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वन्देमातरम्

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वन्देमातरम्

‘वन्देमातरम्’ निबंध पाण्डेयजी के साहित्य के एगो महत्वपूर्ण दस्तावेज बा। एह निबंध में ‘वन्देमातरम्’ के इतिहास का संगे-संगे राष्ट्रीय भावना, राष्ट्रीय एकता, पौरुष आ शक्ति के भी चित्रण बा।

स्वतंत्र देशन के आपन एगो झंडा आ एगो गीत होला। झंडा के राष्ट्रीय झंडा आ गीत के राष्ट्रीय गीत कहल जाला। आजाद देश के दूनो चीज एकदम जरूरी है। झंडा ओह देश के संस्कृति सभ्यता, धार्मिक भावना आ राजनीतिक चेतना के प्रतीक होला। ओइसहीं राष्ट्रीय गीत ओह देश के संस्कृति, परंपरा, रहन-सहन, सामाजिक आ धार्मिक चेतना के एगो छोट-मोट इतिहास होला।

झंडा में एगो चिह्न उगावल रहेला, जे ओह देश के गौरव, गरिमा के याद दिलावे ला। झंडा के ँचा राखेला देशवासी आपन हर तरह के बलिदान करेले जे इतिहास बतावताभारत के झंडा में अशोक चक्र के चिहन आ रंग-तिरंगा (केसरिया, उजर आ हरियर) दीहल बा। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के नियम ह कि हर आजाद देश दोसरका आजाद देश के झंडा अपना किहाँ राखी आ विशेष अवसर पर अपना झंडा के संगे ओहू देश के झंडा फहराई।

वन्देमातरम्
वन्देमातरम्

ओइसहीं हर आजाद देश दोसरा देश के राष्ट्रीय गीतन के अपना किहाँ, आ अवसर विशेष पर अपना देश के गीत के संगे ओकरो के बजा के गावे ला। एकरा से आपस में भाई चारा के रिश्ता कायम होला। झंडा आ गीत ओह देश के त्याग, तपस्या, संस्कृति, सामाजिक, राजनैतिक आ धार्मिक चेतना के प्रतीक होला। जड़ आ चेतन प्रकृति के दूगो अवलम्ब ह। झंडा में देश के जड़ प्रकृति रहेला आ गीत में चेतन।

राष्ट्रीय गीत में देश के स्वतंत्र भावना गुंजेला। जब तक भारत स्वतंत्र ना रहे- कवनो गीत के राष्ट्रीय गीत के मान्यता ना मिलल रहे। जब देश आजाद भइल त रवीन्द्रनाथ ठाकुर रचित ‘जन-गण-मन…’ के राष्ट्र गान के मान्यता मिलल, बाकिर एकरा संगे वन्देमातरम्  के भी राष्ट्रीय गीत के दर्जा दीहल गइल। ‘वन्देमातरम्’ एगो संस्कृत शब्द ह जेकर माने होला ‘माई हम तोहरा के प्रणाम करत बानी। एह गीत के रचयिता बंगाल के नामी-गिरामी उपन्यासकार बंकिम चन्द्र चटर्जी रह लें। एकर रचना उहाँ का आपन उपन्यास ‘आनन्दमठ में कइले रहलीं। ‘वन्देमातरम्’ गीत ढेर लमहर बा। बाकिर जेतना राष्ट्रीय गीत का मद में लियाइल बा ओतना नीचे दियाता

वन्दे मातरम्
सुजलां-सुफलां मलयजशीतलाम्
शस्य-श्यामलां मातरम्।
वन्दे मातरम् ।।
शुभ्र-ज्योत्स्ना-पुलकित-यामिनीम्
फुल्ल-कुसुमित-द्रुमदल-शोभिनीम्
सुहासिनी, सुमधुर भाषिणीम्
सुखदां, वरदा, मातरम्।
वन्दे मातरम् ।।

