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माई शैलपुत्री पहिलका रूप | निर्भय नीर

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माई शैलपुत्री पहिलका रूप

परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प, आई पढ़ल जाव निर्भय नीर जी के लिखल भोजपुरी रचना माई शैलपुत्री पहिलका रूप , रउवा सब से निहोरा बा कि पढ़ला के बाद आपन राय जरूर दीं, अगर रउवा निर्भय नीर जी के लिखल रचना अच्छा लागल त शेयर जरूर करी।

एक बेर प्रजापति दक्ष जी एगो बहुते लमहर यज्ञ कइलन। ओमें उहाँ का सभ देवता लोग के आपन-आपन यज्ञ- भाग पावे खातिर बोलाहटा भेजलन, बाकि शंकर जी के एह यज्ञ के बोलाहटा ना भेजलन। सती जब सुनली कि हमार बाबूजी एगो लमहर यज्ञ करत बाड़न त उहाँ जाए खातिर उनकर मन विकल होखे लागल।

आपन ई इच्छा शंकर जी से बतवली। सभ बात सुनला के बाद शंकर जी कहलन कि शायद कवनो बात से प्रजापति दक्ष जी हमरा से खिसियाइल बाड़न जवना कारण अपना ओ यज्ञ में सभ देवता लोग के बोलवले बाड़न आ उनका लोग के यज्ञ भाग भी दे रहल बाड़न। खाली हमरे के जान-बूझ के नइखन बोलवले। कवनो सूचनो नइखन भेजले। एह हालत में तहार उहाँ गइल कवनो प्रकार से हमरा ठीक नइखे बुझात।

माई शैलपुत्री पहिलका रूप
माई शैलपुत्री पहिलका रूप

शंकर जी के एह बात के माई सती पर कवनो असर ना भइल आ बाबूजी के यज्ञ देखे, अपना माई, बहिन से भेंट करे के व्यग्रता में कवनो कमी ना आइल। बेर-बेर आग्रह क के जाए के अनुमति ले लिहली।

सती माई आपना बाबूजी प्रजापति के घरे पहूँचली त उनकर केहू आदर-भाव ना कइलस आ केहू भर मूँह बोलतो ना रहे। सभे मूँह फेर लेत रहे। बहिन आ सहेली लोग आभी-गाभी बोलते रहे । खाली उनकर माई उनके गले लगवली।

सभे परिजन के एह व्यवहार पर उनका बड़ा क्लेश भइल। उहाँ देखली कि चतुर्दिक भगवान शंकर जी खातिर सभे के मन में तिरस्कार भाव भरल बा। इहाँ तक कि उनकर बाबूजी प्रजापति दक्ष, शंकर जी खातिर बहुते अपशब्द कहलन। ई सभ देख-सुन के सती के हिया क्षोभ, ग्लानि आ क्रोध से भर गइल आ सोंचली कि शंकर जी के बात ना मान के बड़ा गलती क दिहनी।

जब शंकर जी के अपमान ना सह सकली त आपन रूप के ओही लगले योगिनी द्वारा जरा के भष्म क लिहली। वज्रपात जइसन एह दारुण-दुखद घटना के सुन के शंकर जी आग बबुला हो गइलन आ अपना कुछ गणन के भेज के प्रजापति दक्ष के यज्ञ के विध्वंस करा दिहलन।

सती माई के योगिनी द्वारा भष्म भइला के बाद अगिला जन्म शैलराज हिमालय के बेटी के रूप भइल आ एह बेरी उनकर नाम शैलपुत्री पड़ल। पार्वती, हेमवती भी इनकरे नाम रहे। उपनिषद के एगो कथा अनुसार हेमवती स्वरूप में सभ देवता लोग के गर्वभंजन भी कइले रहीं।

निर्भय नीर जी

माई दूर्गा जी के नौ गो रूप होला जवना में पहिलका रूप शैलपुत्री के जानल जाला। नवरात्रि के पहिलका दिन में इनकर पूजा आ उपासना कइल जाला। एह पहिलका दिन के उपासना में योगी लोग अपना मन के मूलाधार चक्र में स्थित करेलन आ अपना योग के साधना करेलन।

आजु के दिन माई शैलपुत्री के पूजा अराधना के दिन ह आईं सभे इनकर पूजा उपासना हृदया खोल के पुरहर मनोयोग से कइल जाव ताकि इनकर किरपा हरदम हमनी सभे लोग पर बरसत रहो।

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