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भिखारी ठाकुर के बिरहिन

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संजय सिंह

संजय सिंह
संजय सिंह

दुनिया के लगभग सब भाषा के साहित्य अपना अँकवारी में विरह , दर्द ,आह के समेटले बा । इहे ना अलग अलग भाषा के श्रेष्ठ साहित्य के सूची बनो त अधिकांश के केंद्र में इहे भाव मिली । छायावाद के स्तम्भन में से एगो सुमित्रानंदन पंत के शब्दन में-

वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान।
निकलकर आँखों से चुपचाप, बही होगी कविता अनजान ……..

“our saddest thoughts are the sweetest song”

आदि कवि वाल्मीकि जी त स्वीकार कइले बानी कि जब उँहा के क्रोंच पक्षी के घायल देखनी तब हृदय के असह्य पीड़ा एह श्लोक में व्यक्त भइल-

“माँ निषाद प्रतिष्ठा त्वमगति शाश्वती समां ,यात्क्रोंच्मिथुनादिक्मावधि काममोहितम”

भोजपुरी साहित्य में नारी के बिरहिन रुप के भिखारी ठाकुर जेतना प्रभावशाली चित्रण कइले बाड़न ओकर कवनो जोड़ नइखे । मेहरारु बहरा जात अपना मरद के साथे जाये खातिर भगवान राम के उदाहरण देत कहतिया कि उ सीता जी के अपना साथे ले गइल रहलन । हमहूँ चलब । मरद कहतारन कि साथे गइला के दुष्परिणाम मिलल – सीताजी के अपहरण भइल । तकलीफ झेले के पड़ल । हम तहरा के ओह पीड़ा में ना डालब । हमनी के समाज में नवविवाहिता के सीता जी आ ओकरा पति के राम के रुप में देखे के परम्परा बा । “सीता” “राम” के तर्क के आगे समर्पण क देत बाड़ी .इ सोच के कि एक ना एक दिन उनकर पति सोना के लंका घरे ले अइहन आ जीवन सुखमय हो जाई ।

ओने मरद आसुरी शक्तियन (काम ,क्रोध ,मद ,लोभ ,मोह) के आगे हार मान ले तारन । एने विरह के ज्वाला तेज भइल जाता । जस जस ज्वाला तेज होता तस तस भिखारी बाबा के कंठ से गान फुटता-

“बिरह के कूपवा में ,जोगिनी का रुपवा में,
तोहरे के अलख जगाइब हो बलमुआ ।
मदन सतावत बाटे ,छतिया फाटत बाटे,
अनवाँ जहर लेखा लागत बा बलमुआ ।
बटोही से आपन दरद बाँटत कहतारी-
धरम के भाई होखs सहाई, का का दुःख सुनाईं ?
स्वामी जी के चरन देखब तब नया जनम होइ जाई ॥
पि- पि रटि-रटि प्रान तेजब हम ,अब ना बिपति सहाई ।
कहे “भिखारी” पिया प्रेम के फाँसी दिहलन लगाई ॥

बिरह के ई भाव बारहो मास रहता ।तबे त बटोही के अपना मन के भाव बतावत बिरहिन कुहुक उठतिया । एह बारहमासा में बिरह भाव के चरमोत्कर्ष बा-

आवेला आषाढ़ मास ,लागेला अधिक आस, बरखा में पिया घरे रहितन बटोहिया ।
पिया अईतन बुनियाँ में राखि लिहतन दुनिया में ,अखड़ेला अधिका सवानवा बटोहिया ।
आई जब मास भादो ,सभे खेली दही कादो,कृसना के जनम बिती असहीं बटोहिया ।
आसिन महिनवाँ के कड़ा घाम दिनवाँ के ,लूकवा समानवा बुझाला हो बटोहिया ।
कातिक के मासवा में पियऊ के फाँसवा में, हाड़ में से रसवा चुवत बा बटोहिया ।
अगहन पुस मासे दुःख कहीं केकरा से ? बनवाँ सरिस बा भवनवा बटोहिया ।
मास आई बाघवा कँपावे लागी माघवा ,त हाड़वा में जाड़वा समाई हो बटोहिया ।
पलंग बा सुनवा ,का कईली अयगुनवा से ,भारी ह महिनवा फगुनवाँ बटोहिया ।
कोईली के मीठी बोली, लागेला करेजा गोली ,पिया बिनु भावे ना चइतवा बटोहिया ।
चढ़ि बईशाख जब ,लगन पहुँचि तब ,जेठवा दबाई हमें हेठवा बटोहिया ।

– संजय सिंह (आखर के फेसबुक पेज से)

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