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महाकवि स्वर्गीय राधामोहन चौबे “अंजन जी” के पुण्यतिथि ह आज : गणेश नाथ तिवारी ‘विनायक’

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गणेश नाथ तिवारी "विनायक" जी

हमार सौभाग्य बा की 2014 में हमार राधामोहन चौबे “अंजन जी” से भेंट भइल रहे ,उहा से मिल के बहुत अच्छा लागल बहूत प्रभावित भइनी भोजपुरी लिखे खातिर,फिर 2015 में हम बहिन के खिचड़ी ले के जिगिना गइल रहनी ,उहा से 2 किलोमीटर पर अंजन जी के घर बा, विहाने विहाने इहे समाचार मिलल की अंजन जी परलोक सिधार गइनी,तुरते हम आ दीदी के ससुर मोटरसाइकिल से पहुंचनी जा ,पूरा जवार के भीड़ उमड़ परल 15 जनवरी 2015 के, फिर 12 दिन के क्रियाकर्म खतम भइल ,हमहू सऊद अरब अइनी आ मन में भाव जागल की भोजपुरी खातिर कुछ करे के चाही तबे ,जय भोजपुरी-जय भोजपुरिया परिवार के शुरुआत वाट्सप के माध्यम से भइल

महामना अंजन जी
महामना अंजन जी

कविकुल शिरोमणि, भोजपुरी के भवभूति, मनीषी, चिंतक, नस-नस में सर्वधर्म समभाव आ भोजपुरी के अनेकन अमर गीतन के रचयिता महामना #अंजन जी के आज पाँचवाँ प्रयाण दिवस ह।
आजु के दिन उहाँके इयाद करत हम भावविभोर बानीं। लेकिन, अंतरातमा में कहीं ना कहीं चट्टान जइसन बिसवास बा कि उहाँके आशीर्वाद अज्ञातलोक से सदईं अपना लोगन के मिलत रहेला।
ए नश्वर संसार में सबका गइल तय बा। अधिकांश लोग त रोवते जाला लेकिन, #अंजन जी अपना गइला के महान उत्सव मनावत गइनीं। भरल-पूरल सुखी, शिक्षित आ सम्पन्न परिवार के परिवारीजन आ नजदीकी लोग के समुझावत- बुझावत आ सिखावत गइनीं। ए जगह के छोड़ला के तनिको मलाल ना रहे, मानो एकरा से दिव्य जगह पर परमात्मा का साथे राजसिंहासन मिलत होखे। उहाँके सगरे भौतिक इच्छाके पूरा करे के जवन प्रयास परिवार के लोग कइल, रिश्तन के निबाहे खातिर एगो बड़हन मिसाल बा।

गणेश नाथ तिवारी “विनायक” जी

#अंजन जी सचहूँ अंजन रहनीं। आँखि के कोरन में तनकी भर लगा दीं- आँखि के सुन्दरता बढ़ि जाई आ आँखिन में अइसन रोशनी आई जवन जिनगी भर लवटिके वापस ना जाई। अंजन साहित्य से भोजपुरी आ हिन्दी के भंडार उहाँके रचल 38 गो किताबन से भरल बा आ सैकड़न किताबन भर के पाण्डुलिपि तेयार बा। अंजन का तरे ए धरोहर से एको लाइन के अंजन अपना मन की आँखिन का कोर पर लगवले जीवन सार्थक हो जाई, जिनिगी जिए के एगो नया अंदाज आ जाई। कवनो गाढ़ समय में होखीं, अंजन जी के एगो कवनो मुक्तक पढ़ि ली, कवनो ना कवनो राह मिलिए जाई।

अइसन व्यक्तित्व के सब साहित्य समाज का सोझा आवे, उहाँके परिवार आ #जय_भोजपुरी_जय_भोजपुरिया परिवार प्रयास करि रहल बा। आशा बा, हमनीं का जरूर सफल होखबि जा। 18 नवम्बर 2018 के अपना पहिलका “भोजपुरी साहित्यिक आ सांसकृतिक महोत्सव” के शुरूआत #जय_भोजपुरी_जय_भोजपुरिया परिवार उहाँके चित्र पर माल्यार्पण आ नमन क के कइल। साथे- साथे उहाँके अर्द्धांगिनी पूजनीया माता जी के चरनवन्दनो भइल