तोहरा के माता नमस्कार करतानी हम, जे उत्तम, मीठ, मधुर जल से समृद्ध रुचिर अनेक फल से सम्पन्न, दक्षिणी मलय पवन से शीतल आ नाना प्रकार के फसल आ वनस्पति से भरल पूरल बा। नमस्कार करतानी माँ विशाल चाँदनी का गुदगुदी से भरल रात वाली खिलल फूलन संगे पेड़न का पाँति से शोभामयी, जेकर मुस्कान मधुर ह, आ जे सुख देबे वाली वर देबे वाली है।”

‘जन-मन-गण…’ के राष्ट्रीय गीत के रूप में एह से मान्यता दिहल गइल कि वोह में भारत के हर प्रांत के चित्रण रहे। उ पूरा देश के प्रतिनिधित्व करत रहे। वन्दे मातरम् के ई वन्दना भारतमाता के वन्दना ह, जेकरा एक गीत में मूर्तिमान कइल गइल बा। ‘आनन्दमठ’ उपन्यास में लेखक एह गीत के ‘संतान’ नामक सन्यासियन के मुँह से गववले बाड़े। जे घर-बार छोड़ि के आपन सर्बस भारत माता के वेदी पर न्योछावर के देले रहे आ देश सेवा के व्रत लेले रहे। ओकरे के उपन्यास में ‘संतान’ के संज्ञा दियाइल बा। अपना उपन्यास में एह गीत के लिख के बंकिम बाबू देशवासियन के एगो अपूर्व संदेश आ दर्शन दिहलीं। किताब के प्रकाशन 1882 में भइल बाकी अइसन कईगो सबूत मिलेला जे से ई बुझाला कि ई गीत 1875-76 में लिखाइल रहे। सफल साहित्यकार बंकिम बाबू एह कविता में अइसन सुंदर राष्ट्रीय भाव भरले बानी कि पढ़ते मन-प्राण झुमि उठेला, मगन हो जाला। युग-युग खातिर एगो पवित्र संदेश एह गीत में गुंथाइल मिलेला।

‘आनन्दमठ’ जब पुस्तक रूप में छपि के वन्देमारतम् गीत का साथे आइल त पढ़निहार का मन-प्राण में बिजली फेंक दिहलस। नस-नस में शक्ति राष्ट्रीयता आ पौरुष के शंखनाद सुनाइल। वन्देमातरम् का प्रचार-प्रसार का साथ देश में जे राष्ट्रीयता के भावना उगे लागल, ओकरा के विदेशी सरकार सह ना सकल। ब्रिटिश सरकार ओह गीत पर किसिम-किसिम के प्रतिबंध लगावे लागल गीत के लोकप्रियता एतना बढ़ल कि सरकार कठोर दमन नीति के सहारा लेले रोके लागल। बाकिर वन्देमारतम् के जादू का हिन्दू, का मुसलमान, सिख, ईसाई सब का माथा चढ़ि बोले लागल। जतने एकरा पर दमन नीति के कठोरता होखे लागल, ओतने एकर आगि धधके लागल आ ई गीत आजादी के एगो महामंत्र बनि गइल।

राष्ट्रीयता के प्रचार-प्रसार खातिर कलकत्ता में 1905 में ‘वन्देमातरम्’ नाम से एगो संस्था के स्थापना भइल। इ संस्था हर एतवार के झंडा का संगे जुलूस निकाले। लोग कहेला रवीन्द्रनाथ ठाकुर भी एह जुलूस में शामिल होत रहीं। बाद में महान् क्रांतिकारी बिपिनचन्द्र पाल 1906 में वन्देमातरम् गाँव से एगो अखबारो निकलले।

वन्देमातरम् अपना राष्ट्र के गौरव मर्दानगी के नमूना आ त्याग-तपस्या के प्रतीक, स्वतंत्र भारत के पहरूआ बनि युग-युग तक भारत के रक्षा करी।

– पाण्डेय नर्मदेश्वर सहाय –

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