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सरोज सिंह जी के लिखल भोजपुरी लघु कथा नवका च्चा

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सरोज सिंह
सरोज सिंह

आज बाबूजी गीता के स्कूल से छुट्टी करा के के गांवे ले जाए के तैयारी में जुट गईलन ..पुछला पर कि,’काहें बाबूजी,
हमनिका काहें गावें जा तानी जा ?”
बाबूजी उनकर गोल-मोल जवाब दे देहलन !
गाँव के नाम से गीता के खुसी ओराते ना रहे ….उहाँ ओकर असोक च्चा और चाची जे रहत रहे लोग ….. ७ साल बियाह के भईल बाकी अभी ले कवनो संतान ना रहे एसे गीता ओ लोग के दुलरुई रहली !
असोक च्चा सांझे कान्हा प बईठा के बान्हा लिया जास पटउरा खियावे !
……बाकी कुछ देर बाद गीता उदास हो गईली ओके माई के इयाद आवे लागल परियार साल अंतिम बार माई के गाँव के अंगना में लेटावल देखले रहे ! ओकरा बाद पुछला प कि, “माई कहाँ गईल ?
सभे कहे “माई भगवान जी का लगे चल गईली अब न अइहें कब्बो …”
ओकरा बाद उ बाबूजी के संगे कलकत्ता आ गईल पढाई लिखाई करे खातिर !
ए बार गांवे जाये के प्रयोजन ओके ना बुझाईल …..गावें चहुपला पs …दुआर-अंगना के चहल-पहल देख के गितवा के रहाईस ना भइल
चाची से अपना पूछ लिहली ” ए चाची , आज कुछ बा का ? चाची अंकवारी में धर के पुचकारे लगली और कहल
“बनी, खुस हो जा तोहार नवकि माई आवsतारी !”
का ? नवकि माई माने ? गितवा चिहुंक के पुछ्लस ?
“हं बनी बाबूजी के बियाह होता, तोहार माई त तोहके छोडके भगवान् जी के लगे चल गइल नूं …….अब तोहार देख भाल करे खातिर नवकि माई अवsतारी ! तोहके खूब प्यार करिहें”
गीता जब से होस समहरली तब से आपन माई के खटिया पर ही देखली , टीबी के बेमारी के वजह से ओके माई के नेह छोह-दुलार से दूर राखल गईल !
अब गीता के नवकि माई के देखे खातिर जीव छपुटाय लागल ! कुल सगुन अउर रसम भईला के बाद बारात बिदा भईल दोसरका दिने भिनुसहरे कनिया दुआरे आ गईल …………..

नाँन से पहिले गितवा के अगुताई रहल नवकि माई के लगे पहुचे के …… कोहबर में पहुंचला प जब गोद भरे के समय आईल त आजी गोहरउली
‘अरे हाली से टकरसन आली के बचवा ले आवा सं गोद भराव ”
अब गीता से कहाँ रहाईस होईत झटे नवकि माई के कोरा जा के बईठ गईली, सब केहू त हंस दिहल बाकी आजी के खीस बरल देखत बनत रहे ….
खिसिया के कहल
“एके हाल्दे हटावा सं ना त दुल्हिन के फेर बिटीहिने होई”
गीता के चाची नवकि के कोरा से उठा के अपना कोरा में बईठा लेहली …गीता के कुछु बुझाईल ना …………बाकी निक ना लागल !
नया कनिया के नाम नवकि धरा गईल कुछ दिन बितला के बाद गीता नवकि माई बाबूजी के संगे कलकत्ता आ गईल
नवकि गीता के ख्याल दुलार में कवनो कसर ना रखली गीता भी अपना नवकि माई के पा के बहुत खुश रहली !
अभी छवे-छमास बीतल की फेर गांवे जाए के तैयारी होए लागल ए बेर बाबूजी के और माई के रोवत देख के गीता से रहल न गइल और नवकि से पुछ लिहली “नवकि माई काहें रोवsतारू बाबूजी भी रोवत रहले हाँ ?
नवकि अंचरा से लोर पोछ्त कहे लगली
“बुच्ची, तोहार असोक च्चा अब नईखन भगवन जी का लगे चल गईलन”
गाँव के दू गुट के झगड़ा,मार पीट सलटावे में एगो लाठी कपार प अईसन लागल कि जवन जमीनी पर गिरले के फेर उठ ना पईले “!
गीता त जइसे सुन्न हो गईली ..गांवे चहुँपला पर हर ओरी मातम रहे …..जवन आजी अभी एकदम टांठ रहली एकदम बेमरिया नियर हो गईली अउर चाची के दसा देख के गीता के एकदम नीक ना लागल सफ़ेद साड़ी में लपुटाईल देह न कवनो साज ना सिंगार !! जवन की हमेसा सजल संवरल रहत रहली …..!गीता आखिर चाची से पुछ लिहली
“ए चाची तू काहें सफ़ेद साड़ी पहिरेलु, टिकुली केतना नीक लगेगा उहो ना लगावेलु काहें ?”
एह प चाची उदास हो के कहे लगली “केकरखातिर साज सिंगार करी बनी , तोहार च्चा त चल गइले “उनके खातिर नु कुल साज सिंगार रहल हा ”
गीता के अब कुछ-कुछ बुझाये लागल …………….
कसहूँ तेरही बीतल !
कुछ दिन बाद गीता आ माई बाबूजी के कलकत्ता जाए के तैयारी होए लागल ……………जात समय गीता अपना बाबूजी से कहे लगली “बाबूजी, फेर त हमनी के आवे के होई जल्दिये ?
काहें ? बाबूजी पुछलन ..
“नवका च्चा” के ले आवे खातिर ” गीता कहल
“नवका च्चा !!!! माने ? बाबूजी हैरानी से पुछलन
माने माई के मुअला के बाद नवकि माई अईली ,,,,ओही तरह असोक च्चा के गईला के बाद नवका च्चा न अइहें का? देखs त चाची केतना उदास बाड़ी रंगीन साड़ी भी नैखी पहिर सकत ”
गीता के बात पूरा होईत ओसे पहिलही बाबूजी जोर के झापड़ गीतवा के गाल पर मरलन ………..आजी , चाची, नवकि, सब केहू सकपका गईल ई का भईल ?
एसे पहिले गीता के बाबूजी कब्बो न मरले रहलन ! गीता के समझ ना आईल की अइसन कवन गलती खातिरझापड़ बाबूजी मरले ! दहसत के मारे आज ले ना पूछ पईलस कि उ का गलत कह देले रहल ! ई बात के कई साल बीत चुकल बा बाकी गीता के आज ले आपन गलती ना बुझाईल !
अब चाची के सफ़ेद साड़ी में देखे के आदत हो गईल बा !

रचना : सरोज सिंह

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