हमनीं का भगिमान बानीं कि उहाँ की रचनन के पढ़तानीं आ पढ़ि-पढ़िके सिखतानीं।
उहाँके विमल चरनन में बेरिबेरि माथा झुकावत मन कबो ना अघाइल। आजु फेर उहाँके प्रयाणदिवस पर अपना आ अपना परिवार #जय_भोजपुरी_जय_भोजपुरिया का ओर से उहाँके नमन करत प्राथना करबि कि सगरे भोजपुरिया जगत के अपना आशीर्वाद का बरखा में भिजावत रहीं। हमनीं का त #अंजन जी के अपनी आँखिन के अंजन बनवलहीं बानीं जा।

महाकवि राधामोहन चौबे अंजन जी के रचना

भाई के दुलार

गवांर भाई अपना हुसीयार भाई के अलगा भइला ओकर दुष्परिणाम के संकेत कर रहल बा।

जब-जब याद आई,भाई के दुलार तहरा,
तब-तब काटे धाई,अँगना दुआर तहरा ।।

मइया कोरा में खेलवली,जहिया झोरा में झुलवली,
अँगना एके-एक दुअरिया,घर के एके-एक डगरिया,
सपना बाबूजी के एक,हमरे बबुआ होइहे नेक,
सपना केतनो फुलइले एके डार तहरा ।। जब0।।

अलगा होके तूँ का पइबs,तनिका नीमन चीकन खइबs,
हमरा सुखल-साखल जूरी,करबि दूसरा के मजदूरी,
तहरा जूठन फेंकल जाई,हमरा आगी ना बराई,
सोचब एके अँगना दू-दू गो बेवहार तहरा ।।जब0।।

जहिया दियरी बाती आई, तहरा पाँती दिया धराई,
हमरा घर में रही अन्हार,अँखिया डूबी आँसू धार,
फगुआ हँसि-हँसि खूब मनइबs,पूआ संगी साथ उडइबs,
देखब कई रंग के एके गो तिउहार तहरा ।। जब0।।

इहे किस्मत के ह बात,बाड़ पइसा ढेर कमात,
जिनगी माटी में हमार,चमकत बाटे देह तोहार,
हमरे चलते तूँ बनि गइलs,बनि के हमरे से तनि गइलs,
हँसि-हँसि ताना मारे गउवाँ जवार तहरा ।।जब0।।

करबि तहरे हम सेवकाई,लेइबि जिनगी सजी गँवाई
मइया बाबूजी के सेवल,नइया एक साथ जे खेवल,
पालल बगिया के मति काटs,अँगना दुअरा के मति बाँटs,
एक दिन आई फेरु बगिया में बहार तहरा ।। जब0।।

धनवा लेबs बहुत कमाई, नाही मिली सहोदर भाई,
तोहार मोटरी हम पहुँचाइबि,जे-जे कहबs टहल बजाइबि,
बाकी हमके मति बिलगाव,अँखियन से मति दूर भगाव,
उहे करबि जेइसे भरल रही संसार तहरा ।।जब0।।

महाकवि राधामोहन चौबे अंजन जी के गीत

काहे करेलs तू रोजो तकरार बबुआ
तू त बेटा हउअ गोदी के सिंगार बबुआ

तहरे के देखि-देखि दुखवा भुलाइले
सुतेलs त जाग-जाग लोरहम सुनाइ ले
तहके देखि-देखि करी भिनुसार बबुआ
तू त बेटा हउअ गोदी के सिंगार बबुआ

छोड़ि देब चोरिया के बानि जे लगावेल
काहे रोज गाव घर से ओरहन मंगावेल
आजिज कइले बाड़ सगरो जवार बबुआ
तू त बेटा हउअ गोदी के सिंगार बबुआ

