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तिरिया-चरित्तर

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तिरिया-चरित्तर: भोजपुरी खिस्सा

तिरिया-चरित्तर की बारे में तS बहुत सुनले होखबी सभे। आईं सभे हमहुँ रउआँ सब के एगो कथा सुना दे तानी।

एगो गाँव में बुधु नाव के एगो किसान रहत रहने। उनकरा घुरहु नाव के एक्के लइका रहे। घुरहु बहुत बनोर रहे। दिनभर एन्ने-ओन्ने घुमे अउरी घर के एक्को काम नाहीं करे। एक दिन बुधुबS बुधु से कहली, “अब घुरहु लइका नइखन रही गइल। काहें नइखी कवनो लइकिनी देखी के उनकर बिआह कS देत।” बुधु कहने, “तूँ ठीक कहतारू, घुरहु के माई। हमहुँ इहे सोंचतानी। हो सकेला मेहरारू अइले पर आपन घुरहु सुधरी जाँ।” एकदिन घुरहु के माई घुरहु से कहली, “तहार बाबूजी, तहरा खातिर लइकिनी खोजताने।” अपनी माई के बाती सुनी के घुरहु बहुत खुश हो गइने। लेकिन पता नाहीं का उनकरी मन में आइल की उ अपनी माई से कही बइठने,”माई ! हम बीआह तS करबी जरूर लेकिन ओही लइकिनी से जवन तिरियाचरित्तर जानती होखे ।” घुरहु के माई कहली, “रे मलेछवा ! इ कवन सरत हS रे । कवनो लइकिनी इ कही की हम तिरियाचरित्तर जानS तानी।” घुरहु अपनी माई की बाती पर धयान न देके बाहर चली गइने। घुरहु के माई इ बाती घुरहु की बाबूजी से बतवली।

कुछु दिन की बाद बुधु घुरहु के कहने, “तहार बिआह एगो एइसन लइकिनी से तय कइले बानी, जबन तिरियाचरित्तर में निपुन बिया।” घुरहु खुश हो गइने। साइत देखी के घुरहु के बिआह कS देहल गइल।

मेहरारू की आवते घुरहु एकदम बदली गइने अउरी घर के पूरा जिम्मेदारी अपनी ऊपर ले लेहने।
एक दिन घुरहु अपनी मेहरारू से कहने की हम तिरियातरित्तर देखल चाहतानी। घुरहु के मेहरारू कहली की देखा देइबी, अबहिन तS हम साग-भाजी ले आवे बाजारे जा तानी। एतना कहले की बाद घुरहुबS बाजारे चली गइली अउरी घुरहु खेत जोते। ओही दिने राती खान घुरहुब बहरा (पाखाना) गइले की बहाने घर में से निकलली अउरी अपनी गोयड़ा की खेते में जाके बाजारी से जवन जिअत मछरी ले आइल रहली गाड़ी देहली।
सबेरे-सबेरे जब घुरहु गोयड़ा के खेत जोते गइने तS हरे की फारे से लागी के मछरी बाहर आ गइल। घुरहु एको बेर इ नाहीं सोंचने की कातिक में खेते में से मछली कवनेगाँ निकलली हS। उ मछरी उठवने अउरी दउड़ी के घरे गइने। घरे जाके उ अपनी मलिकाइन से कहने की खेते में जिअत मछरी मिलली हS। आजु एही के बनाव अउरी दुपहरिया में मछरी भात खाइबी। घुरहु के मेहरारू कहली ठीक बा, रउआँ खेत जोते जाईं हम मछरी बनावतानी। घुरहु जल्दी-जल्दी जब खेत जोती के घरे अउने अउरी हाथ-मुँह धो के खाए बइठने तS उनकर मेहरारू उनकरी आगे भात अउरी कोहड़ा के तरकारी ले आके धS देहली।

घुरहु कहने की मजाक मती करS, मछरियो ले आव। घुरहुबS कहली कहाँ मछरी बा, के मछरी ले आइल रहल हS। बाती आगे बढ़ी गइल, मरदे-मेहरारू में कहासुनी होखे लागल। इ दुनु जाने के झगड़ा सुनी के अगल-बगल के लोग एकठ्ठा हो गइल। केहु पूछल, “काहें झगड़ा होता?” घुरहु कहने, “ए काका! गोएड़वा के खेतवा जोतत रहनी हँई तS ओही में से एगो रोहू (मछरी) निकलल हS अउरी ओ रोहुआ के लिया के एही के बनावे के देहनी हँS। अब इ कहतिया की केइसन रोहू। कवनो रोहू-ओहू नइखे।”

ए पर काका कहने, “रे सारे घुरहुआ! पगला गइल बारे का? अरे कहीं कातिक की महीना में खेते में से जिअत मछरी निकली।” एकरी बाद गाँवभरी के लोग झुकमिली के घुरहु के खानी देहल। घुरहु के खनले की बाद जब गाँव के लोग अपनी-अपनी घरे चली गइल तS घुरहुबS मछली अउरी भात लिआ के घुरहु की आगे घS देहली। घुरहु चिल्लइने, “अब काहे के ले अउले हS। हमके पिटववले की बाद।” घुरहुबS पूरा कहानी सुनवली अउरकहली की तूँ ही न तिरियाचरित्तर देखे खातिर बेचैन रहलS हS। घुरहु कहने की हमके माफ कS दे अउरी आगे हमके कबो तिरियाचरित्तर देखवले के जरूरत नइखे। हमरा अपनी गलती के एहसास हो गइल बा।

-प्रभाकर पाण्डेय जी

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