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मिथिलेश मैकश जी के लिखल आदमी के आदत ह देखे के…

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मिथिलेश मैकश जी
मिथिलेश मैकश जी
मिथिलेश मैकश जी

आदमी के आदत ह देखे के
आदमी लचकोकर होला
जीभ रहते भी गुंग होला
दुगो कान रहते भी बहिर होला
दुगो आँख रहते भी आन्हर होला
बहेंगवा होला, बेहाया होला
एके कामवा बार बार करत रहेला
सुधरे के नामे ना लेला
काहे की
आदमी के आदत ह देखे के……

आदमी भीड़ के हिस्सा होला
आगे आवे के हिम्मत ना होला
अकेला चले के कोशिस ना करे
कुछ नाया चिझ के प्रयास ना करे
भेड़ चाल चलेला भेड़ नियन
एक सिध से मुड़ी गरले गरले
ना दहिने देखे ना बाएं देखे
सियरन नियन हुआं हुवां करे
काहे की
आदमी के आदत ह देखे के……

के जियल ,के मुअल का मतलब?
के उठल ,के सुतल का मतलब?
आपन घर भरल रहे के चाही
आपन परिवार ठीक रहे के चाही
खाली बड़ बड़ बात करी सोझा में
फेर सिकाइत करी अलोता में
गेना ,झुनझुना , गांव के मेला में
जिनगी गुजर जाले इहे झमेला में
काहे की
आदमी के आदत ह देखे के……

आदमी बड़ी कमजोर होला
अमरूध ,जामुन के गाछ नियन
आदमी जल्दिये टूट जाला
काचकाड़ा,सुखल लकड़ी नियन
आदमी बड़ी सुकवार होला
बियाहल नइकी कनिया नियन
आदमी बड़ी डरपोक होला
डेरा जाला एके आन्ही पानी में
लुका जाला कहीं दोबा में
काहे की
आदमी के आदत ह देखे के……

आदमी खाली सोचेला
बड़का बड़का बैज्ञानिक नियन
आदमी दोसरा में गलती खोजेला
लेंस आ माइक्रोस्कोप लगा के
आदमी चलती के चेला ह
आदमी माटी के ढ़ेला ह
आदमी के आदमी बनावल मुस्किल बा
आदमी अपना इनारे में खुश बा
आदमी के दुनिया बड़ी छोट बा
आदमी आपन मन के काम ना करे
दोसरा से पुछेला
कवनो काम करे से पहिले
जइसे की अगिला आदमी
पेट से सिख के आईल बा
आदमी जिनगी भर दोसरे के देखत रहेला
काहे की
आदमी के आदत ह देखे के…..

– मिथिलेश मैकश

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