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ब्रह्मचारिणी माई | नवरातन के दूसरा दिन | निर्भय नीर

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ब्रह्मचारिणी माई | नवरातन के दूसरा दिन

परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प, आई पढ़ल जाव निर्भय नीर जी के लिखल भोजपुरी रचना ब्रह्मचारिणी माई | नवरातन के दूसरा दिन , रउवा सब से निहोरा बा कि पढ़ला के बाद आपन राय जरूर दीं, अगर रउवा निर्भय नीर जी के लिखल रचना अच्छा लागल त शेयर जरूर करी।

माई दुर्गा के नव शक्ति रूप में दूसरकी रूप ब्रह्मचारिणी माई के ह। एहीजा ब्रह्म शब्द के अर्थ तपस्या से जानल गइल बा। ब्रह्मचारिणी माने जे तप के आचरण करत होखे। ब्रह्मचारिणी माई के स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय आ भव्य बा। इनका दहिना हाथ में जप करे वाला माला आ बायाँ हाथ में कमंडलु बा। अपना पिछला जन्म में जब ईहाँ के हिमालय के घरे बेटी के रुप जन्म लिहनी। तब इहाँ के नारद बाबा के उपदेश दिहला से भगवान शंकर जी खातिर घोर तपस्या कइले रहीं ।

एही घोर तपस्या कइला खातिर इहाँ के तपचारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से जानल जाला। एह तपस्या में इहाँ के एक हजार बरिस ले फल खा के बितवनी, आ सई बरिस तक खाली साग पात खा के बितवनीं। उपवास के समय खूला आकाश के नीचा बरखा आ घाम के विकट कष्ट कटली। एकरा बाद जमीन पर गिरल बेल के पतई चबा के रहली आ की हजार बरिसन तक भूखे पियासे रह के आदिदेव महादेव के आराधना कइली। पतई चबावल छोडला से इहाँ के एगो अपर्णा भी नाम पड़ल।

ब्रह्मचारिणी माई | नवरातन के दूसरा दिन
ब्रह्मचारिणी माई | नवरातन के दूसरा दिन

एह कठिन तपस्या के कारण ब्रह्मचारिणी माई के पिछिलका जन्म वाला शरीर एकदम क्षीण हो गइल जवना के देखी उहाँ के महतारी मैना के मन व्याकुल हो गइल आ ब्रह्मचारिणी माई के तपस्या से विरत करे खातिर उमा नाम के संबोधन कइली। जवना से इहाँ के एगो उमा नाम भी पड़ गइल।

ब्रह्मचारिणी माई के तपस्या से तीनों लोक में हाहाकार मच गइल। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभे उनकर एह अभूतपूर्व पूण्यतप के बखान करत सराहना करे लगलन। अंत में ब्रह्मा जी खुश हो के उहाँ के संबोधित करत आकाशवाणी कइनी कि “हे देवी आज ले केहू अइसन तप ना कइलस, जाईं राउर मनोकामना पूरा होखी। भगवान चंद्रमौलि शिव जी रउआ पति रूप में जरूर मिलिहें। तपस्या छोड़ी आ अपना घरे जाईं।”

ब्रह्मचारिणी माई के ई दूसरकी रूप भक्तन के अनंत फल देवे वाला ह। इनकर उपासना से मनई में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार आ संयम के दिन दूना रात चौगुना बढ़ंती होखेला। सगरो विजय आ प्रसिद्धि बढ़ेला।

निर्भय नीर जी

दुसरका दिन माई के एही स्वरूप के पूजा उपासना होखेला। एह दिन साधक के मन स्वाधिष्ठान चक्र में रहेला। एह चक्र में मन राखे वाला योगी माई के कृपा आ भक्ति पा जाला। जीनगी के अझुराइलो क्षण में कबो विचलित ना होला।

त आईं हमनी सभे मनई आजु नवदुर्गा जी के दूसरकी स्वरूप के पूजा आ उपासना क के आपनों जिनगी में सगरो प्रसिद्धि आ विजय पावल जाव।।

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