावेला रे ना।।

एक तऽ बिपत पड़ल धियवा-भतार मरल
दोसरे कलंकवा मथवा मढ़ाएल रे ना।।

निकलीले घर से,लोगवा लइका लुकावे डर से
काटल-काटल बतिया हमके सुनावेला रे ना।।

केहू के हो कवनो बेमारी सबका जड़ में हमही बानी
इहे कहि के लोगवा हमके मारेला रे ना।।

रोजे-रोज के मार-गारी, गांव-घर में उतरल पानी
घोरि के मइलवा लोगवा पियावेला रे ना।।

आपन-बीरान के बा केहू नाहिं लुउके दादा
जिनगी में भइले सगरो अन्हार नू ना।।

बिधना ई परथा कइसन केइये चलवस अइसन
जियल भइल जीव के काल नू रे ना।।
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—-डाॅ पवन कुमार

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