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हरेश्वर राय जी के लिखल तीन गो भोजपुरी गीत

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डॉ. हरेश्वर राय जी
डॉ. हरेश्वर राय जी

मन उदास बा

सुक्खल नदी जस
मन उदास बा ।

चाँद जस आस में
लागल बा गरहन,
सपना के पाँखी प
घाव भइल बड़हन,
डेगडेग पसरल
खाली पियास बा।

आँखी के बागी में
पतझड़ के राज बा,
मन के मुंडेरा प
गिर रहल गाज बा,
उदासी के गरल से
भरल गिलास बा।

हँसी के फूल प
उगल बा शूल
ख़ुशी के खेत में
उगल बबूल,
जिनिगी सरोवर के
घाट बदहवास बा।

आस के पात

मन ठूंठ पर
आस के पात आइल ।
जेठ माह के तपन सेराइल
सावन के आइल पुरवाई
तन अगस्त के फूल भइल
हर गोड़न से गइल बेवाई ।

बगिया के
गइल तोता हाथ आइल.
मन पुरइन के पात भइल
जोन्ही भइल तन्हाई
ओठ फ़ाग के गीत भइल
आँखि भइल अमराई।

नवनीत से
नहाइल रात आइल।

गलकल रीत

गाईं कइसे
अँटकल गीत।
सून दुआर
अंगना सून
मन में पइठल
पसरल जून
कर से हमरा
सरकल जीत।

धवरा सोकना
ठाढ़ उदास
भुअरी के
उखड़ल बा सांस
चलनी छानी
दरकल भीत।

बचवा बम्बे
दिल्ली बचिया
हमरा संग
चितकबरी बछिया
इहे आज के
गलकल रीत।

लेखक: डॉ. हरेश्वर राय
प्रोफेसर ऑफ़ इंग्लिश शासकीय पी.जी. महाविद्यालय सतना, मध्यप्रदेश
बी-37, सिटी होम्स कालोनी, जवाहरनगर सतना, म.प्र.,
+91-9425887079

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