ई भारत से करीब करीब हजारों किलोमीटर दूर अंडमान निकोबार के राजधानी पोर्ट ब्लेयर में बा। अंग्रेजन के हुकूमत के दौरान 1896 में एह जेल के निर्माण शुरू भइल अउरी 1906 में जाके 10 साल में पूरा भइल।
एह जेल के बनावे में 517352 रुपिया खर्चा भइल रहे,एकरा में सात सौ कमरा बा जेमे 700 कैदी के राखल जात रहे,एकर मुख्य उद्देश्य इहे रहे की भारत में विद्रोह करे वाला सेनानियन के बन्द कर दिहल जाव ताकि उ आपस में बात ना कर पावे लो।
वीर सावरकर के स्वाधीनता आंदोलन से जुड़ल रहला के कारण अंग्रेजन द्वारा ‘दोहरा आजीवन कारावास’ के सजा सुना के अंडमान-निकोबार के सेल्युलर जेल में रखल गइल रहे। जहवां अंग्रेज उनके बहुत प्रताड़ित करत रहले सन।
अंडमान निकोबार द्वीप समूह के पोर्ट ब्लेयर पर बनल सेल्युलर जेल आजो काला पानी के दर्दनाक दास्तां सुनावेला लाइट साउंड के माध्य्म से। आज भले इ राष्ट्रीय स्मारक में बदल गइल बा बाकिर बटुकेश्वर दत्त अउरी वीर सावरकर जइसन अनेक सेनानियन के कहानी आजो ई जेल इहा आवेवाला पर्यटकन के सुनावेला।
सेल्युलर जेल भारतीय इतिहास के एगो काला अध्याय हs। भारत जब गुलामी के बेड़ियन में जकड़ल रहे, अंग्रेजी सरकार स्वतंत्रता सेनानियन पर कहर ढाहत रहे। हजारों सेनानियों के फांसी दे दीहल गईल, तोपन के मुंह पर बान्हि के उड़ा दिहल गइल। केतना अइसन लोग रहे जे तिल तिलकर मारल गइल, एकरा खातिर अंग्रेजन के लगे सेल्युलर जेल एगो बड़हन अस्त्र साबित भइल।
ए जेल के सेल्युलर जेल नाम एहि खातिर दियाईल, काहेकि ईहां एगो कैदी से दूसरा कैदी के बिलकुल अलग रखल जात रहे। जेल में हर कैदी खातिर एगो अलग सेल होत रहे।
इहा अकेलापन कैदीयन खातिर सबसे भयावह रहे। ऐजा केतने भारतीयन के फांसी के सजा दीहल गईल अउरी केतने मर गइलन एकर कवनो रिकॉर्ड मौजूद नइखे
अंडमान के पोर्ट ब्लेयर सिटी में स्थित इ जेल के चाहरदीवारी एतना छोट बा कि केहु आसानी से पार कर सकत बा। बाकिर ई स्थान चारों ओर से गहीर समुंदर के पानी से घिरल बा, जहां से सैकड़ों किमी दूर पानी के अलावा कुछवु नजर नाहीं आवेला। ऐजा के अंग्रेज सुपरिंडेंट कैदियन से अक्सर कहत रहे कि जेल के दीवार इरादतन छोट बनावल गईल बा।
सबसे पहले 200 विद्रोहियन के क्रूर जेलर डेविड बेरी अउरी मेजर जेम्स पैटीसन वॉकर की सुरक्षा में ऐजा डालल गइल
सेलुलर जेल के शाखा तीन मंजिला बनल रहे। एमे कवनों शयनकक्ष ना रहे कुल 700 कोठरी रहे। हर कोठरी 15×8 फीट के रहे, जइमे तीन मीटर के ऊंचाई पर रोशनदान रहे। एगो कोठरी के कैदी दूसरा कोठरी के कैदी से कवनो संपर्क ना रख सकत रहे।
जेल में बंद स्वतंत्रता संग्राम सेनानियन के बेड़ियन से बान्हि के राखल जात रहे। कोल्हू से तेल पेरे के काम ओ लोग से करवावल जात रहे। हर कैदी से रोज तीस पाउंड नारियल अउरी सरसों तेल पेरवावल जात रहे। जदि अइसन ना हो पावे हो पावे त ओ लोग के बुरी तरह से पीटल जात रहे अउरी बेडियन से जकड़ दिहल जात रहे।
काला पानी जेल में भारत से लेकर बर्मा तक के लोगन के कैद में रखल गइल। एक बार इहा से 238 कैदियन के भागे के कोशिश भइल बाकिर ओ लोग के पकड़ लिहल गइल। एगो कैदी त आत्महत्या कर लिहले बाकी सब पकड़ा गइले।
जेल अधीक्षक वाकर 87 लोग के फांसी पर लटकावे के आदेश दे दिहलस। इहा 1930 में भगत सिंह के सहयोगी महावीर सिंह अत्याचार के खिलाफ भूख हड़ताल कइलन,त जेल के कर्मचारी उनका के जबरी दूध पिया दिहलन स, दूध जइसही पेट के अंदर गइल त उनकर मौत हो गइल।
एकरा बाद उनका लाश में पत्थर बान्हि के समुंदर में फेंक दिहलन सs। अंग्रेजन द्वारा अमानवीय अत्याचार के कारण 1930 में इहा कैदी लोग बड़हन भूख हड़ताल कइल तब महात्मा गांधी अउरी रवीन्द्रनाथ टैगोर हस्तक्षेप कइल लो। 1937-38 में इहा से कैदियन के स्वदेश भेजल गइल।
भारत को आजादी मिलला के बाद 4 गो शाखा ध्वस्त कर दिहल गइल। शेष बचल तीन गो शाखा अउरी मुख्य टावर के 1969 में राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर दिहल गइल।
1963 में इहा गोविन्द वल्लभ पंत अस्पताल खोला गइल जवन वर्तमान में 500 बिस्तर वाला पोर्ट ब्लेयर के सबसे बड़ अस्पताल बा।
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