‘विदेसिया’ नाच में ‘रंडी’ की भूमिका निभानेवाले रामचंद्र मांझी ( रामचन्द्र बड़का ), ग्राम-तिजारपुर, जिला-छपरा अभी जिन्दा ही नहीं, जीवन्त भी हैं, वे अकेले जीवित कलाकार हैं, जो शुरू से लेकर अन्त तक ‘भिखारी ठाकुर’ के नाच में सक्रिय रहे। लगभग 90 साल की उम्र में भी वे 60 साल-से लगते हैं। और अब भी नाच करने जाते हैं। आवाज और लय की खनक और मस्ती वैसी ही है। उम्र का राज पूछने पर बताते हैं-बाबु साहेब, नचनिया लोग जल्दी बुढा ना होखे, काहे से उनकर काम योग आ तपस्या से कम नईखे. दिन-रात नचते-नचते हुनकर बोटी-बोटी बरियार हो जाला, देह छरहर आ उमर लमहर, पातर छयुंकी नियन कोमल आ काठ लेखा बरियार, ऊ फुर्ती बाबा रामदेव के जोग में नईखे।
भिखारी ठाकुर का अधिकांश समय इन्ही रामचंद्र के बाहरी दालान में बीता था, जहाँ समाजी रियाज करते थे। रामचन्द्र बताते हैं- गाछी में खाना बनता था, लेकिन सब जात के लोग के भंसा सब जगह, इहाँ तक कि दुसाध के अलग, चमार के अलग, इतना छुआ-छुत रहे। मालिक (भिखारी ठाकुर) केतनो कहस, मगर लोग माने न, बाकिर मालिक जब अपना घर पर खाना खीलाते, त सब लोग साथै खाते।
रामचन्द्र ने भिखारी ठाकुर के सभी नाटकों में नाचा, गाया और पाठ किया. मगर हमेशा औरत का ही किरदार निभाया. आज भी वे केंद्र सरकार या प्रांतीय सरकार की कला-संस्कृति विभाग की ओर से नाचते हैं, तो उसी भूमिका में, वे भिखारी ठाकुर के नाटकों के मौलिक कलाकार हैं, आज उनके पास अपनी जमीन, खेती-बारी और माल-मवेशी हैं, वे बताते हैं- मालिक के नाच ने हमें इज्जत, दौलत और शोहरत- सब कुछ दिया, इसलिए मरते दम तक हम इस कला को नहीं छोड़ेंगे. आप बुलाईये, हम मंगनी में आ जायेंगे।
यह सब कहते सुनते उन्होंने पूरे लय में भिखारी ठाकुर के कई गाने सुना दिये और इस पूरे वार्तालाप के दौरान बीएससी-2 में पढनेवाली उनकी पोती तन्मय होकर सबकुछ देखती-सुनती रही, उसने खुश होकर हमें चाय भी पिलाई.- ‘ए किया हो रामा, पियऊ के मतिया केई हर लेलक हो राम।’
लेखक: हरिनारायण ठाकुर जी
इ पोस्ट हरिनारायण ठाकुर जी के फेसबुक पेज से लिहल गईल बा
भिखारी ठाकुर के नाटक के जीवित पात्र: रामचन्द्र बड़का
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