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भोजपुरी के भवभूति अंजन जी के आज पाँचवाँ प्रयाण दिवस : संगीत सुभाष

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महामना अंजन जी

कविकुल शिरोमणि, भोजपुरी के भवभूति, मनीषी, चिंतक, नस-नस में सर्वधर्म समभाव आ भोजपुरी के अनेकन अमर गीतन के रचयिता महामना अंजन जी के आज पाँचवाँ प्रयाण दिवस ह।

आजु के दिन उहाँके इयाद करत हम भावविभोर बानीं। लेकिन, अंतरातमा में कहीं ना कहीं चट्टान जइसन बिसवास बा कि उहाँके आशीर्वाद अज्ञातलोक से सदईं अपना लोगन के मिलत रहेला।

ए नश्वर संसार में सबका गइल तय बा। अधिकांश लोग त रोवते जाला लेकिन, अंजन जी अपना गइला के महान उत्सव मनावत गइनीं। भरल-पूरल सुखी, शिक्षित आ सम्पन्न परिवार के परिवारीजन आ नजदीकी लोग के समुझावत- बुझावत आ सिखावत गइनीं। ए जगह के छोड़ला के तनिको मलाल ना रहे, मानो एकरा से दिव्य जगह पर परमात्मा का साथे राजसिंहासन मिलत होखे। उहाँके सगरे भौतिक इच्छाके पूरा करे के जवन प्रयास परिवार के लोग कइल, रिश्तन के निबाहे खातिर एगो बड़हन मिसाल बा।

महामना अंजन जी
महामना अंजन जी

अंजन जी सचहूँ अंजन रहनीं। आँखि के कोरन में तनकी भर लगा दीं- आँखि के सुन्दरता बढ़ि जाई आ आँखिन में अइसन रोशनी आई जवन जिनगी भर लवटिके वापस ना जाई। अंजन साहित्य से भोजपुरी आ हिन्दी के भंडार उहाँके रचल 38 गो किताबन से भरल बा आ सैकड़न किताबन भर के पाण्डुलिपि तेयार बा। अंजन का तरे ए धरोहर से एको लाइन के अंजन अपना मन की आँखिन का कोर पर लगवले जीवन सार्थक हो जाई, जिनिगी जिए के एगो नया अंदाज आ जाई।

कवनो गाढ़ समय में होखीं, अंजन जी के एगो कवनो मुक्तक पढ़ि ली, कवनो ना कवनो राह मिलिए जाई।
अइसन व्यक्तित्व के सब साहित्य समाज का सोझा आवे, उहाँके परिवार आ #जय_भोजपुरी_जय_भोजपुरिया परिवार प्रयास करि रहल बा। आशा बा, हमनीं का जरूर सफल होखबि जा। 18 नवम्बर 2018 के अपना पहिलका “भोजपुरी साहित्यिक आ सांसकृतिक महोत्सव” के शुरूआत #जय_भोजपुरी_जय_भोजपुरिया परिवार उहाँके चित्र पर माल्यार्पण आ नमन क के कइल। साथे- साथे उहाँके अर्द्धांगिनी पूजनीया माता जी के चरनवन्दनो भइल

हमनीं का भगिमान बानीं कि उहाँ की रचनन के पढ़तानीं आ पढ़ि-पढ़िके सिखतानीं।
उहाँके विमल चरनन में बेरिबेरि माथा झुकावत मन कबो ना अघाइल। आजु फेर उहाँके प्रयाणदिवस पर अपना आ अपना परिवार #जय_भोजपुरी_जय_भोजपुरिया का ओर से उहाँके नमन करत प्राथना करबि कि सगरे भोजपुरिया जगत के अपना आशीर्वाद का बरखा में भिजावत रहीं। हमनीं का त #अंजन जी के अपनी आँखिन के अंजन बनवलहीं बानीं जा।

पढ़ीं अंजन जी के एगो अप्रकाशित रचना, जवन हमरा संग्रह में बा-

केतना दिन अउरी चलत रही चकरी।
कूटि-पीसि खा गइनीं जिनिगी के सगरी।

जोरत-अगोरत में थाती हेराइल
तनमन के गरमी सब देखते सेराइल
धार में चिन्हाइल ना, चलि अइनीं कगरी।

हेतना हमार हवे, हेतना ह राउर
सोचत-बिचारत भइल कुछु बाउर
थाकि गइल जांगर अब आगे का सपरी।

लीखि-लाख, कउड़ी-करोड़ के ई मेला
उसरि जाई मेला, जब होइबि अकेला
पुतरी का मिलि जाई, आखिर में उतरी

खेला चिन्हाइल ना, मन पगलाइल
उड़ि गइल चिरई ना हाथ में धराइल
“अंजन” रचल ना, उलटि गइल पुतरी।

संगीत सुभाष जी

संगीत सुभाष,
मुसहरी, गोपालगंज।

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