करेल जियान काहे सगरो बदनिया
तुहि बाड़ जिनगी के हमरो निशानियां
काहे करेल इजतिया के उघार बबुआ
तू त बेटा हउअ गोदी के सिंगार बबुआ

ढेर जे अखरखन करब लाठी चकवइबs
गाव से जवार सजी दुश्मन बनइबs
परी तहरो पर कहियो कसि के मार बबुआ
तू त बेटा हउअ गोदी के सिंगार बबुआ

अबहु से चल चलि के माखन मिसिरी खा ल
ढंग आ ढूआब सीख अंजन रचा ल
केतना निमन बाड़ कान्हा तू हमार बबुआ
तू त बेटा हउअ गोदी के सिंगार बबुआ

राधामोहन चौबे अंजन जी के गीत

कागा उचरे भोर से पहुनवा
परनवा हमार आजु अइहे
फरकत बाटे सांझे से नयनवा
सपनवा हमार आजु अइहे

छने-छने झाँकेला ओसरवा के ओरी
पोरे-पोर बान्हल बा सनेहिया के डोरी
झाँकेला दियारखा में अयनवा
नयनवा हमार आजु अइहे

ढेर दिन पर पलटल बाड़े हमरे करेजउ
आवत बाड़े जियरा जुड़ाइहे मोर रजउ
हमरे बहुरि गइले दिनवा
बिहानवा हमार आजु अइहे

पहिरबि धराउ साड़ी लहंगा पुरनके
अह जह में सुगना उड़त बाटे मन के
बड़हन लागे आजु के विहानवा
सुमनवा हमार आजु अइहे

देख चमके पगरी सीवान पर बुझाता
हालि-चलि सुबहित उनका चाल से चिन्हाता
अंजन रचिते सुघर नयनवा
सजनवा हमार आजु अइहे

जिनगी

– राधामोहन चौबे ‘ अंजन’ जी

हिम्मत मन में, बल बाँहिन में, यारी रहे जवानी से।
मरद उहे ह जे लड़ि जाला, आन्ही से आ पानी से।।

सागर में तूफान उठेला, झंझा भरल बयार चले
उड़े पाल ‘हैया-रे-हैया’ माँझी के पतवार चले
गरजे बादर, चमके बिजुरी, आसमान फाटे लागे
उड़े पाल ‘हैया-रे-हैया’ माँझी के पतवार चले
गरजे बादर, चमके बिजुरी, आसमान फाटे लागे
उठे ज्वार करिया नागन जस, फन काढ़े लागे
‘हैया ! हैया, तूँ ही खेवइया’, अरजी औढ़रदानी से।।

जेकरे बल से जिनगी जीये, उहे सहारा उठि जाला
जवने घाटे खड़ा मुसाफिर, उहे किनारा लुटि जाला,
जेकरे संग में जनम-मरन के कसम लोग हरदम खाला,
ऊहे संगी दूर कहीं जब, आँखिन से अलगा जाला,
सीप नयन के मोती उपजे, गुजरल मधुर कहानी से।।

जिनगी ह संग्राम, हवे वरदान, हवे अनजान
शोक-दर्द ह खेल-तमासा, करतब ह ई जादूगर
ई रहस्य ह, मधुगीत ह, मौका ह कठिनाई के
प्यार कर जिनगी से भइया, हिम्मत का आसानी से।।

मरदे पर कि बरधे पर, संकट के बादल बरसेला
अग्नि-परीक्षा से धरती के, छाती ज्यादे हरसेला
आफत ह पतझार उठत बा फागुन के जे दूत पवन
समझीं कि आ रहल बहुत जल्दी सुख के सावन
अँकवार में भरि के चूमबि सुख सपना मनमानी से।।

आँखि हवे सनकाहिन, एकरा के कहीं मत जाये दीं
जाई त अझुरा जाई, ना मानी, मति बऊराये दीं
के ‘अंजन’ जिनगी भर राखी रही सिंगार जवानी भर
उमर ढले पर हँसी जमाना, क्षेपक बीच कहानी पर
ले ल दिल उपहार प्यार के, अपने अमर निशान से।।

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